उपचुनाव का डर: निकाले गए MLAs का नाम स्पीकर को नहीं दे रहीं पार्टियां

Update: 2016-06-25 11:14 GMT

लखनऊ: यूपी में 10 और 11 जून को हुए विधान परिषद और राज्यसभा चुनाव ने सभी दलों की पोल खोल दी थी। यदि बीजेपी ने परिषद ओर राज्यसभा की सीट के लिए अपने अतिरिक्त प्रत्याशी नहीं दिए होते तो शायद इस बात का पता भी नहीं चलता कि सभी दलों में बागी पनप रहे हैं। यहां तक कि बीजेपी में भी।

चूंकि दोनो (विधान परिषद और राज्यसभा ) चुनाव में खुली वोटिंग होती है इसलिए क्रॉस वोट करने वालों का पता चल जाता है। सपा को छोड़ किसी भी पार्टी ने क्रॉस वोट करने वाले अपने विधायकों को नहीं छोडा और बाहर का रास्ता दिखा दियां। सपा की ओर से विनोद कुमार सिंह जो पंडित सिंह के नाम से जाने जाते हैं और उनके भाई मुकेश कुमार ने खुले आम बीजेपी समर्थित प्रत्याशी प्रीति महापात्रा को वोट दिया लेकिन सपा ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।

कांग्रेस ने संजय प्रसाद जायसवाल, माधुरी वर्मा, विजय दुबे, मोहम्मद मुस्लिम, दिलनवाज खान और कासिम अली खान को पार्टी से निकाल दिया गया। इनमें से तीन ने बीजेपी और तीन ने बसपा के पक्ष में वोट दिया था ।बीजेपी ने सपा के पक्ष में मतदान करने वाले गोरखपुर ग्रामीण से विधायक विजय बहादुर यादव को पार्टी से निलंबित कर दिया गया। बसपा ने नजीबाबाद से विधायक तस्लीम अहमद को इसी सवाल पर बाहर का रास्ता दिखाया। बसपा ने तो दल विरोधी काम करने के आरोप में कई ओर विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया था।

किसी विधायक को पार्टी से निकालने की प्रक्रिया में उसका नाम विधानसभा अध्यक्ष को देना जरुरी होता है ताकि उसे असम्बद्ध सदस्य करार दिया जाए या उसकी सदस्यता खत्म की जाए लेकिन किसी भी पार्टी ने ऐसा नहीं किया है।किसी भी दल ने विधानसभा सचिवालय को विधायकों की सदस्यता खत्म करने के लिए पत्र नहीं लिखा है। कारण यह कि कोई भी दल अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले उपचुनाव में नहीं जाना चाहता।

नियम के तहत विधानसभा चुनाव में यदि छह महीने से ज्यादा का समय होता है तो उपचुनाव आवश्यक हो जाता है लेकिन शर्त यह है कि दल का नेता विधानसभा अध्यक्ष को निकाले गए विधायक के बारे में लिखित में दें। इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। किसी भी पार्टी ने इसकी हिम्मत नहीं जुटाई। दरअसल कोई भी पार्टी अभी उपचुनाव का खतरा मोल नहीं लेना चाहती वो भी उस हालत में जब विधानसभा चुनाव नजदीक हो।

कांग्रेस के 29 विधायक हैं। यदि छह सदस्यों के बारे में पार्टी विधानसभा अध्यक्ष को लिखित में शिकायत देती है तो उसके विधानसभा में 23 सदस्य ही बचेंगे। विधानसभा का अभी मानसून और शीतकालीन सत्र बचा है जिसमें उसे ज्यादा संख्या बल की जरुरत होगी। इसी तरह बीजेपी ने भी बड़ी चालाकी से अपने बागी विधायक को निकालने का जोखिम नहीं लिया बल्कि उसे मात्र निलंबित किया ।

यहां तक कि बसपा ने भी ऐसा कोई जोखिम नहीं लिया। स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ कर जाने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती और सतर्क हो गई हैं। अब तो वो रुठे विधायकों को मनाने में लग गई हैं। निकाले गए विधायक हरविंदर सिंह साहनी को वापस ले लिया गया है जबकि पूर्व एमएलसी अरविंद त्रिपाठी को वापस लेने की चर्चा चल रही है। मायावती लाख कहें कि स्वामी प्रसाद के जाने से पार्टी में कोई फर्क नहीं पड़ा है लेकिन सच तो यह हैं कि बसपा से एक बड़ा जनाधार वाला नेता चला गया है ।

सभी दलों को उपचुनाव का डर सता रहा है। चुनाव के पहले उपचुनाव में जा कर कोई भी पार्टी अपनी फजीहत नहीं कराना चाहती। यदि उपचुनाव के परिणाम उनके पक्ष या मन मुताबिक नहीं आए तो इसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।

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