भाजपा में बगावत से बिगड़ा चुनावी गणित, संघ ने बजाई खतरे की घंटी

भाजपा सूत्रों के अनुसार यूपी में टिकट बांटने में उच्च परंपरागत भाजपा समर्थक जातियों की अनदेखी करके बाहरी उम्मीदवारों को दिल खोलकर टिकट बांटने से स्थिति विस्फोटक हो चुकी है। भाजपा को संघ परिवार पहले ही यह फीडबैक दे चुका है कि नोटबंदी के बाद भाजपा का बनिया वोट बैंक बुरी तरह खफा है।

Update: 2017-01-19 07:56 GMT

उमा कान्त लखेड़ा

लखनऊ : यूपी में अखिलेश यादव और कांग्रेस महागठबंधन से सहमी भाजपा ने वहां अपने और उम्मीदवारों की दूसरी सूची को अंतिम रूप देने से कन्नी काट ली। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक जो कल होनी थी उसमें अड़चन पैदा हो गई हैं। क्योंकि यूपी व उत्तराखंड दोनों ही राज्यों में पार्टी के घोषित उम्मीदवारों व संभावित उम्मीदवारों को लेकर भारी असंतोष बढ़ने की आशंका की वजह से भाजपा नेतृत्व की बेचैनी चरम पर पहुंच गई है।

संघ परिवार के उच्च सूत्रों ने यूपी व उत्तराखंड दोनों ही प्रदेशों से भाजपा नेतृत्व को इस चेतावनी से रूबरू करा दिया है कि यदि दो चार दिनों के अंदर कार्यकत्ताओं में व्याप्त असंतोष दूर नहीं किया गया तो पार्टी की चुनावी फिजा बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।

टिकट वितरण से खफा भाजपा के कई नेता

भाजपा सूत्रों के अनुसार यूपी में टिकट बांटने में उच्च परंपरागत भाजपा समर्थक जातियों की अनदेखी करके बाहरी उम्मीदवारों को दिल खोलकर टिकट बांटने से स्थिति विस्फोटक हो चुकी है। भाजपा को संघ परिवार पहले ही यह फीडबैक दे चुका है कि नोटबंदी के बाद भाजपा का बनिया वोट बैंक बुरी तरह खफा है। संघ के एक पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि यही शहरी व्यापारी वर्ग भाजपा को वोट व नोट दोनों ही देता था। उसका एक तरफा वोट भाजपा को जाता था। भाजपा में टिकटों की अनदेखी से कई बड़े दिग्गज बुरी तरह तिलमिलाए हुए हैं। वे चुप इसलिए हैं कि अभी मोदी सरकार के साथ इस लोकसभा का आधा वक्त और कटना है। गोरखपुर के सांसद योगी आदित्य नाथ नाराज होकर घर बिठा दिए गए हैं।

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2004 के लोकसभा चुनावों मे पश्चिमी यूपी में जाटों ने खुलकर भाजपा को वोट दिया था। भाजपा के एक बड़े जाट नेता के मुताबिक वह भले ही मोदी लहर बतायी गई लेकिन असल में जाटों के साथ दूसरी ताकतवर जातियां जैसे कि, ब्राह्मण,राजपूत, गूजर, त्यागी, कायस्थ समाज व खत्री व व्यापारी वर्ग ने भाजपा को एकतरफा वोट किया। भाजपा में ही भीतरी लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि जिन बिरादरियों ने लोकसभा चुनावों में खुलकर भाजपा के पक्ष में वोट किया उन्हें विधानसभा चुनावों में टिकट से वंचित करने का क्या आधार रखा गया है।

भाजपा ने यूपी में गैर यादव ओबीसी कार्ड खेलकर बड़ा जोखिम उठा लिया है। देश को 403 विधानसभा सीटें देने वाले प्रदेश में अभी तक भाजपा का उच्च जातियों का सपोर्टबेस सबसे ज्यादा प्रभावित होने जा रहा है। विधानसभा चुनावों में हार जीत का अंतर चूंकि 100 से ज्यादा सीटों पर कुछ ही सौ व हजार का होता है, ऐसी सूरत में भाजपा को उन सीटों पर सबसे ज्यादा भितरघात का खतरा है जो उच्च जातियों के अधिपत्य वाली सीटें हैं।

यूपी में नए अवतार में उठकर उभरे अखिलेश यादव व राहुल गांधी के साथ जयंत चौधरी के भी साथ आने से नया समीकरण विकसित हुआ है। प्रियंका गांधी व डिंपल यादव के एक साथ चुनावी रैलियां करने की योजना से भाजपा के समीकरण उलट-पुलट हो रहे हैं। भाजपा ने टिकटों को बांटने की प्रकिया में बीच में इस बात पर गंभीरता से विचार नहीं किया कि बिहार में किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित न कर पाना उसे कितना महंगा पड़ा।

भाजपा सूत्रों में इस बात की भी सुगबुगाहट तेज है कि पार्टी के कई प्रमुख दिग्गज अपने चहेतों व परिजनों को टिकट की दावेदारी खारिज किए जाने से खिन्न हैं। उत्तराखंड से राजनाथ सिंह के समधी नारायण सिंह राणा को टिकट तो मिल गया लेकिन यूपी में उनके पुत्र पंकज सिंह का नाम पहली सूची से गायब है जबकि वे गाजियाबाद जिले से टिकट मांग रहे थे। सांसद वरुण गांधी व आदित्य नाथ जैसे आक्रामक स्टार प्रचारकों की मांग भाजपा की चुनावी रैलियों कें भीड़ खींचने के लिए सबसे ज्यादा होती रही है लेकिन भाजपा में इन नेताओं के बगावती तेवरों ने भाजपा की चुनावी रणनीति को गंभीर संकट में धकेल दिया है।

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