Bhairavi: भैरवी-क्या पीछे वापस लौटना चाहेगी

Bhairavi: शिवानी के इस उपन्यास में सिद्ध साधकों और विकराल रूप धारिणी भैरवियों की कहानी लिखी गई है। उनके जीवन वृत को दर्शाता यह उपन्यास बताता है कि किसी भी रास्ते पर चलकर, उससे पीछे अपने अतीत में लौटकर आ पाना असंभव होता है। अगर लौटने की कोशिश कर भी लो तो भी या तो वर्तमान आपको स्वीकार नहीं कर पाता है या आप उस वर्तमान में सहज नहीं हो पाते हैं।

Update:2023-06-22 08:47 IST
भैरवी-क्या पीछे वापस लौटना चाहेगी (Photo- Social Media)

Bhairavi: बिपरजॉय के तांडव से बहुत कुछ तहस-नहस हो चुका है, मानसून अपनी अलग दस्तक दे रहा है, देश के कुछ राज्य बारिश में भीगे हुए हैं तो कुछ गर्मी के थपेड़ों से निकलते पसीने से तर-बतर हैं। मणिपुर पूरे भारत से अलग-थलग अपनों की ही लगाई आग में झुलस रहा है, जो कि निश्चय ही दुखद है। पता नहीं कब जाकर राधा कृष्ण के अनन्य प्रेम को दर्शाती रासलीला वाले 'मणिपुरी नृत्य' के उत्पत्ति स्थल मणिपुर में दोबारा शांति बहाल होगी।

असम मां कामाख्या का स्थल है और अब जबकि मां कामाख्या के रजस्वला होने के दिन नजदीक आ रहे हैं तो वार्षिक अंबुवासी मेले की चहल-पहल भी बढ़ती जा रही है। तांत्रिक, अघोरी, सिद्धि साधक स्त्रीत्व के इस त्रिदिवसीय उत्सव को मनाने और अपनी तांत्रिक उर्वरता को सिद्ध करने के लिए देश के दूर-दूर कोनों से नीलाचल पहाड़ पर आते हैं, जिनमें स्त्री अघोरी और तांत्रिक भी शामिल होती हैं। इन स्त्री तांत्रिको को देखकर मुझे शिवानी द्वारा लिखित उपन्यास 'भैरवी' की याद आ जाती है। पद्मश्री सम्मान से अलंकृत गोरा पंत 'शिवानी' एक बेहद प्रसिद्ध लेखिका थीं, जिनके लेखन में उदारवादिता और परंपरानिष्ठता का अद्भुत मेल था।

भैरवियों के जीवन वृत को दर्शाता यह उपन्यास

शिवानी के इस उपन्यास में सिद्ध साधकों और विकराल रूप धारिणी भैरवियों की कहानी लिखी गई है। उनके जीवन वृत को दर्शाता यह उपन्यास बताता है कि किसी भी रास्ते पर चलकर, उससे पीछे अपने अतीत में लौटकर आ पाना असंभव होता है। अगर लौटने की कोशिश कर भी लो तो भी या तो वर्तमान आपको स्वीकार नहीं कर पाता है या आप उस वर्तमान में सहज नहीं हो पाते हैं। शिवानी द्वारा लिखित अभी तक मैंने यह एकमात्र उपन्यास ही पढ़ा है लेकिन शिवानी को पढ़ना उतना सहज नहीं है। उनके उपन्यास का मूल आधार एक सीधा, सरल, सहज समाज का ही अंग होता है लेकिन उनको पढ़ना फिर भी बहुत ध्यान चाहता है।

'क्या रंग था लड़की का! और कैसी अपूर्व आंखें- एक तो इधर उसकी गुइयां ताहिरा ने, उन शरबती आंखों में सुरमे के स्याह डोरे डाल उन्हें और भी सरस बना दिया था, उसे पर पारदर्शी त्वचा पर मुसलमानी धानी- ऊदे लच्छे की शोभा, लहरें सी मारने लगी थीं।'

यह उपन्यास इसकी नायिका भैरवी उर्फ चंदन के अतीत की यात्रा है। जहां उसकी मां का अतीत, उसका अपना बचपन और फिर जवानी के दिन, फिर उसकी शादी, वह पहाड़ी जीवन सब कुछ होते हुए भी अंत में पाठकों को शिवानी एक दोराहे पर खड़ा कर के छोड़ देती हैं। अलग-अलग शहरों में रहने के कारण शिवानी महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को भली प्रकार जानती थीं, समझती थीं तभी तो वह उनका चित्रण इतना बखूबी कर पाई थीं। तभी तो जब चंदन अपने पति विक्रम के साथ ट्रेन से कोलकाता की यात्रा कर रही थी तब चार फौजी जवानों द्वारा उसकी सुंदरता को देखकर, उसके ऊपर उनकी गंदी नजरों का शिवानी ने इस तरह से वर्णन किया है कि पढ़ने वाला अपनी मुठि्या भींच लें।

