जाने किस तकनीक ने बांझ शब्द से स्त्री को दिलाई मुक्ति
बांझ यह शब्द भारत में एक ऐसा शब्द था जो स्त्री के मातृत्व की ना केवल गाली होती थी बल्कि उस स्त्री व उसके परिजनों को समय-समय पर अनेक बार सामाजिक रुप से प्रताड़ना मिलती थी।
बांझ यह शब्द भारत में एक ऐसा शब्द था जो स्त्री के मातृत्व की ना केवल गाली होती थी बल्कि उस स्त्री व उसके परिजनों को समय-समय पर अनेक बार सामाजिक रुप से प्रताड़ना मिलती थी। तब स्त्री आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाती थी जबकि प्रजनन में पुरुष और स्त्री दोनों की ही सहभागिता होती है परंतु इस कलंक का तिलक महिला के माथे पर ही लगता था। काफी हद तक इस कलंक को दूर करने हेतु आज से 43 वर्ष पूर्व इंग्लैंड में एक ऐसी खोज जिसने अब काफी हद तक इस कलंक को मिटा देता है। यह कलंक इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट (आई वी एफ) इलाज के माध्यम से की प्रजनन करने की बीमारी को दूर कर दिया।
प्रजनन पूरे विश्व में एक आम समस्या के रूप में स्थापित थी ऐसा माना जाता है की पूरी दुनिया में 15 परसेंट लोग इस समस्या से प्रभावित हैं। भारत जैसे विकासशील देश में यह समस्या डब्ल्यूएचओ के मुताबिक और अधिक समस्या थी। डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में 4 कपल में से एक कपल बच्चा पैदा करने की परेशानी का सामना करते हैं। प्रजनन में आ रही समस्या को लेकर भारत जैसे देश में इस पर बात करने से हिचकते थे क्योंकि आज भी पति पत्नी वैवाहिक संबंध को लेकर आम भारतीयों में अपने बड़े बुजुर्गों के साथ डॉक्टर से भी खुलकर बात करने में कोताही बरती जाती है। जिसकी वजह से इस बीमारी के इलाज में देर हो जाती है बल्कि काफी परसेंटेज में स्त्रियां अपनी मातृत्व सुख को और पिता अपने पैतृक सुख से वंचित रह जाता है परंतु धीरे धीरे भारत में आईवीएफ की आने के बाद साथ ही भारतीय डॉक्टरों के अथक प्रयास व चालाकी से वैवाहिक जोड़ों के साथ उनके घर वालों को मोटिवेट और शिक्षित करने का काम करने से अब इस समस्या से शहरी नहीं गांव में भी काफी हद तक निदान हो रहा है। चिकित्सक डॉक्टर विवेक अग्रवाल का कहना है विवाह के या बच्चे की चाह के ज़्यादा वर्ष तक इंतज़ार नहीं करना चाहिए। अगर साथ रहते हुए एक साल तक गर्भ धारण नही हो रहा है तो चिकित्सक सलाह लेने से उम्मीद व परिणाम अच्छे आते हैं। जरुरी नही है आपको इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट से गुजरना पड़े।
इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट को इंग्लैंड को सबसे बड़े शोधकर्ता के रूप में माना जाता है। कारण इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट में 25 जुलाई 1978 को एक बहुत बड़ी सफलता लुईस ब्राउन पैदा होने वाली पहली बच्ची के रूप मिली ओर विश्व की इस इलाज की लुईस ब्राउन पहली बच्ची बनी। यह सब डॉ पैट्रिक स्टेप्टो, रॉबर्ट एडवर्ड्स और उनकी टीम की सालों की कोशिश के बाद संभव हो पाया। इन 42 सालों में 8 मिलियन से अधिक बच्चों का जन्म विभिन्न "असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक" के माध्यम से हुआ है। आईवीएफ के साथ-साथ कई अन्य टेक्निक तब से विकसित हुई हैं। हर साल 25 जुलाई को रिप्रोडक्टिव मेडिसिन में हुए महान अविष्कार को याद करने के लिए इसे 'वर्ल्ड आईवीऍफ़ डे' के रूप में हर साल मनाया जाता है।
