लाठीचार्ज के बाद रोया पूरा देश, कर दी गई पुलिस अफसर की हत्या
"मेरा मज़हब हक़परस्ती है, मेरी मिल्लत क़ौमपरस्ती है, मेरी इबादत खलकपरस्ती है, मेरी अदालत मेरा ज़मीर है, मेरी जायदाद मेरी क़लम है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं।" - लाला लाजपत राय
रामकृष्ण वाजपेयी
लाठीचार्ज में घायल होने के बाद, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के क़फन की कील बनेगी।‘ क्या आपको पता है ये किसने कहा था। कब कहा था और क्यों कहा था। ये किस के आखिरी बोल थे। जिसके न रहने पर महात्मा गांधी ने कहा था कि "भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी। वे अमर रहेंगे।" जिसकी मौत पर पूरा देश रोया था और क्रांतिकारी जिनकी मौत का बदला लेने के लिए कर दी गई पुलिस अफसर की हत्या। हंसते हंसते फांसी पर चढ़ गए तीन अमर बलिदानी। जिसका कहना था, "मेरा मज़हब हक़परस्ती है, मेरी मिल्लत क़ौमपरस्ती है, मेरी इबादत खलकपरस्ती है, मेरी अदालत मेरा ज़मीर है, मेरी जायदाद मेरी क़लम है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान हैं।" वह सपूत लाला लाजपत राय थे।
लाला लाजपत राय का आज है जन्मदिन
लाल-बाल-पाल में से एक लाला लाजपत राय का आज जन्मदिन है। आजीवन ब्रिटिश हुकूमत दिलेरी से सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय को 'पंजाब केसरी' और शेर ए पंजाब भी कहा जाता है।
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 में पंजाब के ज़िला फ़रीदकोट के ग्राम ढुंढिके में हुआ था। उनके पिता लाला राधाकृष्ण लुधियाना ज़िले के जगराँव क़स्बे के निवासी अग्रवाल वैश्य थे। लाला राधाकृष्ण अध्यापक थे और उर्दू फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। लाजपत राय के पिता वैश्य थे, किंतु उनकी माती सिख परिवार से थीं। दोनों के धार्मिक विचार भिन्न-भिन्न थे। बावजूद इसके दोनो में बेहतरीन सामंजस्य था।
आरंभिक शिक्षा के बाद 1880 में लालाजी ने कलकत्ता तथा पंजाब विश्वविद्यालय से एंट्रेंस की परीक्षा एक वर्ष में उत्तीर्ण की और आगे पढ़ने के लिए लाहौर आ गए। यहाँ गवर्मेंट कॉलेज से 1882 में एफ.ए. की परीक्षा तथा मुख़्तारी की परीक्षा साथ-साथ उत्तीर्ण की। यहीं वे आर्य समाज के सम्पर्क में आये और उसके सदस्य बने।
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लाला लाजपत राय ने मुख्तार यानी छोटे वकील के रूप में अपनी आजीविका की शुरुआत की। वकालत करते हुए ही लाला लाजपत राय-लोकमान्य तिलक तथा विपिनचन्द्र पाल के संपर्क में आए। इन तीनों ने मिलकर कांग्रेस में गरम विचारधारा का प्रवेश कराया। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से ही जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया।
पहले भाषण में ही सिंह गर्जना
जब ब्रिटिश युवराज का भारत में आगमन हुआ तो लालाजी ने उनका डटकर विरोध किया। कांग्रेस के मंच ये यह अपने तरह का पहला भाषण था, जिसमें देश की अस्मिता प्रकट हुई थी।
1907 में पंजाब के किसानों में अपने अधिकारों को लेकर चेतना उत्पन्न हुई तो सरकार का क्रोध लालाजी तथा सरदार अजीतसिंह पर उमड़ पड़ा और इन दोनों नेताओं को निर्वासित कर बर्मा अब म्यांमार के मांडले नगर में नज़रबंद कर दिया गया, लेकिन देशवासियों के प्रबल विरोध पर अंग्रेज सरकार को अपना यह आदेश वापस लेना पड़ा। लालाजी पुनः स्वदेश आ गये। समय बीतने के साथ लालाजी अपने भीतर और बाहर क्रांति की मशाल तेज करते रहे।
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30 अक्टूबर 1928 को लालाजी ने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये। उस समय इन्होंने कहा था: "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।" और वही हुआ भी; लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से इनका देहान्त हो गया।
भड़क उठा पूरे देश में गुस्सा
लाला जी के निधन ने पूरे देश को झकझोर दिया। क्रांतिकारियों का गुस्सा भड़क उठा। सारा देश उत्तेजित था। इस मौके पर चंद्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर। लालाजी पर हुए जानलेवा लाठीचार्ज का बदला लेने का निर्णय किया।
और देशभक्तों ने अपने प्रिय नेता की हत्या के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली। 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया गया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सजा हुई।
लाला लाजपत राय न सिर्फ क्रांतिकारी थे बल्कि देश की आर्थिक उन्नति में भी उनका योगदान है। देश के सबसे बड़े पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना लाला लाजपत राय ने ही की थी।
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लाला लाजपत राय ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज एवं कल्याण चन्द्र दीक्षित के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जानते हैं।
लालाजी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण और कई महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं। उन्होने देश में और विशेषतः पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बहुत सहयोग दिया। देश में हिन्दी लागू करने के लिये उन्होने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था।
महात्मा गांधी ने सही ही कहा था कि "भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी।