Opinion: क्या है आवश्यक--- इनोवेशन या इरिटेशन

Opinion: अच्छे वर्क कल्चर के लिए क्या है सबसे जरूरी इनोवेशन या इरिटेशन।

Report :  Anshu Sarda Anvi
Update:2024-10-06 14:26 IST

innovation or irritation

एक जानकार के बच्चे की कॉलेज कैंपस सिलेक्शन में ही एक बड़ी प्रसिद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी लग गई थी एक आकर्षक पैकेज के साथ। पर ऐसा क्या हुआ कि कुछ सालों में कि उसने अपनी नौकरी से तंग आकर वह नौकरी ही छोड़ दी। कारण की कंपनी अपने कर्मचारियों पर काम का अतिरिक्त दबाव बनाकर काम करती थी। अधिकांश कंपनियां अपने काम के घंटे के साथ-साथ काम के दबाव को लेकर बहुत कठोर होती हैं। इस गला- काट प्रतिस्पर्धा के दौर में हर एक कंपनी अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अपने कर्मचारियों की वर्क लाइफ को दांव पर लगाए रखती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में 5 दिन काम की संस्कृति और सप्ताहांत छुट्टी का कल्चर होने के बावजूद भी मेल्स, फोन कॉल्स, जूम मीटिंग्स, रात के समय काम करने, व्हाट्सएप या कंपनियों के अपने नेटवर्क के माध्यम से 24 घंटे काम करने के कल्चर से उनके कर्मचारी हर समय अपने काम से जुड़े ही रहते हैं।

बीते सप्ताह एक राष्ट्रीय चैनल के एक ऑफिशियल की अपने ऑफिस के बाहर गाड़ी पार्क करते समय मौत हो गई। गत जुलाई में पुणे की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली 26 वर्षीय युवा लड़की अन्ना सेबेस्टियन ने काम के अतिरिक्त बोझ के तनाव के चलते अपनी जान गंवा दी। मीडिया पर दबाव होता है टीआरपी में आगे जाने का, रोजाना 10 से 12 घंटे काम करने का, विविधता परोसने का। जो लोग इतने तनाव में काम कर रहे होते हैं वे खुद को स्वस्थ और खुश रखने के लिए कहां से समय निकलते होंगे, यह शोचनीय है। अन्ना सेबेस्टियन की मौत भी हार्ट अटैक के कारण हुई। वह देर रात तक काम करना, साप्ताहंत में भी काम करना, कमर- तोड़ बोझ डाल देना, नए कर्मचारियों के प्रति संवेदनहीन होना ये हीं तो वे कारण होते हैं जो किसी भी कंपनी की अपने कर्मचारियों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाते हैं।

अच्छे वेतन ही नहीं होता सब 

बड़ी कंपनियों में मिलने वाला अच्छा वेतन ही सब कुछ नहीं होता है क्योंकि कंपनियां एक के बाद एक अत्यंत अव्यावहारिक टारगेट रखती जातीं है अपने कर्मचारियों पर। बड़ी कंपनियां कभी छंटनी करके अपने ही कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देती हैं या उनसे इस्तीफा ले लेती हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनी में एक नौकरी पेशा होना आसान कहां होता है। पहले तो उस नौकरी को पाने की जद्दोजहद करना और फिर उसे बचाने की कवायद। कर्मचारी अपनी क्षमता से ज्यादा काम करने लगता है‌ और उसी कोशिश में लगा रहता है जिससे कंपनी में उसकी नौकरी बची रहे। नौकरी बची रह गई, यह तो अच्छा है लेकिन इससे उसकी सेहत को तमाम नुकसान हो रहे हैं। अब वह कंपनी के हर टारगेट को पूरा करने के लिए झुकता जाता है क्योंकि उसे अपने 'अच्छे वेतन' में घर , गाड़ी, इंश्योरेंस सबकी किस्तें भी तो भरनी होती हैं और साथ ही साथ जीवन स्तर को भी बनाए रखना होता है। और इस जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए वे खुद को इस भट्टी में पूरी तरह से झोंक देते हैं।

