Haryana Election Result 2024: क्यों जीती बाजी हारती जा रही है कांग्रेस?

Haryana Election Result 2024: भाजपा ने गुजरात, मध्य प्रदेश और अब हरियाणा में सत्ता विरोधी भावनाओं को जिस कुशलता से प्रबंधित किया और विजय हासिल की, वह भारतीय राजनीति में एक गहन अध्ययन का विषय है।

Update:2024-10-09 10:15 IST

Haryana Election Result 2024

Haryana Election Result 2024: यह एक अनिवार्य प्रवृत्ति बनती जा रही है कि चुनाव परिणाम आने से एक दिन पहले तक कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ सीधी टक्कर में जीतती हुई प्रतीत होती है। किन्तु परिणाम के दिन आते ही कहानी पूरी तरह बदल जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब हरियाणा के चुनाव परिणाम यह दर्शाते हैं कि वर्तमान समय में भाजपा कांग्रेस से सीधी टक्कर में अत्यधिक सशक्त दिखाई देती है। कांग्रेस का अति आत्मविश्वास इतना अधिक होता है कि वह भाजपा की रणनीतियों को भली-भांति समझ नहीं पाती। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यह मान लेता है कि सत्ता विरोधी लहर ही उसे पुनः सत्ता में ले आएगी। इसी भ्रम में कांग्रेस भाजपा के समक्ष पराजय झेलती है।

भाजपा ने गुजरात, मध्य प्रदेश और अब हरियाणा में सत्ता विरोधी भावनाओं को जिस कुशलता से प्रबंधित किया और विजय हासिल की, वह भारतीय राजनीति में एक गहन अध्ययन का विषय है। दूसरी ओर, कांग्रेस के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे हमले करने के अलावा कोई ठोस रणनीति नहीं दिखाई देती। लोकसभा चुनावों में थोड़ी सीटों की बढ़त के कारण पार्टी अभी भी सोचती है कि राहुल गांधी के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी पर आक्रमण उसकी जीत की गारंटी होगी, जबकि वस्तुस्थिति इससे भिन्न है।

जम्मू-कश्मीर: लोकतंत्र की विजय पर क्षेत्रीय संतुलन जरुरी

जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के कल आए विधानसभा चुनाव परिणाम देश की दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों के लिए गहरे संदेश छिपाए हुए हैं। परिणामों से स्पष्ट होता है कि भाजपा आज जम्मू-कश्मीर में मत प्रतिशत के आधार पर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। विशेष रूप से जम्मू क्षेत्र से उसकी सीटों में वृद्धि हुई है। हालांकि, भाजपा के लिए कश्मीर घाटी आज भी एक चुनौती बना हुआ है, जहां उसे सभी सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने में भी कठिनाई हुई। इसका प्रमुख कारण कश्मीर का मुस्लिम बहुल क्षेत्र होना है। यह भारतीय राजनीति की एक सच्चाई है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा की जीत लगभग असंभव सी प्रतीत होती है। कश्मीर घाटी की सभी 47 सीटें मुस्लिम बहुल हैं, जिसके चलते भाजपा को वहां चुनावी संघर्ष का सामना करना पड़ता है।

दूसरी ओर, कांग्रेस के प्रदर्शन पर दृष्टिपात करें तो प्रतीत होता है कि कांग्रेस धीरे-धीरे देश के विभिन्न राज्यों में अन्य दलों के लिए एक सहायक दल (स्टेपनी) बनती जा रही है। जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम में कांग्रेस निर्दलीय विधायकों की संख्या से भी पीछे रही। कांग्रेस को कुल 6 सीटों में से 5 सीटें कश्मीर घाटी से मिली हैं, जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। इसके विपरीत, जम्मू की 43 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ एक ही सीट जीत पाई। कांग्रेस का प्रदर्शन इतना कमजोर रहा कि उसने जिन 32 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से मात्र 6 सीटें ही जीत सकी।

जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों का एक अन्य विश्लेषण यह हो सकता है कि यह किसी पार्टी की जीत से अधिक भारत के सुदृढ़ लोकतंत्र की विजय है। धारा 370 हटाए जाने के बाद शांतिपूर्ण चुनाव और उसमें रिकॉर्ड मतदान यह दर्शाता है कि अब कश्मीर में अलगाववादियों का प्रभाव नहीं रहा है। अब यह आवश्यक है कि बनने वाली सरकार में जम्मू को अलग-थलग न रखा जाए। सरकार को जम्मू और कश्मीर के बीच संतुलन बनाकर चलाना चाहिए। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला के पास अवसर है कि वे केंद्र सरकार के साथ मिलकर एक नए कश्मीर का निर्माण कर सकते हैं, जिसमें जम्मू का सहयोग महत्वपूर्ण होगा। जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों को यह समझना होगा कि कठोर रुख अपनाने से राजनीति में उनका प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त हो सकता है। आम कश्मीरी अब शांति चाहता है, और पीडीपी के प्रदर्शन से यह स्पष्ट है कि अति कठोर नीति अपनाने पर राजनीतिक हैसियत शून्य की ओर जा सकती है।

