भाजपा के जवाब में प्रियंका गांधी का जबरदस्त दांव

Update:2023-07-31 21:26 IST

धनंजय सिंह

लखनऊ : प्रियंका बनाम योगी आदित्यनाथ। अजय कुमार लल्लू बनाम स्वतंत्र देव सिंह। रथी बनाम पैदल सेना। मुकाबले में आमने-सामने खड़े ये लोग और फौज एक-दूसरे के सामने कितना टिक पाएंगे, इस सवाल का जवाब ही यह बताएगा कि प्रियंका गांधी ने प्रदेश कांग्रेस में रद्दोबदल करके जो चौसर बिछाई है उसका नतीजा क्या होगा? हालांकि यह फैसलाकुन घड़ी तकरीबन ढाई साल बाद आएगी। लेकिन उससे पहले दोनों ओर के रथी-महारथी, फौज की ताकत को जांचना-परखना बेहद जरूरी हो जाता है। वह भी तब जब बीते तीन दशक से कांग्रेस का ग्राफ सीधे नीचे की ओर है और भाजपा का ग्राफ नंबे अंश की चढ़ान पर है।

भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ओबीसी खेमे से अपने अध्यक्ष दिए हैं। स्वतंत्र देव कुर्मी बिरादरी से आते हैं, जबकि लल्लू वैश्य बिरादरी से। यह एक कठोर सच्चाई है कि लंबे समय तक स्काईलैब नेताओं के भरोसे पार्टी चलाती आ रही कांग्रेस ने जमीनी नेताओं को खोजकर निकाल तो लिया ही है। उसके प्रदेश अध्यक्ष लल्लू छात्र राजनीति से आते हैं और कांग्रेस के बेहद बुरे दिनों में भी जनता से अपनी जीत पर मोहर लगवाने में कामयाब हो जाते हैं। भाजपा को पिछले दरवाजे का अध्यक्ष चुनना पड़ता है। प्रियंका ने जो प्रदेश कांग्रेस में रद्दोबदल किया है वह प्रियंका के अलावा किसी और को नेता घोषित करके कुछ बड़ा कर पाने की स्थिति में नहीं है।

 

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जातीय राजनीति के खांचे से बाहर निकलना होगा

राजनीति में प्रियंका परिचय की मोहताज नहीं हैं। राजनीति में इससे कम स्थिति योगी आदित्यनाथ की भी नहीं है। दोनों अपनी-अपनी पार्टी के स्टार प्रचारक हैं। प्रियंका द्वारा बिछाई गई चौसर पर जीत हासिल करने के लिए योगी आदित्यनाथ को अपने हिंदुत्व के एजेंडे को और विस्तार देना होगा। प्रियंका को उनकी पार्टी द्वारा धर्मनिरपेक्षता के नाम पर की जा रही तुष्टिकरण की राजनीति को अलविदा कहना होगा। दोनों नेताओं को जातीय राजनीति के खांचे से खुद को बाहर निकालना होगा। योगी आदित्यनाथ को सत्ता विरोधी रुझान न हो, ऐसी स्थितियां पैदा करनी होंगी। प्रियंका गांधी को सत्ता विरोधी रुझान का केंद्र बनना होगा। इसके लिए उन्हें उस सपा और बसपा को हाशिये पर लाना होगा जिसके साथ उनकी पार्टी सूबे में सियासी पारी खेल चुकी है। बहुसंख्यककोकेंद्र में रखकर दोनों को अपनी रणनीति बुननी होगी।

अभी तक रिमोट से चलती रही प्रदेश कांग्रेस

इससे पहले राज बब्बर हों या फिर सलमान खुर्शीद दोनों दिल्ली में बैठकर रिमोट से पार्टी चलाते रहे हैं। कांग्रेस के पास इनका कोई विकल्प नहीं रहा है। राजबब्बर अपने तीन साल के कार्यकाल में कार्यकारिणी तक गठित नहीं कर पाए और निर्मल खत्री के समय गठित कार्यकारिणी के भरोसे पूरा समय काट दिया। उन्होंने प्रदेश में पार्टी को मजबूत बनाने न तो ध्यान दिया और न ही समय। वे सिर्फ बीच-बीच में लखनऊ आते रहे और इसी तरह पार्टी चलाते रहे। यही नहीं, प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जब पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाए गए तब इन्होंने भी रिमोट कांग्रेस चलाई। कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी अब भाजपा में हैं। निर्मल खत्री ने हाईकमान को लिखकर दिया था कि वे अध्यक्ष का बेहद व्यस्ततम काम करने में स्वास्थ्य कारणों के नाते खुद को असमर्थ पाते हैं। बावजूद इसके कांग्रेस को उनका भी विकल्प नहीं मिला था।

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इस हद तक भ्रम की स्थिति में रही है कांग्रेस

