Economic News: भारत का आर्थिक पैकेज असफल क्यों हो रहा है?
सरकार ने पिछले वर्ष लॉकडाउन की वजह से मंद पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था। लेकिन आज इसका बहुत प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ा है। आज बेरोजगारी दर 9 फीसदी पहुंच चुकी है। जीडीपी दर वर्ष 2020-21 में -7.3 फीसदी हो चुकी है। लोगों की आय में कमी आई है। देश की 97 फीसदी आबादी पहले की तुलना में गरीब हुई है। इसलिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के औचित्य पर सवाल करना वाजिब है।
India Economic News: आर्थिक मंदी के जिस दौर से भारत गुजर रहा है वह दुनिया में सबसे अलग स्वरूप धारण किए हुए है। भारत की आर्थिक मंदी में ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्तमान में बढ़ी हुई महंगाई बाजार के मांग की वजह से नहीं आई है, बल्कि सरकार की नीतियों की वजह से आई है। ताजा उदाहरण घरेलू गैस के दामों में 25 रुपये की वृद्धि का है। ऐसा कहना कि मांग की वजह से महंगाई नहीं आयी है के पीछे एक ठोस प्रमाण भी मौजूद है। जब हम जीडीपी के आंकड़ों का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि भारत की खपत दर लगातार गिर रही है। वह खपत दर गिर रही है जो भारत की अर्थव्यवस्था में 50 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी रखती है। खपत दर का लगातार गिरना यह बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मांग और आय में कमी आई है। वहीं दूसरी तरफ बेरोजगारी भी तेजी से बढ़ रही है। अब मौजूदा आर्थिक समस्या को दुरुस्त करने का जो सही तरीका हो सकता है, वह खपत को बढ़ा कर किया जा सकता है। लेकिन वर्तमान में सरकार इसके ठीक विपरीत मांग आधारित समस्या के समाधान के लिए आपूर्ति आधारित नीतियों को बना रही है।
20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का क्या हुआ?
सरकार ने पिछले वर्ष लॉकडाउन की वजह से मंद पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था। यह राशि भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में एक बहुत बड़ी राशि थी। लेकिन आज जब एक वर्ष बाद हम देखते हैं तो पाते हैं कि इसका बहुत प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नहीं है। आज बेरोजगारी दर 9 फीसदी पहुंच चुकी है। जीडीपी दर वर्ष 2020-21 में -7.3 फीसदी हो चुकी है। लोगों की आय में कमी आई है। देश की 97 फीसदी आबादी पहले की तुलना में गरीब हुई है। इसलिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के औचित्य पर सवाल करना वाजिब है।
आपको याद होगा कि पिछले वर्ष जारी किए गए आर्थिक पैकेज में सबसे अधिक सुनाई देने वाले शब्द थे- आत्मनिर्भर भारत, 20 लाख करोड़, वोकल फॉर लोकल, जीडीपी का 10 फीसदी, दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा राहत पैकेज आदि। लेकिन यह आर्थिक पैकेज कर्ज आधारित पैकेज था जो अर्थव्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने में कामयाब नहीं हो सका। पिछले आर्थिक पैकेज में कर्ज, गारंटी या किसी अन्य वित्तीय उपाय के जरिए 16.60 लाख करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान था। साथ ही साथ सब्सिडी या नकद के रूप में 3.68 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान था। यह आर्थिक पैकेज भारत सरकार के खजाने पर महज जीडीपी का 1 फीसदी ही भार देने वाला था। इसलिए कर्ज की बुनियाद पर लाया गया यह आर्थिक पैकेज अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में असफल रहा।
नए आर्थिक पैकेज में क्या खामियां हैं?
हाल ही में बीते दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार फिर 6,28,993 करोड़ रुपए के नए आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछली गलतियों से ना सीखते हुए यह आर्थिक पैकेज भी कर्ज की बुनियाद पर बनाया गया है। इस आर्थिक पैकेज में सरकार ने कोरोना से प्रभावी आर्थिक क्षेत्रों के लिए 1.10 लाख करोड़ रुपए की कर्ज गारंटी और 1.50 लाख करोड़ रुपए की आपात कर्ज गारंटी देने का प्रावधान किया है। 25 लाख छोटे कारोबारियों को 1.25 लाख रुपए तक का सस्ता कर्ज देने की बात की गई है। साथ ही साथ स्वास्थ्य संकट को हल करने के लिए सरकार ने 50000 करोड़ रुपये के अतरिक्त कर्ज गारंटी का प्रावधान किया है। अब जब इस नए आर्थिक पैकेज के आंकड़ों का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि इस पैकेज में भी 90 फीसदी हिस्सा कर्ज के प्रावधानों से भरा हुआ है।
तो अब सवाल उठना लाजिमी है कि मंदी के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था के लिए जारी किए गए आर्थिक पैकेज की बुनियाद कर्ज के ऊपर क्यों रखी गई? यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि पहले से एनपीए की परेशानी झेल रहे बैंकों से नए कर्ज के जरिये अर्थव्यवस्था कैसे चलाई जा सकती है?
भारतीय अर्थव्यवस्था का हल क्या है?
भारतीय अर्थव्यवस्था एक गहरी मंदी में जा चुकी है जहां पिछले चार तिमाही के आंकड़े नेगेटिव रहे हैं। प्राथमिक तौर पर अध्ययन करने पर यही जानकारी प्राप्त होती है कि वर्तमान समस्या मांग आधारित है। तेजी से बढ़ी बेरोजगारी दर ने लोगों की आय में कमी की है। यानी कि यह वक्त लोगों के हाथ में पैसा पहुंचाने का है। ऐसे में भारत सरकार एक ऐसा जरिया है जो लोगों के हाथों में पैसे पहुंचा कर मांग को बरकरार रख सकती है। लेकिन सरकार अपनी आर्थिक नीतियों में लगातार इसकी अवहेलना कर रही है। तत्कालिक आर्थिक समस्याओं के लिए तत्कालिक समाधान होने चाहिए। सरकार को अपनी नीतियों से तुरंत आम जनता को लाभ पहुंचाने का काम करना चाहिए था लेकिन सरकार ने कर्ज की बुनियाद पर तत्कालिक आर्थिक संकट के लिए एक लंबी आर्थिक नीति का निर्माण करने में मशगूल है।
सरकार को चाहिए कि आबादी के एक बड़े गरीब तबके को हाथों में पैसा दिया जाए। ऐसा करने के दौरान सरकार को राजकोषीय घाटे और महंगाई की चिंता नहीं करनी चाहिए। वर्तमान समय किसी बड़ी वित्तीय मदद वाली योजना का है। जब लोगों के हाथों में पैसा जाएगा तो वह बाजार में मांग करेंगे और मांग की वजह से बाजार में निवेश भी लौटेगा। निवेश के लौटने के साथ ही नए रोजगार अवसरों का सृजन होगा जो बेरोजगारी की समस्या को कम करेगा। रोजगार प्राप्त करने वाले लोगों के पास एक निश्चित आय होगी जिसे बाजार में खर्च करेंगे और बाजार में मांग का संतुलन बनने लगेगा।
-लेखक विक्रांत निर्मला सिंह (संस्थापक एवं अध्यक्ष, फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल) के अपने विचार हैं