Sujata Film: 1960 में बनी आजादी पर बनी फिल्म सुजाता, जानें क्यों आज भी हैं ये फिल्म हिट

फ़िल्म समाज की उस गलत मानसिकता को दिखने की कोशिश करता है जो समाज को खोखला कर रहा है और फ़िल्म उस मानसिकता को गलत भी साबित करता है।

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Published By :  Divyanshu Rao
Update:2021-11-18 22:10 IST

सुजाता फिल्म के पोस्टर की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

फ़िल्म : सुजाता (1960)

निर्देशक : बिमल रॉय

प्रोड्यूसर : बिमल रॉय

संगीत : एस. डी. बर्मन

स्क्रीन प्ले : नबेन्दू घोष

फ़िल्म में मुख्य किरदार

नूतन ने सुजाता का किरदार निभाया है ।

सुनील दत्त ने अधीर बाबू का किरदार निभाया है ।

शशिकला ने रमा का किरदार निभाया है ।

तरुण बोस ने उपेंद्र चौधरी और रमा के पिता का किरदार निभाया है ।

सुलोचना लाटकर ने चारु चौधरी और रमा की माँ का किरदार निभाया है ।

फ़िल्म समाज की उस गलत मानसिकता को दिखने की कोशिश करता है जो समाज को खोखला कर रहा है और फ़िल्म उस मानसिकता को गलत भी साबित करता है। आज़ादी के बाद जो सबसे बड़ी समस्या थी। वो थी लोगो को समान अधिकार, इज्ज़त और समाजिक न्याय दिलाना ।

आज़ादी के बाद भी छोटे जाति वाले लोग गुलाम थे । और यह फ़िल्म उन्ही लोगो को आज़ादी दिलाने और समाज की मानसिकता बदलने को प्रेरित करती है।

फ़िल्म गांधी जी के समाज के प्रति विचारों को हर वर्ग तक पहुँचाने का काम किया है ।

गांधी जी के हरीजन उत्थान के उद्देश्य को ये फ़िल्म साकार करता है।

इस फ़िल्म में अधिकांश सीन इंडोर शूट हुआ है ।

स्क्रीन प्ले पर बहुत ही खूबसूरती से किया गया है । जब एक सीन में सुजाता रोने वाली होती है तो उसके आँसू न दिखा कर बारिश के पानी को गिरते हुए दिखाया गया है । जब वो खुश होती है तो उसको हँसते हुए नहीं दिखाया है बल्कि फूल को खिलते दिखाया गया है ।

फ़िल्म की शुरुआत एक कंस्ट्रक्शन साइट से होती है जहाँ पर कुछ गाँव वाले फैल रहे हैजा से परेशान होकर उसकी गुहार लगाने उपेंद्र चौधरी के पास आये हुए होते हैं और उपेंद्र बाबू मेडिकल कैम्प लगवाने की बात करते हैं ।

दूसरे सीन में उपेंद्र बाबू की बेटी की जन्मदिन का जश्न मन रहा होता है तभी गाँव वाले उनके पास आते हैं और एक लड़की को उनके पैर में रख देते हैं और बताते हैं कि ये आपके ट्रॉली कुली बुद्धन की बेटी है और इसके माँ बाप दोनों हैजा के शिकार हो गए।

अब इस बच्ची का क्या होगा इसका कोई रिश्तेदार भी नहीं हैं और ये बच्ची अछूत है इस लिए इसे कोई अपने पास रखेगा भी नहीं । कृपया करके आप ही इसको संभालिए।

उपेंद्र बाबू इंसानियत के नाते उस बच्ची को रख लेते हैं लेकिन गाँव वालों को बोलते हैं कि इसको रखने के लिए जल्दी से कोई इसके जाति वाला घर ढूंढ लें।

कुछ दिनों बाद उपेंद्र बाबू की दूर की बुआ आती हैं और उनके साथ एक पंडित जी भी आते हैं । गलती से बुआ सुजाता को उपेंद्र बाबू और चारु की बेटी समझ लेती हैं। और जब बुआ को पता चलता है कि ये चारु की बेटी नहीं है ये तो एक अछूत की बेटी है तो वो बहुत नाराज होती हैं और खुद के अशुद्ध होने की बात करती हैं।

