अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive:: फिर शुरू हुआ यूपी में मायाजाल

Update: 2017-08-04 10:14 GMT

लखनऊ। ‘माया महाठगनि हम जानी’। बसपा के दिगगज नेताओं की जुबां पर आजकल यह चौपाई हर 5 मिनट पर आ जाती है। कुछ शब्दों से अपनी व्यथा व्यक्त करते हैं तो कुछ मौन होकर आंख के इशारों से अपनी हामी भरते हैं। बसपा छोडऩे अथवा पार्टी से निकाले गये नेताओं का कहना है कि पिछले 8 माह के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती को जबरदस्त आर्थिक नुकसान हुआ है। इसमें मायावती के कई नजदीकी नेताओं की संदिग्ध भूमिका है।

सूत्रों का कहना है कि भरपाई के लिये पार्टी के सभी विधानसभा क्षेत्र प्रभारियों को 15-15 लाख रुपये पार्टी फंड में जमा कराने का निर्देश दिया गया है। वैसे प्रदेश की 403 विधानसभा क्षेत्रों में बसपा के अभी तक केवल 300 ही प्रभारी घोषित हैं और अन्य की तलाश जारी है। बताया जाता है कि वर्तमान राजनीतिक स्थिति में कोई यह पद लेने को तैयार नहीं है। इसी प्रकार लोकसभा प्रभारियों को 50-50 लाख रुपये जमा करने को निर्देशित किया गया है। पार्टी ने अभी तक केवल 10 लोकसभा प्रभारी ही नियुक्त किये हैं। बसपा से हटाये गये नेताओं का कहना है कि जिस दलित वोट बैंक के बल पर पैसा जमा किया जाता था वह बिखर गया है।

सुप्रीमो का प्रभाव अब केवल चमार एवं जाटव वोटों तक ही सीमित होकर रह गया है। पासी, दुसाध तथा अन्य दलित जातियों की बसपा से दूरी हो गयी है। वर्तमान राजनीतिक हालात में अन्य कोई भी जातिगत समीकरण बसपा के पक्ष में नजर नही आ रहा है। ऐसे में धनवान राजनीतिज्ञों के लिए जीत की गारंटी नहीं रही है। सत्ता में रहते हुए कार्यकर्ता भी सहयोग करते जो फिलहाल संभव नहीं है। दलित कर्मचारी संगठनों से भी मदद की उम्मीद नहीं है।

सूत्रों का कहना है कि बसपा छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले एक नेता से बड़ी रकम की मांग की गयी थी जिसकी प्राप्ति न होने पर उन्हें पार्टी छोडऩी पड़ी। इसी प्रकार पासी समाज के नेता से 15 लाख की मांग की गयी थी जिसे इंकार करने पर पार्टी से निकाल दिया गया। डिमांड पूरी न कर पाने वाले कई विधायक भी कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। बताया जाता है कि इसी महीने ही बसपा में टूट का नया धमाका होने वाला है।

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