Sri Kotamraju Rama Rao: प्रेस फ़्रीडम के अनन्य योद्धा
Sri Kotamraju Rama Rao Wiki in Hindi: चीराला (आन्ध्र प्रदेश) में 9 नवम्बर, 1896 को जन्मे, तेलुगु-भाषी रामा राव ने मद्रास विश्वविद्यालय से 1917 में अंग्रेजी साहित्य से स्नातक परीक्षा पास की और वहीं अंग्रेजी भाषा का अध्यापन भी किया।
Sri Kotamraju Rama Rao: प्रख्यात सम्पादक, जानेमाने स्वाधीनता-सेनानी और प्रथम संसद (राज्य सभा) के सदस्य (1952), श्री कोटमराजू रामा राव अपने दौर के अकेले ऐसे पत्रकार थे, जो 25 से अधिक समाचार-पत्रों में कार्यशील रहे। इन पत्र-पत्रिकाओं में अविभाजित भारत के लाहौर से प्रकाशित (लाला लाजपत राय का) ‘दि पीपुल’ (1936), कराची का दैनिक ‘दि सिन्ध आब्जर्वर’ ( 1921), मुम्बई का ‘दि टाइम्स आफ इण्डिया) (1924), चेन्नई का (दि स्वराज्य’ ( 1935), कोलकाता का ‘दि फ्री इण्डिया’ (1934), नई दिल्ली का ‘दि हिन्दुस्तान टाइम्स’ ( 1938), इलाहाबाद के ‘दि लीडर’ (1920) और ‘दि पायोनियर’ (1928) तथा पटना का ‘दि सर्चलाइट’ दैनिक (1950) थे। किन्तु रामा राव जी को ऐतिहासिक ख्याति मिली जब उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के दैनिक ‘दि नेशनल हेरल्ड’ ( 1938-1946) का लखनऊ में सम्पादन किया। ढेर सारे अखबार बदलने पर रामा राव के एक साथी ने टिप्पणी की : ‘‘वे अपने एक जेब में संपादकीय की प्रति और दूसरे में त्यागपत्र रखते थे।’’
चीराला (आन्ध्र प्रदेश) में 9 नवम्बर, 1896 को जन्मे, तेलुगु-भाषी रामा राव ने मद्रास विश्वविद्यालय से 1917 में अंग्रेजी साहित्य से स्नातक परीक्षा पास की और वहीं अंग्रेजी भाषा का अध्यापन भी किया। पत्रकारिता में उनका प्रवेश चेन्नई में ब्रह्मसमाज की पत्रिका ‘दि ह्यूमेनिटी’ से हुआ। फिर आचार्य टी. एल (साधू) वासवानी के ‘दि न्यू टाइम्स’ (1919) में कराची में उन्होंने कार्य किया। अपने अग्रज, संपादक के. पुन्नय्या के दैनिक ‘दि सिंध आब्जर्वर’ में सह-संपादक बने। चार दशक के अपने पत्रकारी जीवन में रामा राव ने दो विश्व युद्धों के दौर की घटनाएँ, गाँधी-नेहरू युग का स्वाधीनता-संघर्ष और स्वातंत्रयोत्तर भारत में आर्थिक नियोजन, निर्गुट विदेश नीति तथा मीडिया आधुनिकीकरण को देखा और उन पर लिखा।
जेल की सजा
महात्मा गाँधी के सान्निध्य में रहकर (1942-45) रामा राव ने दो दर्जन से ज्यादा भारतीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं के विशेष संवाददाता के रूप में राष्ट्रीय आंदोलनों की रपट भेजी। केन्द्रीय विधान सभा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों तथा राजनीतिक मुकदमों और क्रिकेट टेस्ट मैचों की रिपोर्टिंग की। उन्होंने बड़ी संख्या में युवा पत्रकारों को प्रशिक्षित किया, जिनमें रहे शाम लाल (बाद में टाइम्स आफ इंण्डिया के प्रधान संपादक), एच. वाई. शारदा प्रसाद (इन्दिरा गांधी के मीडिया सलाहकार) और एम. चलपति राव जो नेशनल हेरल्ड में तेरहवें स्थान पर आये थे और बाद में सम्पादक बने। रामाराव के प्रशिक्षु का नाम था श्री बालकृष्ण मेनन जो संन्यास लेकर स्वामी चिंम्यानन्द सरस्वती कहलाए।
सन् 1942 में रामा राव को ‘दि नेशनल हेरल्ड’ में ‘जेल या जंगल’ शीर्षक के संपादकीय लिखने पर ब्रिटिश हुकूमत ने छह माह का कारावास और जुर्माना की सजा दी थी। इस संपादकीय में उन्होंने लखनऊ कैंप जेल में कांग्रेसी सत्याग्रहियों पर हुए बर्बर अत्याचार की भर्त्सना की थी। अवध चीफ कोर्ट के निर्णय को आधे घन्टे में रेडियो बर्लिन ने प्रसारित कर दिया था। लखनऊ जेल के क्रान्तिकारी वार्ड में रामा राव को नजरबंद रखा गया, जहाँ उनके पूर्व मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, आचार्य जे. बी. कृपलानी, आर. एस. पंण्डित (पं. नेहरू के बहनोई) आदि कैद थे। रामा राव के जेल के साथियों में थे भगत सिंह वाले लाहौर षड्यंत्र केस के क्रान्तिकारी शिव वर्मा तथा जयदेव कपूर, कम्युनिस्ट काली शंकर, विप्लवी जोगेश चटर्जी और लोहियावादी गोपाल नारायण सक्सेना।