महाराष्ट्र में सियासी संकट! राज्यपाल ने चला बड़ा दांव, चुनाव आयोग से की ये मांग
महाराष्ट्र में सियासी संकट बढ़ता ही जा रहा है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत करने को लेकर जारी गतिरोध के बीच प्रदेश के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने नया दांव चल दिया है।
मुंबई: महाराष्ट्र में सियासी संकट बढ़ता ही जा रहा है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत करने को लेकर जारी गतिरोध के बीच प्रदेश के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने नया दांव चल दिया है। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एमएलसी नामित करने का फैसला टाल दिया है और अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में डाल दी है।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। उन्होंने चुनाव आयोग से अनुरोध किया है कि वह जल्द से जल्द महाराष्ट्र विधान परिषद की 9 खाली सीटों पर चुनाव का एलान करें। अब अगर चुनाव आयोग राज्यपाल के अनुरोध को मान लेता है तो 28 मई से पहले चुनाव हो सकते हैं। कोश्यारी की इस मांग पर चुनाव आयोग ने शुक्रवार को बैठक करने का फैसला लिया है। जानकारी के मुताबिक इस बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल होंगे।
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राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने चुनाव आयोग से अपने लिख पत्र में कहा है कि केंद्र सरकार ने देश में लॉकडाउन के दौरान कई छूट और उपायों की घोषणा की है। ऐसे में महाराष्ट्र विधान परिषद की रिक्त सीटों के लिए भी चुनाव कराने संबंधी कुछ दिशा-निर्देश जारी हो सकते हैं।
उन्होंने कहा है कि चूंकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं और उन्हें 27 मई 2020 से पहले परिषद में चुने जाने की आवश्यकता है। ऐसे में चुनाव आयोग अपनी ओर से जल्द से जल्द इस पर फैसला ले।
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गौतरलब है कि पहले की योजना के मुताबिक विधान परिषद की नौ सीटों पर 24 अप्रैल को चुनाव होने थे और उद्धव ठाकरे को चुनाव लड़ना था। लेकिन कोरोना वायरस की वजह से आयोग ने चुनाव को स्थगित कर दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चाहते थे कि राज्यपाल अपने कोटे की खाली पड़ी दो सीटों में से एक पर उन्हें नामित कर दें। इसके लिए महाराष्ट्र कैबिनेट ने दो बार प्रस्ताव भी भेजा, हालांकि राज्यपाल ने उस पर कोई निर्णय नहीं किया।
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बता दें कि उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी। संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार किसी भी मंत्री को (मुख्यमंत्री भी) पद की शपथ लेने के छह महीने के भीतर किसी विधानसभा या विधानसपरिषद का सदस्य निर्वाचित होना अनिवार्य है। उद्धव ठाकरे बिना चुनाव लड़े ही सीधे मुख्यमंत्री बने हैं, ऐसे में उन पर यह नियम लागू होता है।