बढ़ता जा रहा दबाव 

काम के घंटों और कार्य स्थलों पर पड़ने वाले दबाव का कर्मचारियों पर एक बड़ा तनाव होता है जिसे कुछ लोग बर्दाश्त कर जाते हैं और कुछ नहीं कर पाते हैं। और जो नहीं कर पाते हैं उनके सपने अन्ना सेबेस्टियन के जैसे मौत के आगोश में ही खत्म हो जाते हैं। कितने ही कर्मचारी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अपने बड़े पदों की नौकरियों के इतने ज्यादा तनाव में होते हैं कि वे अपने मित्रों की संगत को भी भूल जाते हैं या उन्हें भूलना पड़ता है और वह साथी बना लेते हैं अल्कोहल को अपना, जिसका एक बड़ा दुष्प्रभाव उनके अपने पारिवारिक जीवन पर भी पड़ता है। वे भले ही अपने बच्चों को महंगे कॉलेज में शिक्षा दिला रहे होते हैं, एक अच्छा जीवन स्तर देने की कोशिश कर रहे होते हैं पर वे तनाव के चलते खुद को अल्कोहल में इतना डुबो लेते हैं कि वे जिंदगी के असली रस को भूल जाते हैं। एक दिन में अधिकतम 8 घंटे का काम किसी भी कर्मचारी के लिए बहुत होता है।

क्या है सर्वे रिपोर्ट 

एक सर्वेक्षण हमें बताता है कि 45 % से अधिक कर्मचारी प्रत्येक रविवार की शाम को चिंता और बेचैनी का अनुभव करते हैं क्योंकि उन्हें उस दिन सोमवार को काम पर लौटने की तैयारी करनी होती है। इसके अलावा 78 % कर्मचारियों का कहना है कि कार्यस्थल पर काम करने का तरीका कठोर है, जिसमें सहकर्मियों और प्रबंधन की ओर से दबाव और व्यवहार संबंधी अपेक्षाएं शामिल हैं। 65% से ज़्यादा कर्मचारी मौजूदा कार्य संरचना के कारण अत्यधिक बोझ महसूस करते हैं। इसके कारण उनका कार्य-जीवन संतुलन बुरी तरह से बिगड़ रहा है। वे नींद संबंधी समस्याओं, चिड़चिड़ापन और प्रेरणा की कमी जैसी समस्याएं महसूस कर रहें हैं। अस्वस्थ कार्य संस्कृति भी कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारतीय लोगों के काम करने के घंटे अन्य देशों की तुलना में अधिक होते हैं। इंफोसिस के संस्थापक आर नारायण मूर्ति का कहना है कि जब हम कॉर्पोरेट वेतन लेते हैं तो हमें 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करना चाहिए और खुद को उस भट्टी में झोंक देना चाहिए।

कंपनी कर्मचारियों पर करें विश्वास 

एक कंपनी अपने कर्मचारियों में कैसे विश्वास पैदा कर सकती है, अभी एक महत्वपूर्ण बात है। एक कंपनी की विश्वसनीयता उसके कथोपकथन पर निर्भर करती है। कर्मचारियों के काम को कितनी सरहाना, कितना सम्मान मिलता है यह दिखना चाहिए। जहां भी भेदभाव होता है वहां कर्मचारियों में असंतोष की भावना विकसित होगी ही। कंपनी छोटी- बड़ी कैसी भी हो , जिस पर उसके कर्मचारी गर्व करें, अपने कार्य स्थल, अपने कार्य क्षेत्र पर गर्व करें तो उनकी कार्य क्षमता और कार्य दक्षता द्विगुणित हो जाती है। जिस कंपनी में कर्मचारियों को महत्व दिया जाता है, उन्हें अपनेपन का एहसास होता है, वहां से जाने के बाद भी वे वापस आना चाहते हैं और लंबे समय तक वहीं बने रहना चाहते हैं।

कहीं-कहीं कंपनी का नेतृत्व भी इतना बेदम और बेअसर होता है कि न तो वह नवाचार को प्रोत्साहन देता है और न ही उसमें अपना इंटरेस्ट दिखाता है। जब हर समय टास्क कंप्लीट करने का तनाव बना रहता है तो कर्मचारी इनोवेटिव बनने की जगह इरिटेटेड बिहेवियर की श्रेणी में आते जाते हैं ‌ अगर नवाचार चाहिए, इनोवेशन चाहिए तो शरीर को और दिमाग को भी आराम देना होगा। फिर कोई अन्ना सेबेस्टियन न बने इसके लिए कंपनियों को अपने कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना ही होगा।

( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।) 

Tags:    

Similar News