एम के स्टालिन ने खुद को साबित किया, पार्टी को दिलाई भारी जीत

द्रमुक अध्यक्ष एम के स्टालिन ने खुद को एक परिपक्व नेता साबित करते हुए, पार्टी को अकेले अपने दम पर लोकसभा चुनाव में भारी जीत दिलाई है और राज्य की 38 में से 37 सीटें उसके खाते में जाती नजर आ रही हैं ।

Update: 2019-05-23 16:10 GMT

चेन्नई: द्रमुक अध्यक्ष एम के स्टालिन ने खुद को एक परिपक्व नेता साबित करते हुए, पार्टी को अकेले अपने दम पर लोकसभा चुनाव में भारी जीत दिलाई है और राज्य की 38 में से 37 सीटें उसके खाते में जाती नजर आ रही हैं ।

हालांकि द्रमुक की अगुवाई वाले मोर्चे में कांग्रेस और आईयूएमएल भी शामिल है । एक सीट अन्नाद्रमुक के खाते में जाने की संभावना है।

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द्रमुक को एक लंबे अरसे बाद जीत का स्वाद चखने को मिला है। इससे पहले द्रमुक साल 2011 और 2016 का विधानसभा चुनाव हार गई थी और साल 2014 के आम चुनाव में भी उसे शिकस्त का सामना करना पड़ा था।

द्रमुक ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और वह सभी पर जीत हासिल करने की ओर बढ़ रही है और उसके सहयोगी दल एमडीएमके, वीसीके : विल्लुपुरम :, केएमडीके और आईजेके ने पार्टी के उगता सूरज चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था और ये सब भी भारी अंतर से जीतते नजर आ रहे हैं । इसके साथ ही द्रमुक कुल 23 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है।

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उसकी सहयोगी कांग्रेस को 8, आईयूएमएल और वीसीके : चिदम्बरम : को एक .एक तथा भाकपा और माकपा को दो दो सीट मिल सकती हैं ।

सबसे पहले चुनाव अभियान की शुरूआत करते हुए स्टालिन जनवरी के शुरूआत में ही जुट गए थे । 66 वर्षीय स्टालिन ने गांवों तक संपर्क करने के लिए विशेष अभियान चलाया और इसके लिए नारा दिया था‘‘ आइए लोगों से मिलें, उन्हें बताएं और उनके दिलों को जीतें।’’

स्टालिन ने काफी सोचसमझ कर चुनाव की रणनीति तैयार की और सत्ता में आने पर स्थानीय मुद्दों को सुलझाने का वादा किया।

प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयलिलता के करिश्मे और महिलाओं के उनके प्रति आगाध स्नेह को देखते हुए स्टालिन ने सत्ता में आने पर जयललिता की मौत के जिम्मेदार लोगों को कानून के दायरे में लाने का वादा भी किया।

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द्रमुक के इतिहास में शायद स्टालिन ने पहली बार चुनाव प्रचार अभियान के दौरान कहा कि उनकी पार्टी हिंदू विरोधी नही है।

पार्टी के घोषणापत्र में स्टालिन ने कई आकर्षक वादे भी किए थे जिनमें किसानों के लिए रिण माफी भी शामिल थी।

उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नाम की सिफारिश की और संप्रग के भीतर फुसफुसाहट के बावजूद अपने रूख पर कायम रहे ।

अपने भाई एम के अलागिरी की ओर से प्रतिद्वंद्विता के बावजूद उन्होंने इस संकट को अच्छी तरह संभाला ।

 

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