UP Election 2022 : क्या आगामी यूपी चुनाव में बेरोजगारी होगा एक अहम मुद्दा?

UP Election 2022 : उप्र में छोटी से बड़ी घटनाओं को सीधे 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है। यह प्रदेश हमेशा से राजनीति का केंद्र बिंदु बना रहा है।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Sushil Shukla
Update: 2021-07-15 08:12 GMT

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)

UP Election 2022 : भारत चुनावों के उत्सव का देश है। हमारे यहां चुनाव बड़े से बड़े संकट की कड़वी यादों को पीछे छोड़ देते हैं। आज कोविड-19 के बाद सबसे अधिक चर्चा उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव की होने लगी है। उत्तर प्रदेश में छोटी से लेकर बड़ी घट रही घटनाओं को सीधे 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है। गंगा के सबसे बड़े हिस्से को धारण करने वाला यह प्रदेश हमेशा से राजनीति का केंद्र बिंदु बना रहा है। देश को 9 प्रधानमंत्री देने वाला उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से हमेशा समृद्ध रहा है। यहां विधानसभा में कुल 403 सीटें और लोकसभा में 80 सीटें मौजूद है।

प्रतीकात्मक फोटो (साभार सोशल मीडिया)

आगामी विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच सभी राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियां चालू कर दी है। विशेष तौर पर भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अपनी तैयारियों को किसी भी अन्य दल की तुलना में अधिक रफ्तार दे दी है। जनसंख्या नियंत्रण कानून के जरिए योगी आदित्यनाथ समाज के बहुत बड़े प्रगतिशील तबके को जाति और धर्म से अलग एक नया वोट बैंक तैयार करना चाहते हैं। बड़े विज्ञापनों के जरिए प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान प्रबंधन में अनियमितता और उत्तर प्रदेश में व्याप्त बेरोजगारी की समस्या अभी भी सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का सबब बना हुआ है। आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्ष निश्चित तौर पर कोविड-19 के दौरान का कुप्रबंधन और असंतोष का रूप लेती बेरोजगारी को एक बड़ा मुद्दा बनाने जा रहा है। कोविड-19 के वर्तमान आंकड़ों के आधार पर दो उत्तर प्रदेश की सरकार खुद को बेहतर बता जरूर सकती है लेकिन बेरोजगारी के मुद्दे पर वह अभी भी चौतरफा घिरी हुई है.

योगी सरकार में रोजगार की स्थिति क्या है?

2017 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र जारी किया था, जिसका नाम लोक कल्याण संकल्प पत्र था। इसके संकल्प पत्र के अनुसार भाजपा नहीं अगले 5 वर्षों में 70 लाख रोजगार एवं स्वरोजगार के अवसर पैदा करने का वादा किया था। साथ ही साथ उत्तर प्रदेश में स्थापित हर उद्योग में 90 फ़ीसदी नौकरियों को प्रदेश के युवाओं के लिए आरक्षित करने की बात कही गई थी। सरकार बनने पर वादा किया गया था कि 90 दिनों के भीतर प्रदेश के सभी सरकारी पदों के लिए पारदर्शी तरीके से भर्ती की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी।

2017 का घोषणापत्र जारी करते भाजपा नेता (फाइल फोटो)

वर्तमान में उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दर 7 फ़ीसदी के नजदीक है। सरकार बनने के बाद से अभी तक 3.75 लाख सरकारी पदों पर रोजगार सृजन किए गए जोकि किए गए वादी से बेहद कम है। लेकिन वर्तमान योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए अच्छी बात यह है कि वह पूर्व की सरकारों (सपा और बसपा) से इस मुद्दे पर आंकड़ों में बेहतर दिखाई पड़ते हैं क्योंकि वर्ष 2007 से वर्ष 2017 तक महज 2,91,000 सरकारी नौकरियों का सृजन हुआ था। योगी सरकार के 5 वर्षों का यह आंकड़ा पूर्ववर्ती 10 वर्षों पर भारी है।

मार्च 2017 में यूपी की बेरोजगारी दर 17.50 फीसदी थी, वहीं यह आज 7 फ़ीसदी के नजदीक है। पिछले 5 सालों में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पुलिस विभाग में 1,37,253, शिक्षा विभाग में 121000, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में 28622, यूपी लोक सेवा आयोग में 22168, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन बोर्ड में 19917, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्यांण में 8556, माध्यमिक शिक्षा विभाग में 14436, यूपीपीसीएल में 6446, उच्च शिक्षा में 4988, चिकित्सा शिक्षा विभाग में 1112, सहकारिता विभाग में 726, नगर विकास में 700, सिंचाई एवं जल संसाधन में 3309, वित्त विभाग में 614, तकनीकी शिक्षा में 365, कृषि में 2059, आयुष में 1065 पदों पर भर्तियां की हैं।

उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी बड़ी समस्या क्यों?

उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी एक शाश्वत सत्य है और सरकार को इसके गंभीर परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं। वर्तमान राज्य सरकार पूर्व की सरकारों से तुलना करके बेरोजगार युवाओं को सांत्वना नहीं दे सकती है। आज उत्तर प्रदेश सरकारी नौकरियों के मामले में बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है। तमाम भर्तियां कोर्ट में फंसी हुई है और तमाम सरकारी रिक्त पदों पर भर्तियों की प्रक्रिया तेज नहीं हो पाई है।

युवाओं का गुस्सा इस घटना से समझा जा सकता है कि बीते 5 जून 2021 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जन्मदिन पर युवाओं ने यूपी बेरोजगार दिवस के रुप में मनाया था। शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, राजस्व, उर्जा जैसे कई महत्वपूर्ण विभागों में वर्तमान समय में 5 लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। बेरोजगार युवा लगातार इन पदों को भरने की मांग कर रहे हैं। बेरोजगारी की समस्या इतनी विभत्स है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा बताता है कि हर घंटे एक बेरोजगार युवा आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है।

वर्तमान योगी सरकार बेरोजगारी के खतरे को भांपते हुए लगातार मीडिया में आंकड़ों को जारी कर रही है। इसके जरिए वह रोजगार ना उत्पन्न करने के आरोप को नकारना चाहती है। हाल ही में यूपी इंडस्ट्रियल कंसलटेंट लिमिटेड के सर्वे का हवाला देकर सरकार ने 2.60 करोड़ लोगों को एमएसएमई इकाइयों में रोजगार मिलने का दावा किया है। इस सर्वे की सत्यता पर बहुत कुछ तो कहा नहीं जा सकता है लेकिन सरकार डैमेज कंट्रोल में लगी हुई है। युवाओं में बढ़ते आक्रोश को देखते हुए दिसंबर 2021 तक एक लाख सरकारी पदों पर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का वादा किया गया है लेकिन समस्या यह है कि कोविड-19 की महामारी के बीच यह प्रक्रिया निर्धारित समय पर कैसे पूरी की जाएगी? चुनाव आयोग की अधिसूचना के बाद आचार संहिता लागू हो जाएगी जिसकी वजह से सरकार कोई भी नया कार्य करने में असक्षम होगी। इसलिए यह चुनाव बेरोजगारी का होगा और चुनाव में युवा यह सवाल जरूर पूछेंगे कि सरकार 5 साल तक खाली पड़े रिक्त पदों पर नियुक्ति क्यों नहीं कर पाई?

लेखक - विक्रांत निर्मला सिंह

संस्थापक एवं अध्यक्ष

फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल।

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