हरियाणा चुनाव: कांग्रेस की जातिगत राजनीति पर भारी भाजपा की रणनीति

हरियाणा में जो घटित हुआ, वह अप्रत्याशित अवश्य था, परंतु यह आश्चर्य भाजपा से अधिक कांग्रेस के लिए था। लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद कांग्रेस यह समझने में असमर्थ रही कि हरियाणा में किस प्रकार का राजनीतिक समीकरण कार्य कर रहा है। कांग्रेस को यह भ्रम था कि जाट समुदाय की नाराजगी के आधार पर वह इस चुनावी युद्ध को जीत लेगी। परंतु चुनावी सर्वेक्षण के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भाजपा ने जाट बहुल क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन किया। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि भाजपा ने केवल जाट बनाम गैर-जाट की राजनीति तक सीमित न रहकर उससे आगे की रणनीति पर कार्य किया था।

आज चुनाव विश्लेषक यह कह सकते हैं कि ओबीसी मुख्यमंत्री और गैर-जाट राजनीति का लाभ भाजपा को बड़े पैमाने पर मिल रहा है। परंतु महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस ध्रुवीकरण की स्थिति राज्य में क्यों उत्पन्न हुई? टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रबंधन तक का पूरा नियंत्रण हुड्डा परिवार के हाथ में था। कुमारी शैलजा की नाराजगी को हल्के में लेना भी यह संदेश देने लगा कि कांग्रेस एक बार फिर जाट मुख्यमंत्री बनाने की ओर अग्रसर है। इसका परिणाम यह हुआ कि जब हरियाणा के एक वर्ग ने जब खुलकर अपने विचार प्रकट किए, तब शेष मतदाता शांति से मतदान कर गए। यह अत्यंत आश्चर्यजनक था कि कांग्रेस ने 90 सीटों पर अपने प्रत्याशियों का चयन करते हुए 35 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया। जबकि चुनाव पूर्व यह अनुमान लगाया जा रहा था कि इस बार दलित समुदाय कांग्रेस के पक्ष में मतदान करेगा। चुनाव परिणाम बताते हैं कि भाजपा ने आरक्षित 17 सीटों में से 8 पर विजय प्राप्त कर ली, जो इस बात का संकेत है कि कांग्रेस की जातिगत समीकरण की राजनीति में चूक हुई।

राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी: क्या कहते हैं ये चुनावी परिणाम?

अंततः यदि हम इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करें, तो एक महत्वपूर्ण विमर्श यह उभरता है कि क्या राहुल गांधी आज भी अपने बल पर किसी राज्य में चुनाव परिणाम निर्धारित करने की क्षमता रखते हैं? हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटाकर नायब सिंह सैनी को अल्प अवधि के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया। इसलिए भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी पर लड़ा, और परिणाम सबके सामने है। आज देश के हर राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसा प्रभावशाली कारक बन चुके हैं, जो अपने दम पर एक निश्चित वोट प्रतिशत और बड़ी संख्या में सीटें दिलाने की क्षमता रखते हैं। इस करिश्मे का एक उदाहरण कर्नाटक विधानसभा चुनाव का परिणाम है। एक प्रबल सत्ता-विरोधी लहर के बीच, जब नरेंद्र मोदी ने अपने नेतृत्व में चुनाव लड़ा, तो भाजपा का वोट प्रतिशत बरकरार रहा।

इसके विपरीत, राहुल गांधी के पास ऐसा कोई व्यक्तिगत करिश्मा नहीं है। वह अब भी अपने व्यक्तित्व या कार्य के आधार पर किसी भी राज्य में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में असमर्थ हैं। कांग्रेस और राहुल गांधी को इस भ्रम से बाहर निकलना होगा कि लोकसभा या विधानसभा चुनावों में जो वोट या सीटें कांग्रेस को मिल रही हैं, वह उनके नाम पर हैं। वास्तविकता यह है कि भाजपा के विरोध में डाले गए वोट ही कांग्रेस को मिल रहे हैं; जीत दिलाने वाले वोट आज भी राहुल गांधी के नाम पर कांग्रेस को प्राप्त नहीं हो रहे हैं। हरियाणा में जिन 12 सीटों पर राहुल गांधी ने प्रचार किया, उनमें से 7 पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसके विपरीत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में अपने नेतृत्व और कार्यों के बल पर भाजपा के लिए नई ऊंचाइयों को छू लिया।

इन दोनों राज्यों के परिणामों के बाद अब भाजपा झारखंड और महाराष्ट्र में अलग-अलग रणनीतियों के साथ आगे बढ़ेगी। झारखंड, जहां इंडी गठबंधन की सरकार है, में भाजपा आक्रामक अंदाज में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। वहीं, महाराष्ट्र में, जहां भाजपा सत्ता में है, पूरी तरह से नई रणनीति के साथ चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस इन दोनों ही राज्यों में मुख्य पार्टी के रूप में नहीं दिखती। झारखंड में तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का नाम (केशव महतो कमलेश) भी अधिकांश लोगों को नहीं मालूम। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में कांग्रेस को जो झटके मिले हैं, वे पार्टी की रणनीति में किस प्रकार का बदलाव लाते हैं। लेकिन इतना तय है कि भाजपा, चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद ही अपने अगले कदम के लिए तैयार हो चुकी होगी। यह भारतीय राजनीति का नया दौर है, जहां भाजपा ने सभी समीकरण बदलकर रख दिए हैं।

(लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला में शोधार्थी और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं।)

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