BJP से सहमी पार्टियां, UP चुनाव में बिहार का प्रयोग दोहराने में जुटीं

Update:2016-10-28 21:22 IST

लखनऊ: यूपी में बीजेपी से डरे दुश्मन भी अब दोस्त होने के लिए लालायित हैं। यूपी चुनाव में बीजेपी के उठते ग्राफ को रोकने के लिए बिहार का प्रयोग दोहराने की तैयारी हो रही है। बिहार में नीतीश कुमार का जनता दल यू, लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस एक हो गए थे। कम सीट मिलने से समाजवादी पार्टी महागठबंधन से अलग हो गई थी।

राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार सेना के सर्जिकल स्ट्राइक और समाजवादी परिवार में हाल में हुई फूट का फायदा बीजेपी को मिलता दिखाई दे रहा है। इसलिए समाजवादी पार्टी का प्रयास बिहार जैसा गठबंधन बनाने की ओर है, जिसमें अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल, नीतीश का जेडीयू, लालू की पार्टी राजद, कांग्रेस और सपा रहेंगे।

अपनों के बयानों ने भी किया था बंटाधार

बिहार में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन सफल हो गया था। सफलता का श्रेय नीतीश के प्रचार का जिम्मा संभाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) के सिर गया लेकिन वहां बीजेपी ने फुटबाल खेल की भाषा में कई आत्मघाती गोल किए। ठीक चुनाव के पहले ही 'आरक्षण की समीक्षा' का सवाल आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने उठाया था तो 'गो हत्या पर कड़े कानून' की बात सुशील कुमार मोदी ने उठा दी। बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने भी कह दिया कि यदि उनकी पार्टी हारी को पाकिस्तान में दीवाली मनाई जाएगी। ये कुछ ऐसे बयान थे जो बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित हुए।

यूपी के हालात उलट हैं

लेकिन यूपी में हालात पूरी तरह उलट हैं। सभी जानते हैं कि अजित सिंह और मुलायम सिंह यादव में पुराना बैर है। अजित सिंह यदि सपा के साथ सीटों का तालमेल या समझोता करेंगे तो मजबूरी में ही। ये और बात है कि अजित सिंह बीजेपी और कांग्रेस के साथ चुनाव में कई बार सीटों का तालमेल या समझौता कर चुके हैं।

बसपा फैक्टर की होगी अहम भूमिका

बिहार से अलग जो एक मामला है, वो है मायावती की पार्टी बसपा। बसपा किसी भी पार्टी से किसी भी तरह का तालमेल करने को तैयार नहीं दिखती। मायावती कई बार कह चुकी हैं कि वो अकेले ही चुनाव लड़ेंगी।

क्या पीके फिर खिचड़ी पकाने की जुगत में?

सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव इस महागठबंधन के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं। वो 26 अक्तूबर को जदयू के महासचिव केसी त्यागी के घर कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मिले थे। हालांकि केसी त्यागी शिवपाल और प्रशांत किशोर के बीच किसी राजनीतिक बातचीत से इंकार करते हैं। राजनीति से जुड़े दो लोग मिलें और राजनीतिक बात नहीं हो, ऐसा संभव नहीं दिखाई देता। प्रशांत किशोर भी किसी दल के साथ तालमेल की वकालत कर चुके हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यूपी में पार्टी के विधायकों से गठबंधन पर बात की थी। लगभग सभी विधायकों ने गठबंधन पर अपनी सहमति दी। लगता है कि राहुल भी बीजेपी को रोकने के लिए गठबंधन पर हामी भर दें।

लालू रिश्तेदारी निभाने में जुटे

हालांकि लालू प्रसाद पहले ही कह चुके हैं कि उनकी पार्टी यूपी में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी लेकिन वो बीजेपी के खिलाफ प्रचार जरूर करेंगे। नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर आगे बढ़ने की बात कह चुके हैं।

पेंच कहां फंसेगा

गठबंधन पर बात हो तो सभी दलों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। खास कर सत्ताधारी दल ज्यादा से ज्यादा सीटें लेने की कोशिश करेगा। कांग्रेस की भी अपेक्षा होगी कि उसे ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलें ताकि वो यूपी में अपनी स्थिति मजबूत कर सके। ऐसी ही अपेक्षा नीतिश कुमार की पार्टी की भी होगी जो बिहार से सटे यूपी के जिले में अपनी स्थिति धीरे धीरे मजबूत कर रही है । यदि जदयू कुछ सीटों से अकेले चुनाव लड़े तो भले ना जीते लेकिन किसी को भी हरवा सकता है ।

अन्य छोटे दल भी हैं

इसके अलावा अलग-अलग इलाकों में प्रभाव रखने वाले छोटे दल भी हैं। अपना दल का एक धड़ा, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, पीस पार्टी के अलावा समाजवादी जनता पार्टी, जो कुछ इलाकों में अपना प्रभाव रखती है। सवाल ये कि क्या इन दलों को भी महागठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया जाएगा।

राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के कारण गठबंधन होता दिखता नहीं ओर यदि हो गया तो शायद चुनाव तक भी नहीं चले और उसके पहले ही टूट जाए।

Tags:    

Similar News