असम में भाजपा के खिलाफ सीएए और एनआरसी को बनाया हथियार
भाजपा ने इस बार 100 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। मोदी लहर को भुनाते हुए भाजपा ने 2016 के चुनावों में सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ मिलकर 86 सीटें जीती थीं।
नील मणि लाल
नई दिल्ली। असम चुनाव पर नागरिकता कानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए आंदोलनों का कितना असर पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ हुए आंदोलन से असम में दो दलों का गठन हुआ है। इन दोनों दलों ने राज्य में एक साथ विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए हाथ मिलाया है। असम में विधानसभा की 126 सीटे हैं। इसमें सत्तारूढ़ भाजपा के 60 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 26 सीटें हैं। 126 विधानसभा सीटों में से अनुसूचित जाति के लिए आठ और अनुसूचित जनजाति की 16 सीटें हैं।
भाजपा का इस बार का 100 सीटों का लक्ष्य
भाजपा ने इस बार 100 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। मोदी लहर को भुनाते हुए भाजपा ने 2016 के चुनावों में सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ मिलकर 86 सीटें जीती थीं। 2016 के चुनावों में बीजेपी ने 84 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसका वोट शेयर कांग्रेस के 31 फीसदी की तुलना में 29.5 फीसदी था। कांग्रेस ने 122 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 26 पर जीत दर्ज की थी।
ये पहला चुनाव होगा जिसमे असम के तीन बार के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की उपस्थिति नहीं होगी। उनकी ग़ैरहाज़िरी से कांग्रेस को कितना नुक़सान होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। भाजपा ने तरुण गोगोई को पद्म पुरस्कार देकर असम के मतदाताओं को संदेश देने दी कोशिश की है।
सीएए के खिलाफ आन्दोलन
दिसंबर 2019 में सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले दो छात्र संगठनों ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद ने एजेपी का गठन किया है। इसके अलावा कृषक मुक्ति संग्राम समिति नमक एक किसान संगठन है जिसने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था और अब उसने ने ‘आरडी’ का गठन किया है। ये देखने वाली बात यह होगी कि इस नये गठबंधन की वजह से भाजपा और कांग्रेस गठबंधन में से किसको ज़्यादा नुक़सान होगा? और क्या यह नया गठबंधन राज्य की राजनीति में कोई नयी इबारत लिख पायेगा?
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मुस्लिम बहुल इलाके
1980 में असम के मंगलदोई संसदीय क्षेत्र में जब मुस्लिम मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दिखाई पड़ी, तब असम साहित्य परिषद के मार्गदर्शन में घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन चला। बाध्य होकर केंद्र सरकार को असम के लोगों के साथ समझौता करना पड़ा। इस समझौते के बाद भी घुसपैठियों को निकालने का काम नहीं हो पाया। आज असम के 27 जिलों में से नौ जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण वहां राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) तो गया, पर अभी भी वह आधा अधूरा है।
असम में एनआरसी के चुनावी मुद्दा बनने के आसार
चूंकि असम के साथ बंगाल के भी विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, इसलिए विदेशी घुसपैठ और एनआरसी के चुनावी मुद्दा बनने के आसार हैं। एक तरफ कम्युनिस्ट दल, कांग्रेस और ममता की पार्टी घुसपैठ को नकार रही है तो दूसरी तरफ भाजपा घुसपैठियों को राज्य से बाहर निकालने की बात कर रही है।
कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने सीएए को वोटों के लिए समाज को विभाजित करने का भाजपा का राजनीतिक हथियार करार देते हुए कहा है कि असम में उनकी पार्टी के सत्ता में आने पर सीएए को प्रदेश में लागू करने नहीं दिया जाएगा और राज्य सरकार को उच्चतम न्यायालय में इससे जुड़े मामले में पक्षकार बनाया जाएगा।
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