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की यूरोप, अफ्रीका और अमेरीका यात्रा (1949) पर रामा राव ‘दि हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप’ (इलाहाबाद के ‘दि लीडर’ तथा पटना के ‘दि सर्चलाइट’ दैनिकों) के विशेष प्रतिनिधि के नाते गये। संयुक्त राष्ट्र अमेरीका के अलावा श्री रामा राव ने ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, मिस्र, कनाडा, ब्राजील, ग्रीस (यूनान), स्विटजरलैण्ड आदि देशों की यात्रा भी की।
विद्रोही माता
श्री रामा राव प्रथम राज्य सभा (1952) के लिये अविभाजित मद्रास राज्य (आन्ध्र प्रान्त) से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित हुए। इनके नाम का प्रस्ताव विधायक के. कामराज तथा नीलम संजीव रेड्डी ने किया था। दोनों बाद में कांग्रेस अध्यक्ष बने। भारत सरकार के प्रथम सलाहकार (1956) के नाते में रामा राव ने पंच-वर्षीय योजना के प्रचार-प्रसार का संचालन किया था।
कई पुस्तकों के लेखक, रामा राव ने अपनी आत्मकथा ‘दि पैन एज माई स्वोर्ड’ लिखी। अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मेलन (आल-इण्डिया न्यूजपेपर एडिटर्स कान्फ्रेंस, 1940) के संस्थापकों में रामा राव थे। देश के सम्पादकों ने मुम्बई में 1942 में हुए अपने AINEC अधिवेशन में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए रामा राव को लखनऊ जेल में कैद रहते ही निर्वाचित किया था। भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फेडरेशन (इंण्डियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स) के उपाध्यक्ष (1950) की भूमिका में उन्होंने फेडरेशन के संविधान की रचना की। श्रमजीवी पत्रकारों के देश-विदेश के अधिवेशनों में शिरकत की। प्रथम भाषाई-राज्य आंध्र के निर्माण हेतु जनान्दोलन में सक्रिय रहे।
रामा राव के पिता श्री कोटमराजू नारायण राव संस्कृत के पंडित तथा स्कूल के हेडमास्टर (1898) थे। उनकी माँ वेंकायम्मा ने ब्रिटिश कलक्टर (गुंटूर जनपद) के विरुद्ध 1899 में असहयोग करने और टैक्स न देने हेतु ग्रामवासियों को संगठित किया था। उनके चचेरे भाई कोटमराजू ‘बोम्बू’ रामय्या आंध्र के प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने 1910 में कठ्ठेश्वर (तेनाली) में बम बनाया था।
रामा राव ने अंग्रेजी भाषा की कवियित्री और ज्योतिषी सरसवाणी से सागरतटीय मछलीपत्तनम नगर (आन्ध्र प्रदेश) में 1922 में विवाह किया। इस पाणिग्रहण कार्य को मछलीपत्तनमवासी, बाद में कांग्रेस अध्यक्ष, स्वतंत्रता-सेनानी और मध्य प्रदेश के राज्यपाल स्व. डॉ. बी. पट्टाभि सीतारामय्या ने सम्पन्न कराया था। श्री रामा राव के श्वसुर प्रो. चोडवरपु जगन्नाथ राव टीचर्स ट्रेनिंग कालेज के प्रिंसिपल थे। रामा राव के चार पुत्रों में प्रथम प्रताप भारतीय विदेश सेवा (IFS) रिटायर होने पर अमरीका में बस गये थे। दूसरे नारायण भारतीय आडिट एवं अकाउन्ट्स सर्विस (IA & AS) से रिटायर होकर अब नई दिल्ली में त्रैमासिक जर्नल आफ एस्ट्रोलोजी के संपादक हैं। तृतीय विक्रम लखनऊ में श्रमजीवी पत्रकार हैं। आखिरी सुभाष पूर्व राष्ट्रीयकृत बैंक मैनेजर थे। चार पुत्रियों में ज्येष्ठ वसंत तथा कनिष्ठ हेमन्त अमरीका में बस गई। द्वितीय, शरद तथा तृतीय, शिशिर दोनों ने ही भारतीय सेना के अधिकारियों से विवाह कर कानपुर तथा बेंगलूर में बसीं।
( लेखक वरिष्ठ व प्रख्यात पत्रकार हैं ।)