जब पंडित जी को ये बात पता चलता है जो कि पेशे से एक शिक्षक भी रहते हैं तो वो घर छोड़ कर जाने लगते हैं। जब उपेंद्र बाबू उनको रोकते हैं तो पंडित जी बोलते हैं कि आपने मेरा धर्मभ्रष्ट किया है । धर्म कहता है कि अछूतों का स्पर्श ही बुरा नहीं उनको पास रखना भी पाप है और यह बात तो विज्ञान भी कहता है कि अछूतों के बदन से एक प्रकार का गैस निकलता है। जो कुलीन मनुष्य के तन मन को दूषित करता रहता है ।

जब उपेंद्र बाबू पंडित जी से पूछते हैं कि क्या आपने उस गैस को देखा है तो पंडित जी बहुत चतुराई से उनसे उल्टा सवाल पूछ लेते हैं कि खाने में विटामिन्स होते हैं लेकिन क्या आपने उन विटामिन्स को देखा है अगर नहीं तो क्या खाने में विटामिन्स नहीं होते हैं यह कह कर पंडित जी घर छोड़ कर चले जाते हैं ।

बुआ भी चली जाती हैं लेकिन इस हिदायत के साथ कि जल्द से जल्द इस अछूत लड़की को घर से निकाल दो , मेरा क्या है मैं तो हरिद्वार जाके गंगा में डुबकी लगा, इस पाप को धो लुंगी ।

चारु ज़िद करती है कि इस लड़की को अब कहीं और भेज दिया जाए और उपेंद्र बाबू इस बात को मान जाते हैं लेकिन सुजाता के प्यार ने उनको घेर रखा होता है ।

बहुत खोजने के बाद भी कोई ढंग का आदमी नहीं मिलता है जिसके पास सुजाता को रखा जाए अंत में हार कर सुजाता को उपेंद्र बाबू अपने ही घर पर रखते हैं।

उपेंद्र बाबू छूत अछूत नहीं मानते हैं लेकिन चारु मानती है इसलिये वो उपेंद्र बाबू को टोकते रहती है ।

छोटी सी सुजाता को क्या समझ वो तो उपेंद्र बाबू को पापा और चारु को माँ समझती है । रमा जो करती है सूजाता भी वही करती है ।

बिमल रॉय ने बहुत खूबसूरती से ये दिखा दिया है कि छूत अछूत हम बड़े लोगों के दिमाग की उपज है बच्चों को इससे कुछ लेना देना नहीं ।

सुजाता और रमा बड़ी हो जाती हैं । रमा बहुत चुलबुली और हाजिर जवाब रहती है वहीं सुजाता शांत ,शुशील , घर के कामों में हाँथ बटाने वाली, सबका ख्याल रखने वाली । भारतीय समाज के हिसाब से सुजाता एक आदर्श बेटी, होंने वाली आदर्श बहु और पत्नी रहती है।

चारु सुजाता को पढ़ने नहीं देती है इसलिए वो अनपढ़ रह जाती है वहीं रमा स्नातक कर रही है।

बुआ फिर से एक बार आती हैं और सुजाता को देख कर बहुत क्रोधित होती हैं और बोलती हैं इस अछूत के कारण चारु तेरी अपनी बेटी की शादी नहीं होगी ।

चारु घबरा जाती है और उपेंद्र को बोलती है सुजाता की शादी कर दो ।

चारु बोलती है कि कौन शादी करेगा एक अनपढ़ लड़की से यहाँ बिमल रॉय एक संदेश देते हैं कि लड़कियों के लिए भी पढ़ाई जरूरी है ।

बुआ एक दिन आने पोते अधीर के साथ चारु के घर आती हैं अधीर आज के जमाने का एक युवा है जो जाति में विश्वास नहीं करता है ।

उसको सुजाता को देखते ही उस से प्यार हो जाता है लेकिन जब वो पूछता है कि ये कौन है तो चारु बोलती है मेरी बेटी जैसी है। सुजाता को ये बात बहुत बुरी लगती और वो वहां से भाग कर रोने लग जाती है ।

अधीर अब कोई न कोई बहाना करके उपेंद्र बाबू के घर आ जाता है उधर बुआ और चारु अधीर की शादी रमा से करवाना चाहते हैं और एक दिन चारु सुजाता को बता देती है वो उसकी बेटी नही है किसी अछूत की बेटी जो मर चुके हैं ।

