Amarnath Yatra: अमरनाथ यात्रा साकार से निराकार की यात्रा

Amarnath Yatra: बहुत खूबसूरत, कल- कल बहती दुधिया फेन वाली नदियों और रौनकता वाले पहलगाम और चारों तरफ़ फूलों ही फूलों से ढके गुलमर्ग के बाद हमारा अगला पड़ाव था सोनमर्ग

Report :  Anshu Sarda Anvi
Update: 2024-08-04 14:16 GMT

Amarnath Yatra

Amarnath Yatra: देवाधिदेव महादेव को प्रिय महीना सावन चल रहा है और देश भर से इस समय रोजाना हजारों श्रद्धालु औघड़दानी बाबा बर्फानी के दर्शनों को जा रहे हैं। अब जबकि 52 दिवसीय बाबा बर्फानी की कठिन तीर्थ यात्रा जो सावन पूर्णिमा यानी 19 अगस्त को अपने समापन पर होगी, मुझे अपनी 15 वर्ष पूर्व की गई अमरनाथ यात्रा की बिखरी हुई स्मृतियों को सहेजने का अवसर मिला। बात आज से 15 वर्ष पहले यानी 2009 की है जब मैं अपने पति राकेश जी एवं बच्चों और अपने एक मित्र संदीप अग्रवाल और उनके परिवार सहित कश्मीर घूमने गई। गुवाहाटी से दिल्ली और फिर दिल्ली से इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट से हम श्रीनगर पहुंचें । यह मेरी और मेरे बच्चे जो कि उस समय क्रमशः ढाई साल और साढ़े पांच साल के थे, की यह पहली हवाई यात्रा थी। श्रीनगर में एयरपोर्ट पर उतरते ही गर्म हवा के थपेड़ों जिसकी हमें बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,ने हमारा स्वागत किया। वहां से हमने पहले से ही बुक करी हुई इनोवा से , जिसके ड्राइवर कादिर भाई, ड्राइवर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट थे, खूबसूरत पहलगाम की यात्रा शुरु की।

बहुत खूबसूरत, कल- कल बहती दुधिया फेन वाली नदियों और रौनकता वाले पहलगाम और चारों तरफ़ फूलों ही फूलों से ढके गुलमर्ग के बाद हमारा अगला पड़ाव था सोनमर्ग, एक बहुत ही छोटा सा, उबड़-खाबड़ सा पर्यटन स्थल था या शायद हमें लग रहा था। हम सभी वहां के छोटे से होटल में आकर कुछ बहुत अधिक उत्साहित नहीं थे। पर कहते हैं न कि जो होता है वह अच्छे के लिए ही होता है। ईश्वर हमारे लिए कौन सा रास्ता चुन कर हमें क्या दिखाना चाहता है वह हमें खुद भी कहां पता होता है।


ईश्वर की योजना हमारे लिए हमेशा अच्छी ही होती है। किसी को सुख में भी दु:ख जैसा लगता है तो किसी को दुःख में भी सुख का एहसास करा देना यही ईश्वर की दैवीय शक्ति है। होटल के रिसेप्शन पर अमरनाथ यात्रा के बारे में और होटल में एयर डेक्कन के कर्मचारियों के रुके होने की जानकारी मिली। एयर डेक्कन व हिमालयन हेली उस समय हेलीकॉप्टर द्वारा अमरनाथ यात्रा को बालटाल से संचालित कर रहे थें। 2015 से नीलग्राथ स्थित सरकारी हेलीपैड से अमरनाथ जी के लिए हेलीकॉप्टर सेवा संचालित होती है। अब हम सभी अति उत्साह में बगैर नींद के ही अमरनाथ यात्रा के सपने देखने लग गए थ। एयर डेक्कन के कर्मचारियों ने प्री बुकिंग पर अपनी असमर्थता जताई क्योंकि यह यात्रा श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित थी। अंततः यह तय हुआ कि सुबह जल्दी उठकर बालटाल के बेस कैंप पर पहुंचना है।


