पीएम मोदी ने NRC पर गृहमंत्री शाह के बयान को ख़ारिज कर देश से झूठ बोला था?

गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में स्पष्ट किया था कि देश में एनआरसी लागू होकर रहेगा। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के राम लीला मैदान से गृहमंत्री अमित शाह के बयान को सिरे से खारिज करते हुए ये कह दिया कि एनआरसी शब्द पर कोई चर्चा नहीं हुई है। ऐसे में लोग किसके बयान पर भरोसा करें, क्योंकि दोनों (पीएम मोदी और अमित शाह) के बयान एक दूसरे के उलट हैं।

Update:2019-12-30 15:51 IST

नई दिल्ली: असम से लेकर दिल्ली, यूपी से लेकर बिहार तक लोग एनआरसी और नागरिकता कानून संसोधन(CAA) के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध कर रहे हैं।

लोगों में एनआरसी और CAA के खिलाफ काफी कन्फ्यूजन है। ये कन्फ्यूजन तब और बढ़ गया। जब पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के राम लीला मैदान से गृहमंत्री अमित शाह के बयान को सिरे से खारिज करते हुए ये कह दिया कि एनआरसी शब्द पर कोई चर्चा नहीं हुई है।

कोई बात नहीं हुई है। सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के कहने पर यह असम के लिए करना पड़ा। पीएम मोदी ने ये भी कहा कि, 'एनआरसी पर केवल झूठ चलाया जा रहा है।

जबकि इससे पहले लोकसभा और राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया था कि देश में एनआरसी लागू होकर रहेगा। ऐसे में लोग किसके बयान पर भरोसा करें, क्योंकि दोनों (पीएम मोदी और अमित शाह) के बयान एक दूसरे के उलट हैं।

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क्या कहा था पीएम मोदी ने?

पीएम मोदी ने दिल्ली के राम लीला मैदान में 'आभार रैली' रैली को सम्बोधित करते हुए कहा था कि ये कांग्रेस के जमाने में बनाया था, तब सोए थे क्या? हमने तो बनाया नहीं? संसद में आया नहीं? न कैबिनेट में आया है?

न उसके कोई नियम कायदे बने हैं? हौआ खड़ा किया जा रहा है? और मैंने पहले ही बताया इसी सत्र में आपको जमीन और घर का अधिकार दे रहे हैं, कोई धर्म-जाति नहीं पूछते हैं.. तो कोई दूसरा कानून आपको निकाल देने के लिए करेंगे क्या? बच्चों जैसी बातें करते हो।'

पीएम मोदी ने कांग्रेस पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा, 'कांग्रेस चीख-चीख कर कह रही है कि कौआ कान काटकर उड़ गया और लोग कौए को देखने लगे।'

पहले अपना कान तो देख लीजिए कि कौआ कान काटा कि नहीं? पहले यह तो देख लीजिए एनआरसी के ऊपर कुछ हुआ भी है क्या? झूठ चलाए जा रहे हो।'

मेरी सरकार आने के बाद साल 2014 से ही एनआरसी शब्द पर कोई चर्चा नहीं हुई है।' कोई बात नहीं हुई है।' सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के कहने पर यह असम के लिए करना पड़ा।' क्या बातें कर रहे हो?

झूठ फैलाया जा रहा है।' कांग्रेस और उसके साथी, शहरों में रहने वाले पढ़े लिखे नक्सली -अर्बन नक्सल, ये अफवाह फैला रहे हैं कि सारे मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा।''

इससे पहले पीएम मोदी ने नागरिकता कानून को लेकर कहा, 'CAA भारत के किसी भी नागरिक के लिए नहीं है, चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान।'

ये संसद में भी बोला गया है और वहां पर गलत बयानबाजी की अनुमति नहीं होती है, देश के 130 करोड़ आबादी का इस कानून से कोई वास्ता नहीं है।'

शाह ने सदन में कहा था एनआरसी लाने की बात

हालांकि लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पेश करने के दौरान असम में एनआरसी फेल होने के आरोप पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, 'जब हम एनआरसी लेकर आएंगे देश के अंदर एक भी घुसपैठिया नहीं बचेगा। किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है।'

एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) सांसद असदुद्दीन ओवैसी के आरोप पर अमित शाह ने आगे कहा, 'एनआरसी का कोई बैकग्राउंड बनाने की जरूरत नहीं है।