कांग्रेस इस हद तक विभ्रम की स्थिति में रही है कि पिछले विधानसभा चुनाव में उसने अपनी चुनावी अभियान की शुरुआत जिस सत्तारूढ़ सपा के खिलाफ शुरू की उसी के साथ हाथ मिलाकर चुनाव लडऩा पड़ा। उसका सत्ताइस साल यूपी बेहाल का नारा उम्मीदकीसाइकिलऔर अधिकार देतेहाथमेंतब्दील हो गया। नीतीश कुमार के चाणक्य कहे जाने वाले प्रशांत किशोर की रणनीति पर पलीता लग गया। कांग्रेस की हालत यहां तक खराब हो गई कि पिछले लोकसभा राहुल गांधी अपनी अमेठी सीट भी नहीं बचा पाए। अमेठी में कांग्रेस की हार की कल्पना तक किसी को नहीं थी।

प्रियंका की नजर ओबीसी व ब्राह्मणों पर

प्रियंका ने कांग्रेस की नई कमेटी का गठन कर जो गोटें बिछाई हैं उससे यह साफ होता है कि उनकी नजर ओबीसी और अगड़ों में बाह्मणों पर टिकी हुई है, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा ने केंद्र से लेकर प्रदेश तक ओबीसी नेताओं की इतनी बड़ी फौज खड़ी कर दी है कि उसे भेद कर वोट निकाल पाना बेहद मुश्किल है। यही नहीं सपा मुस्लिम-यादव पर भरोसा करती हंै जबकि बसपा दलित, मुस्लिम और अगड़ों में से ठाकुर या ब्राह्मण में से किसी एक को लेकर अपना समीकरण तैयार करती है। भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह दोनों लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन किया है उससे साफ है कि उसने जातीय राजनीति की हदबंदी तोड़कर रख दी है। मोदी के नाम पर भाजपा को इन तीनों चुनावों में हर वर्ग के वोट मिले हैं। इसी के दम पर वह चुनावों में शानदार प्रदर्शन कर पाने में कामयाब रही है। कांग्रेस को नंबर एक बनने के लिए न केवल इस हदबंदी पर अपना हक साबित करना होगा बल्कि सत्ता विरोधी रुझान का केंद्र भी बनना होगा। हालांकि सोशल मीडिया पर प्रियंका गांधी ने भाजपा की फौज को पीछे छोड़ा है। तमाम सवालों का जिस मजबूती से वो उठा रही हैं, बीते दिनों जिस तरह जमीन छोड़ चुकी कांग्रेस के बावजूद एक अच्छा प्रदर्शन करके दिखाया उससे कांग्रेसी नेताओं की बाछें खिली हुई हैं।

कांग्रेस के सामने यह चुनौती भी

कांग्रेस की चुनौती यह भी है कि वह किस तरह तकरीबन 50 के पार के अपने नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में डालने पर खामोश रख पाती है। भाजपा हर घंटे चुनावी रणनीति साधती रहती है। सालों में काम करने वाली कांग्रेस को प्रियंका कैसे घंटों में काम करने को तैयार कर पाती हैं, यह भी देखने वाली बात होगी। हालांकि राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि यदि कांग्रेस प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रीकेतौर पर पेशकरतीहैतोवे सत्ताविरोधीरुख का केंद्र हो सकती हैं। ऐसे में वो सूबे में अब तक बने और बनाए गए सभी समीकरणों को उलट-पलट सकती है। लेकिन बिना प्रियंका को नेता घोषित किए उनकी कमेटी और उसे लेकर उभर रहे मतभेदों पर पार पाना मुश्किल है।

 

अजय की कार्यशैली से प्रियंका प्रभावित

कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू कुशीनगर की तमकुहीराज विधानसभा सीट से विधायक हैं। कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ते हुए अजय कुमार ने भाजपा प्रत्याशी जगदीश मिश्र को हराया था। वह 2012 में भी कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। अजय कुमार कांग्रेस के पूर्वी यूपी के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। वे कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा के करीबी भी माने जाते हैं। प्रियंका जब भी यूपी के दौरे पर आती हैं तो लल्लू उनके साथ ही नजर आते हैं। अजय कुमार की कार्यशैली और उनके पार्टी से जुड़ाव के कारण प्रियंका वाड्रा काफी प्रभावित हैं।

सीएम को लेकर नहीं खोला पत्ता

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के बाद प्रियंका गांधी को यूपी का पूरा प्रभार सौंप दिया है। प्रियंका सोशल मीडिया पर लगातार प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ हमला बोल रही है। अब सवाल उठता है कि कांग्रेस प्रियंका को आगामी विधानसभा चुनाव में सीएम के तौर पर पेश करेगी या नहीं। इस पर अभी कांग्रेस ने पत्ता नहीं खोला है। सवाल यह भी है कि यूपी सरकार के खिलाफ एंटी कम्बेन्सीकाफायदाप्रियंकाउठातीहैंया सपा और बसपा। फर्श पर पड़ी पार्टी को अर्श पर पहुंचाने के लिए प्रियंका सॉफ्ट हिदुत्वकाकार्डखेलेगी या भ्रष्ट्राचार का मुद्दा, इस पर कांग्रेस अभी खामोश है। यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 125 सीटों के सापेक्ष 6.25 प्रतिशत वोट हासिल किया था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 65 सीटों के सापेक्ष कांग्रेस को 6.31 प्रतिशत वोट मिला। अब यूपी की राजनीति को किस मुकाम पर प्रियंका ले जाएंगी, यह आने वाला समय ही बता सकता है।

 

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