छोटी सी रात चारों बच्चों और लेकर योजना बनाने और आवश्यक पैकिंग में हमें बहुत लंबी लग रही थी। गुवाहाटी से हमारे अभिभावकों द्वारा यात्रा के लिए मना कर देने के कारण राकेश जी के मन में कुछ डर और आशंकाएं थीं। उनके पास मना करने के लिए जायज कारण थे , पहला बच्चों का बहुत छोटा होना और दूसरा यात्रा का कठिन परिस्थितियों वाली होना। 1995 में अमरनाथ यात्रा पर हुआ आतंकी हमला भी डर का एक बड़ा कारण था। हमारे यह समझाने पर कि हो सकता है हम सपरिवार फिर कश्मीर घूमने आएं, पर अमरनाथ यात्रा के समय में यहां आएं यह मुश्किल है ।

और जब बाबा बर्फानी के दर्शन लिखे हों तो बिना तय कार्यक्रम के भी यात्रा हो जाती है और नहीं लिखे हों करी गई तैयारी भी धरी रह जाती है। हम नहीं जानते थे कि आगे क्या होगा पर मन में भोलेबाबा के सपरिवार बर्फानी स्वरूप के दर्शन का भाव, आशा और विश्वास हमारे अंदर था। अपने ढाई साल के छोटे बेटे के लिए खाने-पीने और पहनने- ओढने का इंतजाम रखकर हम सभी गर्म पानी से नहा कर रात्रि के 3:00 बजे होटल से निकल लिए। कादिर भाई की गाड़ी में हमने कंबलें डाल ली थी क्योंकि रास्ते में बहुत ठंड थी। आधे से अधिक रास्ता पार करने के बाद हमें एक चेक पॉइंट पर सेना द्वारा रोक दिया गया क्योंकि उसे समय पौ भी नहीं फटी थी और आगे का सफर करने में खतरा था । दिन उगने के बाद ही हमें उस सफर को समूह में सेना के एस्कॉर्ट में जाने की इजाजत थी।


कादिर भाई द्वारा कुछ बात करने के बाद गाड़ी को आगे को जाने दिया। सोनमर्ग से 1 घंटे के रास्ते पर हम सुबह के 4:00 बालटाल बेस कैंप पहुंच चुके थे। यहां प्री बुकिंग करे हुए तीर्थ यात्री मौजूद थे। हम दोनों महिलाएं, चारों बच्चों को लेकर एक सुरक्षित जगह देखकर बैठ गएं। हमने अपना जो भी समान अधिक लग रहा था , गाड़ी में ही यह सोचकर छोड़ दिया कि शाम तक हम वापस आ जाएंगे। यहां मोबाइल का नेटवर्क नहीं होने के कारण कादिर भाई से संपर्क का भी कोई साधन नहीं था। अब हमारी भक्ति , आस्था और विश्वास की दृढ़ता की असली परीक्षा शुरू होने जा रही थी। हम एक ऐसा पेपर देने जा रहे थे जिसकी हमने की गाइड तक नहीं पढ़ी थी। बस कुछ धेले भर का ज्ञान लेकर हम बाबा अमरनाथ की यात्रा की परीक्षा देने चले आए थे।


पहले दिन एयर डेक्कन के एक हेलीकॉप्टर के अमरनाथ गुफा के पास उतरते समय उसके ब्लेड में फंसकर एक महिला यात्री की मृत्यु हो गई थी और दुर्भाग्य से एक हेलीकॉप्टर उस दिन खराब हो गया था। अब वहां पर हेलीकॉप्टर के आने- जाने की संख्या सीमित थी। जब एक हेलीकॉप्टर यहां से उड़ान भरता तब दूसरा हेलीकॉप्टर अमरनाथ गुफा से वापस बालटाल की तरफ उड़ान भरता था। 10 मिनट के इस रास्ते में इस आने-जाने की प्रक्रिया में अच्छा खासा समय भी लग रहा था । यह वह समय था जब हेलीकॉप्टर अमरनाथ गुफा से एक किलोमीटर पास तक जाता था। उसके अगले ही वर्ष से अब हेलीकॉप्टर अमरनाथ की पवित्र गुफा से 6 किलोमीटर पहले ही छोड़ देगता है।