हम इस पर बिल्कुल साफ हैं कि देश में एनआरसी होकर रहेगा, कोई बैक ग्राउंड बनाने की जरूरत नहीं है. हमारा घोषणा पत्र ही बैकग्राउंड है।'

वहीं राज्यसभा में चर्चा के दौरान अमित शाह ने कहा, 'असम में जो एनआरसी की प्रक्रिया शुरू की गई थी वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अलग तरीके से की गई है। एनआरसी की प्रक्रिया देश भर में होगी, तब असम में भी स्वभाविक रूप से यह प्रक्रिया फिर से शुरू होगी।'

उन्होंने आश्वस्त करते हुए कहा, 'मैं फिर से स्पष्ट कर देता हूं कि किसी भी धर्म के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। एनआरसी में सारे लोगों को समाहित करने की व्यवस्था है।'

झारखंड के चुनावी रैली में एनआरसी लागू करने की कही थी बात

झारखंड में दूसरे चरण के चुनाव से पहले पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर और पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए गृह मंत्री ने कहा था।'

'आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि 2024 के चुनावों से पहले देशभर में एनआरसी कराई जाएगी और हर घुसपैठिये की पहचान कर उसे निष्कासित किया जाएगा।'

क्या पीएम मोदी और शाह के बीच में है मतभेद

तो क्या माना जाए कि मोदी और अमित शाह के बीच मतभेद हो गए हैं? क्या शाह के दिन अब पूरे हो गए हैं?

गुजरात की राजनीति परपकड़ रखने वालों पत्रकारों का कहना है कि “यह सोचना व्यर्थ है। वे दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

मोदी के बिना शाह का कोई व्यक्तित्व नहीं है और शाह के बिना मोदी का काम नहीं चलेगा। रणनीति साफ है, बांटो और राज करो।

देश की 85 फीसदी आबादी को 15 फीसदी मुसलमानों के खिलाफ खड़ा कर दो।

उनमें मुसलमानों के प्रति डर और घृणा पैदा करो और जताओ कि केवल बीजेपी ही उन्हें बचा सकती है।

और इस रणनीति को जन्म देने वाले अमित शाह और उनके राजनीतिक गुरु मोदी ही हैं।”

वहीं, बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि प्रधानमंत्री को स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए ऐसा बोलना जरूरी था लेकिन वह बीजेपी की मूल विचारधारा से नहीं भटके हैं।

उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि एनआरसी का विचार रद्द कर दिया गया है- वह लगातार यह भी कहते रहे कि घुसपैठियों का पता लगाया ही जाएगा।

अमित शाह की भूमिका में फिलहाल कोई परिवर्तन नहीं होने जा रहा।

बतौर गृहमंत्री उन्होंने सिर्फ 6 महीने का कार्यकाल पूरा किया है। अभी साढ़े चार साल बाकी हैं और बाकी है संघ का अपूर्ण एजेंडा।

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पीएम मोदी ने क्यों दिया ऐसा बयान

माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में स्थिति सामान्य होने के बाद वह देशव्यापी एनआरसी, राम मंदिर निर्माण और राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण नीति लाने में अहम भूमिका निभाएंगे।

फिर भी समय बचा तो समान नागरिक संहिता भी लाई जा सकती है।

फिलहाल, संभवतः मोदी खुद को खतरों से सुरक्षित रखना चाहते हैं। यदि 370 या नागरिकता विधेयक उल्टा पड़ता है तो वह शाह के सिर ठीकरा फोड़कर आसानी से निकल जाएंगे।

और अगर सब ठीक रहता है तो उन्हें ही श्रेय मिलना है। खुद ले लेंगे। और ऐसा हुआ भी। पूरे देश में नागरिकता कानून में संशोधनके खिलाफ उठे आंदोलन से मोदी विचलित हो गए।

22 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित रैली में मोदी ने खुद को ही नहीं बल्कि पार्टी को भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) से दूर कर लिया।

उन्होंने कहा कि पिछले 5 साल में पार्टी में या सरकार में एनआरसी को लेकर कोई बातचीत हुई ही नहीं है। इसके बारे में विपक्षी दलों द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा है।

मोदी और शाह नहीं हो सकते एक दूसरे से अलग

शाह ऐसे ही मोदी के पूरक नहीं हैं। गोल-मटोल शरीर, गंजा सिर, गंभीर चेहरा, खिचड़ी दाढ़ी, पैनी नजरें और ताने मारने-सी बोलने की उनकी शैली लगभग किसी दक्षिण भारतीय फिल्म के विलेन जैसी है।

