यूपी में टोपियों की राजनीति और राजनीति में टोपी
हाल ही में विधानसभा मे जब इन टोपियों का मामला उठा तो इस बात पर एक बार फिर बहस शुरू हो गयी कि आखिर इन टोपियों की अब कितनी उपयोगिता है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: गांधी टोपी पहनना देश की आजादी के लिए कभी संघर्ष का प्रतीक माना जाता था। इसके बाद जब देश आजाद हुआ और 1952 में पहले आम चुनाव हुए तो कांग्रेस ने गांधी टोपी को अपने ढंग से उपयोग करना शुरू कर दिया। कांग्रेस ने इस परम्परा को बराबर बनाए रखा। इसके अलावा अन्य दलों ने भी इसे अपनाने में कोई गुरेज नही की पर बदलते दौर में इन टोपियों की उपयोगिता कम होती गयी। अब तो सदन से लेकर सड़क तक कोई भी गांधी टोपी पहने नहीं दिखता। विधानसभा सत्र के दौरान जरूर कुछ विधायक रंगीन टोपियां पहने दिखाई देते हैं।
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विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों के सिर पर यह टोपियां अक्सर देखने को मिल जाती हैं
हाल ही में विधानसभा मे जब इन टोपियों का मामला उठा तो इस बात पर एक बार फिर बहस शुरू हो गयी कि आखिर इन टोपियों की अब कितनी उपयोगिता है। आज भी कई ऐसे राजनीतिक दल है जो इन टोपियों को अपनी आन बान और शान का प्रतीक मानकर इसे अपना रहे हैं। फिर चाहे वह समाजवादी पार्टी की लाल टोपी हो, बसपा की नीली टोपी, अथवा सुभासपा की पीली टोपी। विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों के सिर पर यह टोपियां अक्सर देखने को मिल जाती हैं।
लाल, नीली और पीली टोपियां पहनकर सदन को ड्रामा कंपनी न बनाए
हाल ही में स्थगित हुए विधानसभा के बजट सत्र को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीखी टिप्पणी कर विपक्ष को असहज कर दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि लाल, नीली और पीली टोपियां पहनकर सदन को ड्रामा कंपनी न बनाए। इस तरह की टोपियां लोग ड्रामा कंपनी में देखते थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि लाल टोपियां बच्चों तक में डर का कारण बन गयी है। इस रंग की टोपी पहने लोगों को देखकर बच्चें भी सहम जाते है। इसके बाद से प्रदेश में रंग बिरंगी टोपियों को लेकर बहस जारी है। कांग्रेस में भी अब गांधी टोपी पहने कोई नेता नहीं दिखता। वहां पर केवल सेवादल के आयोजनों में लोग गांधी टोपी में दिखते थे। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी पार्टी की होने वाली बैठकों में कभी-कभी गांधी टोपी पहन लेते है।
गांधी टोपी पहनने वाले प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ही थे
गांधी टोपी पहनने वाले प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ही थे। वे बाद में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी हुए। उनके पहले भाजपा के सीएम रहे भगत सिंह कोश्यारी भी गांधी टोपी पहनते थे जो इस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल है। उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद जो मुख्यमंत्री हुए उनमें गोविंद बल्लभ पंत, चोधरी चरण सिंह,हेमवती नंदन बहुगुणा, संपूर्णानंद, चन्द्रभानु गुप्त, और बनारसीदास गांधी टोपी पहनते थे। इसके अलावा विधानसभा में कांग्रेस विधायक के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव तथा कांग्रेस की सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे माता प्रसाद जो बाद में मणिपुर और मेघालय के राज्यपाल रहे वे भी गांधी टोपी पहनते थे।
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एक और पूर्व विधानसभाध्यक्ष नियाज हसन भी गांधी टोपी पहनते थे। प्रदेश के राज्यपालों में जीडी तपासे, अकबर अली खां,विश्वनाथ दास, केएम मुंशी, रामकृष्ण राव, सीपीएन सिंह भी हमेशा गांधी टोपी पहनते थे जबकि कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष तथा बाद मे केन्द्र में मंत्री और हरियाणा औेर हिमांचल के राज्यपाल रहे महाबीर प्रसाद भी गांधी टोपी पहनते थे।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ब्रम्हानंद रेड्डी की भी पोशाक गांधी टोपी के बिना रहती थी
प्रदेश की कांग्रेस की सरकारों में कैबिनेट मंत्री तथा असम और झारखंड के राज्यपाल रहे सैयद सिब्तेरजी ने अपनी वेशभूषा में गांधी टोपी को शामिल रखा। इसी प्रकार राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री तथा हरियाणा के राज्यपाल रहे जगन्नाथ पहाडिया भी गांधी टोपी के बिना अपने ड्रेस कोड को अधूरा मानते थे। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ब्रम्हानंद रेड्डी की भी पोशाक गांधी टोपी के बिना रहती थी।
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