कारण कि हेलीकॉप्टरों की गर्मी से प्राकृतिक गुफा को और शिवलिंग को बहुत हानि होती थी। राकेश जी और उनके मित् टिकट बुकिंग के लिए लाइन में लग गए थे। हमने बालटाल एयरबेस कैंप पर ही लंगर में मिलने वाली चाय और बिस्किट को बच्चों को खिलाया। और धीरे-धीरे जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, हमारी प्रतीक्षा हमें लंबी, और लंबी लगती जा रही थी। धूप तेज होने के कारण हमने अपने-अपने स्वेटर भी खोल दिए थे। वहां पर खाने-पीने का और कोई साधन नहीं था।हम अपने साथ जो कुछ खाने- पीने का सामान लेकर आए थे, उनके साथ ही भोजन किया। काफी जद्दोजहद के बाद दोपहर के लगभग 2:00 बजे हमें हेलीकॉप्टर की टिकट मिली पर सिर्फ ऊपर जाने की टिकट इश्यू की गई थी। अब हमारे मन में खुशी भी थी कि हम बाबा अमरनाथ के दर्शनों को जा रहे हैं और एक चिंता भी थी कि जल्दी से जल्दी दर्शन करके वापस टिकट की लाइन में लगना है और नीचे भी उतरना है।


अपने नियत समय पर 3:00 बजे हमें हेलीकॉप्टर में बैठना था। हमारा रजिस्ट्रेशन हुआ और हमारा वजन चैक किया गया। वजन के अनुसार दोनों परिवारों को अलग-अलग हेलीकॉप्टर में आगे -पीछे में बैठना था। मुझे अपनी चुन्नी और बालों को कस के बांधने और बच्चे को अपने से चिपका कर, सिर नीचे झुका कर हेलीकॉप्टर में पीछे बैठने की हिदायत दी गई।राकेश जी को पायलट के साथ आगे बैठने को कहा गया। उस हेलीकॉप्टर के विदेशी पायलट ने उड़ान भरते ही मेरे पति के मन का का डर निकालने के लिए वहां पर मौजूद सिस्टम के बारे में बताया।3 से 4 मिनट की यह यात्रा इतनी खूबसूरत और आश्चर्य मिश्रित डर वाली थी कि उसको न तो शब्दों में कहा जा सकता है और न लिखा जा सकता है।

चारों तरफ रुई के फाहे सी श्वेताभ बर्फ से ढकी पहाड़ियां थीं और नीचे झांककर देखने से डर भी लग रहा था कि हमें सात पहाड़ियों के बीच से निकलकर अमरनाथ गुफा तक पहुंचना था। पर भोले बाबा का नाम लेकर हमने अपने मन को स्थिर किया। हमें नीचे उस बहुत दुर्गम रास्ते पर खच्चर और पैदल तीर्थ यात्री एक लाइन से जाते हुए दिखाई दे रहे थे। धन्य थे वे पैदल तीर्थयात्री जो बाबा अमरनाथ के प्रति अपनी श्रद्धा लिए इस कठिन मार्ग पर चलते जा रहे थे। हमें रास्ते में नीचे पानी के सोते, सुंदर, समतल मैदान और कहीं खड़ी चढ़ाई दिखाई दे रही थी। हेलीकॉप्टर ने अलग-अलग पहाड़ियों के बीच से घूमते हुए अमरनाथ गुफा के बाहर एक हैलीपेड पर हमें उतार दिया गया। एतिहात के साथ हम बाहर निकले।


अब हमारे सामने वह सुंदर, प्राकृतिक , पवित्र गुफा थी , जहां आने का हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। आज बाबा बर्फानी की ऐसी महती कृपा थी कि बिना किसी पूर्व योजना के अचानक बना हमारा कार्यक्रम सफल होने जा रहा था। राकेश जी छोटे बेटे को गोदी में उठाकर बहुत तेजी से सीढ़ियों से ऊपर की ओर चल दिए। हम प्राकृतिक गुफा की सीढ़ियों पर जैसे-जैसे कदम रख रहे थे हमें ऐसा लग रहा था कि हमारी यह नश्वर देह स्वर्ग लोक में आ गई हैं। भारतीय सेना के मुस्तैद जवान और बाबा के दर्शनों को आते तीर्थ यात्री, चारों तरफ़ जय बाबा बर्फानी का जयकारा। उन पत्थरों की सीढ़ियों पर संभाल कर चढ़ते -चढ़ते अब हम ऊपर अमरनाथ बाबा के सामने गुफा में थे और अपनी देह की सुध-बुध इस समय खो चुके थे।


हमें हमारी उम्मीद से कहीं अधिक, बहुत सुंदर बाबा बर्फानी के दर्शन हुए थे। सेना के एक जवान ने हमें माता पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय के भी बर्फ के बने स्वयंभू अवतरण दिखाएं।हम एकटक बाबा बर्फानी के अलौकिक रूप को ही देखे जा रहे थे। हम उस समय उस क्षण को अपने अंदर इतना अधिक आत्मसात कर लेना चाहते थे कि यहां हम बाबा बर्फानी के साथ एकाकर हो जाएं। हमने वहां उड़ते, किलोल करते सफेद कबूतरों के जोड़े को भी देखा। मेरी आंखों में पानी था कि प्रभु के दर्शनों के आगे अब और कोई सुख नहीं है। कुछ समय बाद जब हम अपने सांसारिक परिवेश में वापस लौटे तब हमें ध्यान आया कि हमें वापस नीचे उतरना है। हमने जल्दबाजी में प्रसाद भी नहीं खरीदा था। हमने वहां से प्रसाद खरीदा, सेना के जवानों को धन्यवाद भी किया और बाबा बर्फानी की तरफ हाथ जोड़कर धन्यवाद करके हम नीचे उतरने लगे। धीरे-धीरे शाम हो रही थी और 5:00 बजे बाद में हेलीकॉप्टर की टिकट की बुकिंग बंद हो जानी थी, कारण अंधेरा हो जाना था। राकेश जी ने हमें धीरे-धीरे आने की हिदायत दी और वह खुद छोटे बेटे को लेकर नीचे उतर लाइन में लग गए।

हमें नहीं पता था कि अगले 1 घंटे में हमारे साथ क्या होने को है। बहुत अच्छा या बहुत बुरा पर जब हम बाबा के दरबार में थे तब हमारे साथ बुरा होने का सवाल ही नहीं था। कुछ बहुत अच्छा ही भगवान ने हमारे लिए लिख रखा होगा। हम आगे आने वाले समय से अनजान लाइन में लग गए थे। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। हमसे पहले लगे हुए सभी यात्रियों को टिकट मिलता जा रहा था और हमसे ठीक एक नंबर पहले लगे हुए यात्री को भी वापस जाने का टिकट इश्यू हो गया। लेकिन यह क्या! जैसे ही हम टिकट खिड़की पर पहुंचे टिकट खिड़की बंद कर दी गई। हमने टिकट इश्यू करने के लिए काफी रिक्वेस्ट की कि हमारे साथ में बहुत छोटा बच्चा है और उसको हम कितना देर तक इस तरह से रखेंगे। लेकिन नियमों के बंधे डेक्कन के कर्मचारियों ने हमारी एक न सुनी और उन्होंने हमें कहा कि अगर आपको वापस जाना है तब आप चाहे पैदल उतरिए, चाहे खच्चर को किराए पर ले लीजिए लेकिन अब यहां से और किसी के लिए टिकट इश्यू नहीं होगा।

कारण कि नीचे से हेलीकॉप्टर की बुकिंग बंद कर दी गई है इसलिए जो हेलीकॉप्टर यहां ऊपर आएंगे उतने ही हेलीकॉप्टरों के हिसाब से यहां पर तीर्थ यात्रियों को टिकट बुक कर दी गई है। हमारे लिए अब काटो तो खून नहीं वाला हिसाब था क्योंकि हम अपने बच्चों के लिए जो भी कुछ खाने का लेकर आए थे, वह एक बिस्कुट का पैकेट छोड़कर सब खत्म हो चुका था और हम सभी को भी अब धीरे-धीरे पतले स्वेटर पहनने के कारण ठंड लगने लगी थी। यह हमारी भक्ति की शक्ति की परीक्षा थी। हमने सब कुछ अब बाबा बर्फानी पर ही छोड़ दिया था कि जो होगा देखा जाएगा। राकेश जी खच्चर को बुक कर नीचे उतर जाना चाहते थे, लेकिन हम सभी ने अपने हाथ खड़े कर दिए कि इस तरह से रात के समय में रिस्क लेकर नहीं जा सकते हैं। अब वहां रुकने के सिवाय कोई दूसरा उपाय नहीं था। जानकारी लेने से मालूम पड़ा कि वहां पर टेंट भी लगे हुए हैं और लंगर भी है जहां पर निःशुल्क खाना था और टेंट का किराया देकर हम टेंट को रहने के लिए बुक कर सकते थे।

