Mission Punjab 2024: 27 साल पुराने करिश्मे को दोहरा पाएगी शिअद-बसपा गठबंधन !
Mission Punjab 2024: गुरूवार को यूपी की पूर्व सीएम और बसपा सुप्रीमो मायावती ने आगामी लोकसभा चुनाव में पंजाब में शिअद के साथ गठबंधन का ऐलान कर सबको चौंका दिया।
Mission Punjab 2024: अगले आम चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त बचा हुआ है। लेकिन राजनीतिक दल अभी से अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर गठबंधन का दौर शुरू हो गया है। इस मामले में सबसे पहले बाजी मारी है, बहुजन समाज पार्टी और शिरोमणि अकाली दल ने। गुरूवार को यूपी की पूर्व सीएम और बसपा सुप्रीमो मायावती ने आगामी लोकसभा चुनाव में पंजाब में शिअद के साथ गठबंधन का ऐलान कर सबको चौंका दिया।
बीएसपी चीफ ने ये ऐलान तब किया है, जब 10 माह पूर्व पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन की दुर्गति हो गई थी। बसपा-शिअद गठबंधन दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सका था। विधानसभा चुनाव में गठबंधन के नाकामयाब रहने और मायावती द्वारा पिछले दिनों अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने के ऐलान के बावजूद इस गठबंधन ने आकार लिया है तो इसके पीछे 1996 में हुए लोकसभा चुनाव का परिणाम है।
1996 में गठबंधन को मिली थी बड़ी सफलता
1996 के लोकसभा चुनाव में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी एक साथ आए थे। 13 लोकसभा सीटों वाले पंजाब में शिअद ने 10 और बीएसपी ने 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। नतीजों ने सबको हैरान कर दिया था। बीएसपी के सभी तीनों उम्मीदवार अपनी सीट निकालने में कामयाब रहे। वहीं, शिअद ने 10 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस तरह गठबंधन ने 13 में से 11 सीटें जीतकर कांग्रेस को जबरदस्त झटका दिया था।
27 साल पुराने करिश्मे को दोहरा पाएगी शिअद-बसपा गठबंधन
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के एकबार फिर से साथ आ जाने को लेकर मीडिया में खूब चर्चाएं हो रही हैं। दोनों दलों के नेता 1996 के चुनाव परिणाम की दुहाई दे रहे हैं। लेकिन इन 27 बरसों में हालात काफी बदल चुके हैं। उन दिनों शिअद और बसपा अपने – अपने राज्यों में एक मजबूत ताकत हुआ करते थे। मगर वर्तमान में पंजाब में आम आदमी पार्टी के उभार के बाद शिअद हाशिए पर नजर आ रही है। वहीं, यूपी में भी बीजेपी के उभार के बाद मायावती का कमोबेश यही हाल है।
इसके अलावा दस माह पहले विधानसभा चुनाव के दौरान शिअद और बीएसपी ने इसी तरह बड़े जोर-शोर से गठबंधन किया था। 117 विधायकों वाली पंजाब विधानसभा में शिअद ने 97 और बसपा ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन जब नतीजे आए तो यह गठबंधन बुरी तरह धराशायी नजर आया। शिअद जहां तीन सीटों पर सिमट कर रह गई, वहीं बसपा के हिस्से महज एक सीट आई। ऐसे में 27 साल पुराने करिश्मे को दोनों पार्टियां दोहरा पाएंगी या नहीं फिलहाल कहना मुश्किल है।
बीएसपी का पंजाब कनेक्शन
पंजाब बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और देश के बड़े दलित नेताओं में शामिल कांशीराम की जन्मभूमि है। यूपी की राजनीति में उभार से पहले बसपा का पंजाब में मजबूत सियासी दखल था। पंजाब का जातीय समीकरण बसपा की दलित राजनीति के मुफीद था। राज्य में एससी समुदाय की आबादी 33 प्रतिशत है। 117 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें एससी समुदाय के लिए आरक्षित है।
यूपी से अधिक दलित आबादी होने के बावजूद बीएसपी पंजाब में कभी बड़ी राजनीतिक शक्ति के तौर पर उभर नहीं पाई। कांशीराम की राजनीति में सक्रियता कम होने और बीएसपी के यूपी की राजनीति में बड़ा खिलाड़ी बनने के बाद पंजाब में उसका संगठन और कमजोर हो गया।
2020 सें शिअद ने छोड़ा था एनडीए
शिरोमणि अकाली दल बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक रही है। लेकिन साल 2020 में कृषि कानूनों के मुद्दे पर दोनों दलों के बीच दरार आ गई और शिअद ने एनडीए को छोड़ दिया। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने पद से इस्तीफा दे दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिअद दोनों को 2-2 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी।