पंजाब में फिर अध्यक्ष बनने को सिद्धू बेचैन मगर नहीं मिल रही तवज्जो, रेस में इन नेताओं के नाम शामिल
सोनिया गांधी के निर्देश के बाद सिद्धू अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं मगर दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए सियासी चालें भी चल रहे हैं। पार्टी का एक वर्ग उनका समर्थन कर रहा है तो दूसरा वर्ग खुलकर विरोध में खड़ा है।
New Delhi: पंजाब के विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस संगठन में बदलाव पर इन दिनों गहराई से मंथन चल रहा है। राज्य में कांग्रेस (Congress) की पराजय के बाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) से इस्तीफा मांग लिया था। सोनिया के निर्देश के बाद सिद्धू अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं मगर दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए सियासी चालें भी चल रहे हैं। पार्टी का एक वर्ग उनका समर्थन कर रहा है तो दूसरा वर्ग खुलकर विरोध में खड़ा है। पार्टी हाईकमान की ओर से उनकी दावेदारी को कोई भाव नहीं दिया जा रहा है।
शीर्ष नेतृत्व की ओर से किसी दूसरे को राज्य में पार्टी की कमान सौंपने पर विचार चल रहा है ताकि 2024 की सियासी जंग से पहले राज्य में पार्टी की गुटबाजी को पूरी तरह खत्म किया जा सके। विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू की खींचतान के चलते कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। इसी कारण पार्टी संगठन में आमूलचूल बदलाव पर मंथन चल रहा है।
दावेदारों में इन नेताओं के नाम शामिल
राज्य में विधानसभा चुनाव तो अब पांच साल बाद होने हैं मगर कांग्रेस की निगाहें 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिकी हुई हैं। राज्य में लोकसभा की 13 सीटें हैं और इन सीटों पर जीत हासिल करने के लिए सिद्धू के उत्तराधिकारी की जोरशोर से तलाश की जा रही है। अध्यक्ष पद के दावेदारों में सांसद रवनीत सिंह बिट्टू और चौधरी संतोख सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। स्टेट कमेटी की ओर से भेजे गए नामों में इन दोनों नेताओं के नाम शामिल हैं।
इनके अलावा पूर्व डिप्टी सीएम सुखविंदर सिंह रंधावा (Sukhjinder Singh Randhawa) और पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक अमरिंदर राजा वडिंग भी नए अध्यक्ष के दावेदारों में शामिल हैं। पंजाब की सियासत में लौटने वाले पूर्व सांसद और मौजूदा विधायक प्रताप सिंह बाजवा भी अध्यक्ष पद की दावेदारी कर रहे हैं। बाजवा पहले भी प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभा चुके हैं।
सिद्धू बना रहे हाईकमान पर दबाव
दूसरी ओर कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के बावजूद सिद्धू फिर अध्यक्ष बनने के लिए सियासी चालें चलने से बाज नहीं आ रहे हैं। इस बार के चुनाव में सिद्धू को खुद अमृतसरी ईस्ट सीट पर अपने सियासी जीवन में पहली हार का सामना करना पड़ा है। दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दोनों सीटों पर पराजित हुए हैं। सिद्धू ने हाल में दो दर्जन नेताओं के साथ बैठक करके हाईकमान को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की थी।
जानकारों का कहना है कि सिद्धू हाईकमान पर एक बार फिर अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपने का दबाव डाल रहे हैं। हालांकि हाईकमान की ओर से उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है। सिद्धू खेमे की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi ) को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने के बाद हाईकमान को यह बात स्पष्ट कर दी गई थी कि पार्टी की हार या जीत के लिए सिद्धू जिम्मेदार नहीं होंगे। ऐसे में पार्टी की शर्मनाक हार के लिए सिद्धू को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए।
गुटबाजी खत्म करना चाहता है शीर्ष नेतृत्व
वैसे कांग्रेस नेतृत्व के सामने सबसे बड़ा सवाल पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) की गुटबाजी को समाप्त करने का है। यही कारण है कि सिद्धू, चन्नी और बाजवा से इतर किसी ऐसे मजबूत चेहरे की तलाश की जा रही है जो पार्टी में सभी को साथ लेकर चलने में कामयाब हो सके।
कांग्रेस का पूरा फोकस लोकसभा चुनावों पर है और यही कारण है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से नए कांग्रेस अध्यक्ष के लिए गहराई से मंथन किया जा रहा है। पार्टी के स्थापित चेहरों की ताजपोशी से एक बार फिर गुटबाजी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व जल्द ही इस बाबत बड़ा फैसला ले सकता है।