सुजाता इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाती है और आत्मा हत्या करने जाती है वहाँ उसको गाँधी जी की एक मूर्ति दिखती है जहाँ लिखा होता है मरें कैसे, आत्महत्या करके? कभी नहीं ! आवश्यकता हो तो जिंदा रहने के लिए मरें। और वह आत्महत्या के विचार को त्याग देती है । और यहाँ बिमल रॉय ने बहुत खूबसूरती से गांधी जी के विचारों को दर्शकों के सामने लाया है । इस सीन में गांधी जी के मूर्ति के आँखों में आँसू होता है जो कि बारिश का पानी होता है लेकिन बिमल रॉय ने इसे गांधी जी के आँसू के तौर पर दिखाया है ।

कुछ दिनों बाद रमा के कॉलेज में नाटक रहता है और सब देखने जाते हैं लेकिन चारु यह चाहती है कि अधीर बाबू और रमा एक साथ वक्त बिताए इस लिए वह चारु को नाटक देखने जाने से रोक देती है ।

अधीर जब देखता है कि सुजाता नहीं आई है तो वह नाटक छोड़ कर सुजाता से मिलने आ जाता है। तब सुजाता पूछती है कि आपने नाटक क्यों नही देखा तो वो बोलता है मैंने बहुत बार देखा है तब सुजाता उनसे उस नाटक की कहानी पूछती है ।

अधीर बाबू विक्षुणन्द की कहानी सुनाते हैं कि कैसे विक्षुणन्द ने एक अछूत लड़की के हाथ का पानी पी कर समाज में एक संदेश दिया कि सब बराबर हैं। लेकिन वो अछूत लड़की समाज के बनाये डर से डरती है। बोलती है मैं नीच जाति की हूँ मैं आपको पानी नही पिला सकती मुझे पाप लगेगा । तब विक्षुणन्द कहते हैं आत्मनिन्दा से बड़ा कोई पाप नहीं ।

फिर अधीर गांधी जी के आश्रम की कहानी सुनता है कि कैसे गांधी जी ने एक अछूत लड़की को अपने आश्रम में रखा और समाज की सोच बदली। इनसब बातों को सुन कर सुजाता में आत्मबल आता है और वो समझने लगती है कि वो भी बराबर है। तभी अधीर बाबू ने सुजाता को अपने प्रेम के बारे में बता दिया और वो उनके प्रेम को स्वीकार कर लेती है ।

लेकिन जब सुजाता को पता चलता है कि रमा की शादी अधीर बाबू से होने वाली है तो वो अधीर से सारे रिश्ते तोड़ देती है । लेकिन अधीर अपनी नानी को बता देता है कि उसको सुजाता से प्रेम है । नानी बहुत गुस्सा होती हैं और उसको सम्पति से बेदखल करने की बात करती है लेकिन अधीर बोल देता आपको सम्पति मुबारक हो और घर छोड़ कर जाने लगता है नानी को झुकना पड़ता है । और जब ये बात चारु को पता चलता है तो वो सुजाता को बहुत बुरा भला कहती है और अपने नज़रों से दूर हो जाने को कहती है तभी चारु गिर जाती है और उसका सिर फट जाता है और बहुत खून निकल जाता है ।

डॉक्टर कहता है कि इनको खून चढाना पड़ेगा । किसी का ब्लड ग्रुप चारु से नहीं मिलता है सिवाय सुजाता के ब्लड ग्रुप के। तो फिर चारु को खून सुजाता देती है तब जा कर चारु का जान बच पता है। तब उपेंद्र बाबू ये सारी बातें चारु को बताता है कि तुम्हे सुजाता ने खून दिया और तुम्हारी जान बचाई है। चारु पूछती है उसका खून मुझे कैसे ये तो अछूत है न।

मेरा और इसका खून एक कैसे ? तब उपेंद्र बाबू बोलते हैं यही तो बात है कोई अछूत नहीं होता है सबके शरीर मे एक सा ही खून दौड़ता है

चारु अपनी गलती समझ जाती है और सुजाता को बोलती हैं तुम मेरी बेटी हो, बेटी जैसी नहीं और फिर अधीर से सुजाता की शादी हो जाती है। यह फ़िल्म समाज में एक संदेश देता है कि छुआ छूत आपका भ्रम है । नहीं तो भगवान ने सबको एक जैसा ही बनाया है , अन्तरजातिय विवाह के लिए भी लोगों को प्रेरित करता है ।

कुल मिलाकर यह फ़िल्म हर पहलू पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही है ।

लेखक:अंकित शुक्ला

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