बाबा बर्फानी की गुफा के एकदम नजदीक एक टेंट हमने पूरा किराए पर लिया जो की 10 आदमियों के लिए था। हमें वहां छोड़कर और बच्चों को संभालने की हिदायत देकर दोनों मित्र वापस अमरनाथ जी की दर्शनों को चले गए। बच्चे भूखे हो चुके थे और थक चुके थे इसलिए हमें उस टेंट में ही रुकना पड़ा। हमने वहां पर एक लंगर से चार -पांच प्लेट खाना लिया। खाना देते समय सेवादार नहीं सख्त हिदायत दी कि आपको जितना खाना खाना है उतना ही लेकर जाइएगा। क्योंकि यहां पर बहुत मुश्किल से, बहुत दूर से खाना बनता है और अनाज का एक-एक कण भी यहां पर बहुत कीमती है।बर्फ के पहाड़ पर चढ़ाई करके पब्लिक टॉयलेट बना दिए गए थे। थकान के कारण खाना खाकर हमने समय पर सोने का निश्चय किया कि सुबह जितना जल्दी हो हम फिर से वापसी के लिए हेलीकॉप्टर की लाइन में लगेंगे।


चारों तरफ बर्फ और उस बर्फ पर लगा यह टेंट। ठंड से बचाव के लिए हमें आठ कंबलें बिछानी पड़ी और आठ कंबले ही अपने ऊपर ओढ़नी पड़ीं। राकेश जी बहुत ज्यादा पैनिक ले चुके थे इसलिए उनको रात में ही वहां पर ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी। वह रात में उठकर दो बार सेना के कैंप तक गए जहां पर उनका बीपी वगैरह चैक करके, एक दवाई देकर वापस भेज दिया गया। उन्होंने रात में कांगड़ी, एक तरह की कश्मीरी अंगीठी की व्यवस्था कर ली थ हम सभी को उसकी गर्माहट से अच्छी नींद आ गई। सुबह उठकर हम लोगों ने अपना सामान पैक किया । अमरनाथ बाबा के दूर से हाथ जोड़कर, दर्शन देने और एक रात विश्राम का अवसर देने के लिए धन्यवाद करा। अब हम लाइन में लग चुके थे लेकिन मेरे छोटे बेटे ने पूरी तरीके से अपनी गर्दन गिरा दी थी।


उसको पहनाने के लिए हमारे पास में न तो अतिरिक्त कपड़े थे और न ही उसके लायक खाने-पीने का कोई सामान। हमारे मन में डर भी हो गया था कि हम किसी भी तरीके से अब नीचे पहुंचे। हमें बहुत जल्दी ही वापसी के हेलीकॉप्टर की टिकट मिल गई और जितने उत्साह से हमने ऊपर की यात्रा , की थी उसकी जगह अब हमारे मन में एक संतोष था कि हम वापस सुरक्षित बालटाल बेस कैंप तक पहुंच जाएंगे। नीचे उतरकर, मोबाइल टॉयलेट में फ्रेश होकर हमने और वहां पर चाय- बिस्किट को बच्चों को भी खिलाया और खुद भी खाया, जिससे हमारे अंदर थोड़ी ऊर्जा आ गई। दिल में एक सुकून था कि हमने बाबा बर्फानी के इतने सुंदर दर्शन किए जो कि हमें इस जिंदगी में दोबारा कभी नहीं मिलेंगे। कादिर भाई जो पूरी रातसे हमारा इंतजार कर रहे थे हमने उन्हें पूरी घटना बताई। इस तरह से हमारी बाबा अमरनाथ जी की यह यात्रा पूरी हुई। शायद इसी को भगवान द्वारा हमारे विश्वास, आस्था और भक्ति की परीक्षा लेना कहते हैं ।हमने भले ही पैदल यात्रा नहीं की अमरनाथ जी की लेकिन उस समय जो हमारी मन: स्थिति थी वह उस यात्रा की कठिनाइयों का ही एक इम्तिहान थी। पर हमारा विश्वास दृढ़ था और भोले भंडारी तो वैसे भी भोले हीं हैं, जो भक्तों की एक आह पर पिघल जाते हैं।

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