इलाहाबाद: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का सरकारी वकीलों की गलत नियुक्ति को लेकर पारित आदेश का असर इलाहाबाद हाईकोर्ट मे दिखने लगा है। प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह ने यहाँ शनिवार देर शाम तक 7 जुलाई 17 को नियुक्त हुए सभी सिविल के सरकारी वकीलो से स्वयं बात कर उनकी योग्यता को परखा।
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एजी की सरकारी वकीलों से वार्ता का क्रम देर शाम तक चला और उसमें उन्होंने एक-एक वकील से बात की। यद्यपि इसमे कुछ वकील नदारद भी रहे। ऐसी ही प्रक्रिया लखनऊ में भी अपनाई गई। ऐसा माना जा रहा है, कि हाईकोर्ट के आदेश पर योग्य व अनुभवी सरकारी वकीलों को रखने की सरकारी कवायद की जा रही है।
इलाहाबाद प्रधानपीठ व लखनऊ बेंच मे पार्टी व संगठन के योग्य वकीलों को दरकिनार कर अयोग्य व कम अनुभवी सरकारी वकीलों की नियुक्ति से योगी सरकार की काफी किरकिरी हुई। यहाँ तक की हाईकोर्ट को भी इस मामले में दखल देना पड़ा। हाईकोर्ट के कड़े रूख को देखते हुए महाधिवक्ता ने खुद कोर्ट में कहा कि वह सभी नियुक्तियों पर पुनर्विचार करेंगे, जो भी खामियां है दुरुस्त की जाएंगी और इसके लिए कोर्ट से समय की माँग की।
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कोर्ट उन्हे पुनर्विचार के लिए दो बार समय दे चुकी है, परन्तु सरकार इस प्रकरण पर शिथिल है। अंतत: कोर्ट ने सरकार को सरकारी वकीलों की लिस्ट फाइनल कर कोर्ट को बताने का अंतिम मौका देते हुए 5 सितंबर की डेट सुनवाई को लगाई है।
कोर्ट के कड़े तेवर के चलते सरकार अब हरकत मे आई है, और नियुक्त हो चुके सरकारी वकीलों से एजी खुद वार्ता कर उनकी योग्यता को परख रहे हैं। इसके पहले एडवोकेट जनरल ने हाईकोर्ट मे कहा था, कि उन्हें नही पता कि कैसे ऐसी नियुक्तियां हो गई।
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बता दें, सरकारी वकीलों की नियुक्ति को लेकर पहली बार किसी सरकार की कोर्ट द्वारा छीछालेदर हो रही है।
चीफ जस्टिस डीबी भोसले ने तो महाधिवक्ता को कोर्ट में बुलाकर कहा, मेरे कोर्ट मे सरकारी वकील बोल नही पा रहे हैं। केस को समझ नही पाते। ऐसे मे कोर्ट काम कैसे करे? उन्होंने कहा कि जब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस कोर्ट का यह हाल है तो और कोर्ट का हाल कैसा होगा। इस पर महाधिवक्ता ने चीफ जस्टिस से कहा कि वह एक अपर महाधिवक्ता की तैनाती चीफ कोर्ट मे रेगुलर करेंगे।
यही नहीं, हाल यह है कि सरकारी वकीलों से सही सहयोग न मिल सकने से कोर्ट नाराज है। प्रभावी पक्ष रखने में सक्षम न हो पाने पर मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद ने यहाँ के 6 अपर महाधिवक्ताओ को अपने चेम्बर में बुलाया और अपनी कोर्ट में योग्य वकीलों को तैनात करने की हिदायत दी।
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बहरहाल, कोर्ट के हस्तक्षेप से सरकार महाधिवक्ता के मार्फत हरकत में आई है, और योग्य सरकारी वकीलों के अलावा अयोग्य पर बड़ी संख्या मे गाज गिर सकती है।
सूत्रों की माने तो सरकार अबकी विचारधारा से जुड़े व योग्य वकीलों को ही सरकारी वकील बनाने पर विचार कर रही है।
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