देवरिया के संग्राम में ब्राह्मण मंथन से निकलेगा जीत का अमृत, तय होगी राजनीति की दिशा
उत्तर प्रदेश की जातिवादी राजनीति में ब्राह्मण भी निर्णायक भूमिका का निर्वाह कर सकता है लेकिन यह समाज विभिन्न राजनीतिक दलों में बिखरा हुआ है।
अखिलेश तिवारी
लखनऊ: देवरिया के विधानसभा उपचुनाव को राजनीतिक दलों ने दिलचस्प और प्रदेश की भावी राजनीति का निर्णायक बिन्दु बना दिया है। समाजवादी पार्टी से लेकर भाजपा व कांग्रेस ने भी ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर समाज के समर्थन पर अपनी दावेदारी पेश कर दी है। अब देवरिया का चुनाव परिणाम बताएगा कि उत्तर प्रदेश का ब्राह्मण समुदाय क्या योगी आदित्यनाथ सरकार से वाकई नाराज है और भविष्य में अपना राजनीतिक रिश्ता समाजवादी पार्टी, कांग्रेस या बसपा में किसके साथ बनाना पसंद करेगा।
ये भी पढ़ें:महिलाओं को आरक्षण देगी सरकार: नौकरी में मिलेगा फायदा, किया गया ऐलान
जातिवादी राजनीति में ब्राह्मण भी निर्णायक भूमिका का निर्वाह कर सकता है
उत्तर प्रदेश की जातिवादी राजनीति में ब्राह्मण भी निर्णायक भूमिका का निर्वाह कर सकता है लेकिन यह समाज विभिन्न राजनीतिक दलों में बिखरा हुआ है। यह अलग बात है कि पिछले कुछ चुनावों के दौरान इस समाज के बारे में कहा जाता रहा है कि जिस राजनीतिक दल के साथ समाज का समर्थन गया उसे सत्ता की कुर्सी हर हाल में मिली है। भाजपा की केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के समय भी माना गया कि समाज के मतदाताओं ने 2014 में भाजपा का दामन थाम लिया था तो 2017 और 2019 के चुनाव तक पूरी मजबूती से उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ डटा रहा।
प्रदेश की राजनीति में ब्राहमण समुदाय 12 से 14 प्रतिशत तीसरा सबसे बडा समुदाय है। ऐसे में माना जाता है कि जिस ओर भी यह समाज एकमुश्त जाएगा उस राजनीतिक दल को विजय श्री मिलनी तय है। ब्राहमण मतदाता के मुकाबले उत्तर प्रदेश में केवल अनूसूचित जाति और मुस्लिम मतदाता ही तादाद में अधिक हैं।
योगी सरकार पर जातिवादी होने के आरोप
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद जब सरकार पर जातिवादी आरोप लगे तो भी ब्राह्मण समाज के समर्थन में कोई कमी नहीं आई। इसके बावजूद पिछले तीन-चार महीनों के दौरान इस तरह का राजनीतिक माहौल बनाया गया है जिसमें ब्राह्मण समाज को योगी आदित्यनाथ सरकार से नाराज बताया जा रहा है। इस माहौल को भांपते हुए समाजवादी पार्टी ने राजधानी लखनऊ में भगवान परशुराम की विशाल प्रतिमा स्थापित करने का ऐलान कर भाजपा को घेरने की कोशिश तेज कर दी है।
लखीमपुर खीरी के पूर्व विधायक निरवेंद्र मिश्रा मुन्ना की हत्या, विकास दुबे एनकाउंटर समेत अनेक मामलों के बहाने योगी सरकार पर निशाना साधा गया। कांग्रेस ने भी मुन्ना की हत्या के बाद योगी सरकार पर खुलकर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगाए। अयोध्या में सरयू नदी की जलधारा में खड़े होकर ब्राह्मणों के जनेऊ हाथ में लेकर योगी सरकार के खिलाफ कसम खाने की घटना भी उल्लेखनीय है।
देवरिया है ब्राह्मण बाहुल्य सीट
देवरिया सीट को उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण बाहुल्य मतदाता सीट माना जाता है। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी ने सबसे अंतिम समय में प्रत्याशी का ऐलान किया तो भी ब्राहमण प्रत्याशी सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी ही चुना। इससे पहले हालांकि भाजपा ने यहां से सैंथवार समाज के नेता जन्मेजय सिंह को दो बार विधायक बनने का मौका दिया लेकिन इससे पहले व बहुजन समाज पार्टी से 2000 में चुनाव जीत चुके थे। समाजवादी पार्टी ने भी पूर्व कैबिनेट मंत्री ब्रहमाशंकर त्रिपाठी , कांग्रेस ने मुकुंद भास्कर मणि त्रिपाठी और बहुजन समाज पार्टी ने अभयनाथ त्रिपाठी को मैदान में उतारा है।
ये भी पढ़ें:पाकिस्तान का दावा, मोदी सरकार ने दिया था बातचीत का न्योता, लेकिन
जाहिर है इस सीट के मतदाताओं को अब ब्राह्मण प्रत्याशी में ही चुनाव करना है यानी जिस भी राजनीतिक दल के साथ ब्राह्मण समाज एकमुश्त जाएगा उसे ही चुनाव में जीत मिलेगी। ऐसे में स्पष्ट है कि ब्राह्मण उत्पीड़न के आरोपों में घिरी भाजपा और योगी सरकार के लिए भी यह चुनाव उनके पाक-साफ होने का मौका लेकर आया है।
अगर भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई तो ब्राहमण समाज की नाराजगी और योगी सरकार के जातिवादी व्यवहार के बारे में की जा रही चर्चाओं पर भी विराम लग जाएगा। दूसरी ओर अगर ब्राहमण मतदाताओं ने भाजपा से किनारा करते हुए किसी विपक्षी दल पर भरोसा दिखाया तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक संदेश चला जाएगा कि सात सालों से भाजपा के साथ खड़ा ब्राह्मण समाज अब अपना रास्ता बदल चुका है।
दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।