'दूसरा नर व्याघ्र उसे अपनी ओर खींचने ही लगा था कि वह बिजली सी तड़पी। और कुछ न हो, रेलगाड़ी का द्वार तो वह अंधेरे में भी टटोल ही सकती थी। पूरे वेग से भाग रही रेलगाड़ी का द्वार पाते ही, उसने फिर एक क्षण भी विलंब नहीं किया। आठ-आठ भूखीं बाहों को छलती वह द्वार खोलकर कूद गई थी। मृत्यु और केवल मृत्यु ही अब उसके कलुष को मिटा सकती थी।'

वे महिलाएं जिनकी शादी उनकी इच्छा के विरुद्ध हो जाती है, वे शिक्षा के माध्यम से स्वतंत्रता और सशक्तिकरण के लिए संघर्ष करती हैं। भैरवी में शिवानी का नारीवादी झुकाव परिलक्षित होता है। हमारा देश भले ही 21वीं सदी में चल रहा हो परंतु कुछ अंधविश्वास आज भी हमारे संस्कारों में जड़ हैं।

'श्वसुर ने जानबूझकर ही संस्कारी जमाता के अंधविश्वास पर कुठाराघात किया था, किंतु संस्कारों की जटिल ग्रंथि कटी नहीं। उनके स्टिफ स्टार्च वाले कॉलर के नीचे अभी यज्ञोपवीत का पवित्र साया था इसी से कुछ संस्कारों में रह गए थे।'

चाहे स्त्री कहीं भी रहे, इस सभ्य कहलाने वाले समाज में या उन अघोरियों के बीच, शिवानी जानती थीं कि वह कहीं भी सुरक्षित नहीं रह सकती। पुरुष वर्ग की उस ललचाई नजरों को भी वे पकड़ लेती हैं और अनुचित समाज में सुरक्षा की कोई भी भावना अल्पकालिक होती है यह वह यहां बताती भी हैं।

'मरद का मन, चाहे वह लाख साधे औकात में होता है एकदम देसी कुत्ता। सामने हड्डी रख दो तो कितना ही सिखाया- पढ़ाया हो, कभी लार टपक बिना रह सकता है?'

शिवानी ने यह उपन्यास मनोरंजन के लिए नहीं लिखा है बल्कि एक नारीवादी दृष्टिकोण, उसकी योग्यता को परखने का यह लेखा-जोखा है। भैरवी में वे अपनी शैली को बरकरार रखती हैं, उसके लिए तद्भव शब्दों का प्रयोग करने से भी पीछे नहीं हटती हैं।

'कहां मिलेगा ऐसा सौंदर्य? इस सुंदरी का दर्पण भी उसके मुख को प्रतिबिंबित करने की क्षमता नहीं रखता। पारिजात की सुगंध से खिंची भ्रमरावली सी आत्मन में एकाकार होने की आकांक्षा में साधनारत तपस्वियों की आत्मन-सी- उसे देखते ही मानव मात्र की दृष्टि सब कुछ छोड़ इसी की ओर खींची चली जाती है।'

पूरे उपन्यास में शिवानी कहीं बहुत तेज गति से भागती हैं तो कहीं इतने उतार-चढ़ाव हैं कि पिछली पूरी कथा कहानी को बहुत याद रखना पड़ता है। पूरा उपन्यास अघोरियों के जीवन विशेष कर स्त्री अघोरियों के जीवन को दर्शाता है, उनकी नारी सुलभ इच्छाओं का भी वर्णन करता है ।

भैरवी अपने नायक की खोज करती है

'उसे निर्विकार नग्नता को देखकर भी चंदन को भय नहीं हुआ। बीच-बीच में वह अपने लंबे चिमटे से बुझती धुनी की राख को उखेलता और अपनी शिशु -सुलभ हंसी से चमकते हुए चेहरे को नीचे झुका लेता। वह हंस रहा है यह चंदन उसकी हिलती चौड़ी पीठ को देखकर ही समझ लेती, पर कौन सी स्मृति उसे ऐसे गुदगुदा रही थी?'

भैरवी अपने नायक की खोज करती है और अंत में उसके फिर से मिल जाने पर भी वह उसे खोज को खत्म नहीं करती है। किस तरह से स्त्री कितनी बार हार -जीत के जीवन को जीती है, अनिश्चितताओं में रहती है, दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को झेलती है पर प्रयास जारी रखती है। इन स्त्री अघोरियों को देखकर हमेशा मेरे मन में यही ख्याल आता रहा कि यह क्यों अघोरी बन जाती हैं। कैसे उनका जीवन होता है? क्या उनकी यह चिलम पी हुई सुर्ख लाल आंखें कभी रोती नहीं होंगी? क्या यह जो रुद्राक्ष की माला उन्होंने गले में पहन रखी है वह कभी मंगलसूत्र या अन्य स्वर्णाभूषणों को नहीं चाहती होंगी? क्या यह अघोरी जीवन उनका सुरक्षा देता है? क्या यह लाल -काले कपड़े, यह लंबी-लंबी जटाएं उनके स्त्रीत्व को अंदर से भी खत्म कर देती होंगी। इन्हीं बहुत सारे सवालों की खोज थी शिवानी की भैरवी को पढ़ना। अब मेरी यह नजरें जब भी किसी स्त्री अघोरी को देखेंगी तो उसमें शिवानी की भैरवी को जरूर तलाशेगी जो जिंदगी के इस दोराहे पर कभी खड़ी होकर वापस पीछे लौटना लौटकर जाना चाहेगी क्या?

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