उसी तरह भय पैदा करने की उनकी स्टाइल भी है- कम-से-कम नौकरशाही, अपनी पार्टी और मीडिया के अधिकांश वर्ग में तो है ही।

भाषण देते समय ही नहीं, मीडिया से भी बात करते समय एक-एक शब्द चबा-चबाकर बोलते हैं।

हर वाक्य धमकी सरीखा लगता है। संसद में बोलते समय जब वह बायां हाथ कमर पर रखकर दाहिने हाथ की उंगली हिला-हिलाकर भाषण देते हैं, तो लगता है जैसे धमका रहे हों।

बीजेपी में शाह का इस कदर खौफ है कि मोदी को छोड़कर पार्टी का कोई भी नेता शाह के सामने मुंह खोलने में घबराता है- पता नहीं, कब-किस बात पर किसे डांट पड़ने लगे।

अमित शाह अपने को चाणक्य कहलवाना पसंद करते हैं।

लेकिन उनके चुनावी करिश्मे की एक्सपायरी डेट निकल गई है। पिछले एक साल में एक-एक कर सभी बड़े राज्य बीजेपी के हाथ से फिसलते जा रहे हैं।

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के बाद पहले महाराष्ट्र और अब झारखंड में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। न बूथ मैनेजमेंट काम आया, न पन्ना प्रमुख और न ही सोशल मीडिया या नरेंद्र मोदी की रैलियां।

शाह की राजनीति का मूल मंत्र सिर्फ एक रहा है, नेता के पीछे-पीछे चलो

स्टॉक ब्रोकर और पीवीसी पाइप बनाने वाली फैक्ट्री लगाने वाले शाह की राजनीति का मूल मंत्र सिर्फ एक रहा हैः नेता के पीछे-पीछे चलो। फॉलो द लीडर।

उनके लिए नेता का सिर्फ एक ही अर्थ हैः साहब, मतलब मोदी।

चाहे सोहराबुद्दीन शेख, तुलसी प्रजापति और कौसर बी की मुठभेड़ हो या किसी आर्किटेक्ट की छात्रा की जासूसी- शाह की भूमिका को लेकर अंगुली उठती रही है।

यहां तक कि सोहराबुद्दीन मुठभेड़ की सुनवाई कर रहे जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत में भी शाह पर ही उंगलियां उठीं। खैर।

बीजेपी अध्यक्ष के रूप में उन्होंने मोदी के सिर पर कई राज्यों के ताज डाले। केंद्रीय गृहमंत्री बने ,तो मोदी-संघ के सारे एजेंडे पूरा करते रहेः तीन तलाक कानून पास करवा लिया।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटवा लिया, भले ही वहां 5 अगस्त के बाद से ही पूरा इलाका एक तरह से नजरबंद है- अघोषित कर्फ्यू, जहां अधिकतर राजनीतिक हस्तियां या तो जेल में है या अपने ही घर में नजरबंद।

नागरिकता (संशोधन) बिल (कैब) पर संसद में चर्चा के दौरान उन्होंने बिल्कुल गलत तर्क देकर जिस तरह इतिहास की घटनाओं को तोड़ा-मरोड़ा, उससे साफ है कि वह वास्तविक तथ्यों की किस तरह अनदेखी करते हैं।

अगर अपने राजनीतिक उद्देश्य पूरे हो रहे हों, तो शाह के लिए सच और झूठ में ज्यादा फर्क भी नहीं है।

मोदी -शाह की जोड़ी में अटल अडवाणी की अक्स

मोदी-शाह की जोड़ी अक्सर अटल-आडवाणी की जोड़ी की तरह नजर आती है।

मोदी भी अटल बिहारी वाजपेयी की तरह योजनाएं बनाते हैं,

जिन्हें धरातल पर उतारने का काम आडवाणी की तरह अमित शाह करते नजर आते हैं।

चाहे वह कश्मीर का मामला हो या तीनत लाक का या नागरिकता कानून और एनआरसी का। जानबूझकर मोदी इन मामलों में शाह को आगे रखते हैं।

कश्मीर और नागरिकता विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में घंटों चली बहस में मोदी एक शब्द नहीं बोले।

यहां तक कि एक दक्षिण भारतीय मीडिया समूह द्वारा अनुच्छेद 370 पर इंटरव्यू देने से भी मोदी ने साफ इनकार कर दिया।

उनका कहना था कि इसे अमित शाह देख रहे हैं और उन्हीं का साक्षात्कार लिया जाना चाहिए।

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