भारत ही नहीं पूरा विश्व पुरुष प्रधान देश है या कहिए कि पुरुष अपनी सोच ,काबिलियत,ताकत ,अच्छाई ,कमाई ,कमी ना होना यह प्रथम पंक्ति में आँकता है और अपने दोष को भी स्त्री के ऊपर मढ़ने की एक सोच बना ली है जबकि प्रजनन मैं केवल महिलाओं ही हमेशा दोषी नहीं होती है। यह एक मिथक है आज के समय में या पुराने समय में जबकि पुरुष भी उतना ही प्रजनन ना हो पाने में जिम्मेदार हो सकता है जितना की महिलाएं। इन्फर्टिलिटी होने के आम कारण पर हमको ध्यान देना चाहिए। इन्फर्टिलिटी के सामान्य कारण महिलाओं में फैलोपियन ट्यूब ब्लॉकेज,ओवुलेटरी डिसफंक्शन, एंडोमेट्रियोसिस आदि जैसे मेडिकल कारण शामिल होते हैं और पुरुषों में इन्फर्टिलिटी होने का कारण खराब शुक्राणु की क्वॉन्टिटी या क्वॉलिटी होती है। इन्फर्टिलिटी का दूसरा महत्वपूर्ण कारण लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याएं हैं जिसमें ज्यादा उम्र में शादी करना, डिलीवरी को पोस्टपोन करना, स्ट्रेस, अनहेल्दी फ़ूड, शराब और तंबाकू का सेवन शामिल होता हैं।
रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी की निम्न प्रकार अभी तक प्रचलित हैं इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF),इंट्रास्टोप्लामिक स्पर्म इंजेक्शन ICSI) ,प्रीइमप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT),क्रायोप्रेज़र्वेशन या फ्रीजिंग। आज भारत की लगभग हर अस्पताल में इंफिनिटी ट्रीटमेंट की व्यवस्था है डॉक्टर द्वारा तमाम सेमिनार करके भारत में और विदेशों में सेमिनार में एक दूसरे की विचारों को आदान प्रदान करके स्त्री के बांझ के कलंक को मिटाने की कोशिश की जा रही है। परंतु आज भी यह ट्रीटमेंट मैं काफी सावधानियों के साथ सक्षम हाथों वह सभी सुविधाजनक अस्पतालों के माध्यम से कराना चाहिए क्योंकि इसमें काफी आर्थिक बोझ पड़ता है।
चिकित्सा हमेशा से ही नोबेल कार्य माना जाता रहा है पर कहते हैं ना एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है इसी प्रकार कुछ चिकित्सकों द्वारा प्रोफेशन का रूप ना देकर व्यवसाय का रूप दे दिया है और वह मरीज को गुमराह करके ना केवल उनका शारीरिक कष्ट पहुंचाते हैं बल्कि आर्थिक हानि भी पहुंचाते हैं। इन सब में अखबार द्वारा प्रेषित बड़े-बड़े विज्ञापनों के झांसे में मरीज आ जाता है हर चिकित्सक अपने अपने स्तर से व प्लेटफार्म पर आकर इस बात को कहते रहे हैं कि किसी भी मरीज को इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट लेने से पहले चिकित्सक द्वारा किए गए कार्य की गुणवत्ता व्यवहारिकता और सार्थकता को जानकर ही लेना चाहिए ताकि आप अगर सफल या असफल होते हैं परंतु उस इलाज से अगर संतुष्ट हो जाते हैं तो आप अन्य स्त्री को मातृत्व सुख दिलाने में जो सहयोग करके उस परिवार को खुशी दिलाएंगे। वह आपके प्रजनन की असफलता के दंश को काफी हद तक दूर कर देगा क्योंकि अगर चिकित्सक अपना कार्य करते है यह जरूरी नहीं हैं ईश्वर द्वारा आपको संतान सुख नहीं देना भाग्य में लिखा है ,चिकित्सक भी एक सीमा पर आकर हार सकता हैं।
आगरा में भी तमाम इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के तमाम तरीकों से हजारों बच्चों ने आज जन्म ले रखा है प्रदेश व आगरा शहर का पहला बच्चा विश्व के पहली उपलब्धि के 20 वर्ष बाद 1998 में दुनिया में लाकर आगरा के डॉक्टर मल्होत्रा दम्पति शहर की महिलाओं में आशा की किरण जगायी। अनेक परिवार में आज खुशियां हैं ईश्वर हर परिवार में किलकारी गूंजी ऐसी ही हम लोग मनोकामना करते हैं वह सभी आईवीएफ ट्रीटमेंट करने वाले चिकित्सकों का उत्साहवर्धन करते हुए उन्हें बधाई व शुभकामना देते हैं कि वह देश दुनिया में सभी लोग एक दूसरे चिकित्सकों से अपने अनुभव शेयर करें साथ ही गांव देहात में भी इसके कैंप लगाकर वहां पर इसका प्रचार प्रसार करके उनकी संकीर्ण मानसिकता को दूर करने का प्रयास करेंगे।