पंजाब में बड़े परिवर्तन की सुगबुगाहट, अमरिंदर का हाथ, भाजपा के साथ
पंजाब में मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद बागी तेवर अपना लेने से साफ हो गया है कि इस सूबे में कांग्रेस दो फाड़ होने की राह पर बढ़ रही है।
लखनऊ: पंजाब में अकाली दल (Akali Dal) ने भले ही पच्चीस साल पुराने गठबंधन से तौबा करके सियासी डगर में भाजपा (BJP) को भले ही अकेले छोड़ दिया हो। पर भाजपा को जल्द ही गठबंधन (Gathbandhan) के लिए एक नया साथी मिलने वाला है। जिस तरह नरेंद्र मोदी (PM Modi ) व अमित शाह (Amit Shah) की भाजपा ने कांग्रेस मुक्त देश की मुहिम चला रखी है, उनके नये पार्टनर के मन में भी कांग्रेस मुक्त पंजाब बनाने की आग धधक रही है। जिसे भाजपा ने ठीक से बाँच लिया है। तभी तो दोनों ओर से एक दूसरे की तारीफ़ में क़सीदे कढ़े जाने का दौर शुरू हो गया है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amarinder Singh) हाल फ़िलहाल कांग्रेस में रह कर ही दो दो हाथ करेंगे, बाद में वह अपनी पार्टी का गठन करके भाजपा के साथ चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। जल्द ही वह अपनी रणनीति का एलान करेंगे।
हालाँकि कांग्रेसी खेमें में यह ख़ुशफ़हमी पसरी है कि कैप्टन अमरिंदर को हटा कर दलित मुख्यमंत्री बना कर पार्टी ने अगले चुनाव के लिए बड़ा मज़बूत आधार तैयार कर लिया है। यही नहीं, अमरिंदर हटने से पार्टी सत्ता विरोधी रुझान के चलते जो वोट कटते उससे सरकार को निजात मिल गयी है। पर कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन के बावजूद 1997 के चुनाव में कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी को केवल 7.5 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में वह सिमटकर 1.5 फ़ीसदी पर आ गयी। हालाँकि 1992 के चुनाव में बसपा को 16 फ़ीसदी वोट मिले थे। जबकि जाट सिखों की आबादी 25 फ़ीसदी के आसपास ही है। पर इनका दबदबा है।
पंजाब में नए सियासी समीकरण के संकेत, पंजाब में मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद बागी तेवर अपना लेने से साफ हो गया है कि इस सूबे में कांग्रेस दो फाड़ होने की राह पर बढ़ रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की ताजपोशी के फैसले के समय ही यह बात साफ हो गई थी कि आने वाले दिनों में पार्टी का संकट बढ़ सकता है। कैप्टन और सिद्धू के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर रहा है । मगर कांग्रेस हाईकमान ने कैप्टन के विरोध को दरकिनार करते हुए सिद्धू की प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का फैसला लिया था। मुख्यमंत्री पद पर रहने के दौरान तो कैप्टन सिद्धू के हमलों के वार सहते रहे मगर इस्तीफा देने के साथ ही उन्होंने अपने पहले बयान में सिद्धू को राष्ट्र विरोधी बताकर अपनी भावी सियासत का संकेत दे दिया।
कैप्टन के मौजूदा रुख से साफ है कि अब वे ज्यादा दिनों तक कांग्रेस में नहीं रहने वाले। पंजाब में विधानसभा चुनाव सिर पर है। ऐसे में कैप्टन को अपने सियासी भविष्य पर जल्द ही फैसला लेना है। कैप्टन का राष्ट्रवादी रुख भाजपा को भी रास आ रहा है। अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा को भी पंजाब में एक साझीदार की तलाश है मगर कैप्टन के चेहरे के साथ सत्ता विरोधी रुझान का एक बड़ा खतरा भी है। इसलिए कैप्टन और भाजपा के बीच दोस्ती के एक नए फार्मूले पर चर्चा चल रही है। माना जा रहा है कि कैप्टन जल्द ही एक सियासी दल का गठन कर सकते हैं। फिर इस दल से भाजपा गठजोड़ करके चुनावी मैदान में उतर सकती है। सियासी जानकारों का मानना है कि शीर्ष स्तर पर सारे विकल्पों पर मंथन किया जा रहा है मगर मंजिल पर पहुंचने के लिए इस रास्ते को सबसे सटीक माना जा रहा है।
भाजपा अकाली दल
पंजाब में बीजेपी-अकाली दल 1996 से गठबंधन का हिस्सा थे। पंजाब में 1997 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 22 सीटों पर चुनाव लड़ी 18 सीटें जीती, अकाली दल 92 पर चुनाव लड़ी, 75 सीटें जीती। सरकार बीजेपी-अकाली की बनी। 2002 में बीजेपी 23 सीटों पर चुनाव लड़ी, 3 सीटों पर सिमट गई, जबकि अकाली 92 सीटों पर चुनाव लड़ी, 41 सीट जीती। तब प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी। 2007 में बीजेपी 23 सीटों पर चुनाव लड़ी, 19 जीती और अकाली 92 सीटों पर चुनाव लड़ी 48 जीती। बीजेपी-अकाली सरकार बनी। 2012 में बीजेपी 23 सीटों पर चुनाव लड़ी 12 सीटें जीती, अकाली दल 94 सीटों पर लड़ी 56 सीटें जीती। प्रदेश में बीजेपी-अकाली की सरकार बनी। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 23 सीटों पर लड़ी मात्र 3 सीट जीती, अकाली 94 पर लड़ी महज 15 सीटें मिली। सरकार कॉंग्रेस की बनी।लेकिन अब कांग्रेस के चेहरा कहे जाने वाले अमरिंदर सिंह नई डगर पर चलने की रणनीति बनाने में जुटे हैं।
भाजपा को मजबूत पार्टनर की तलाश
पिछले चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन से यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि भले ही भाजपा की ओर से 117 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा किया जा रहा है मगर उसे भी राज्य में किसी मजबूत पार्टनर की तलाश है। राज्य के मौजूदा सियासी हालात को देखते हुए भाजपा को कोई मजबूत और साझीदार नहीं मिल रहा है क्योंकि बसपा ने पहले ही अकाली दल से गठबंधन कर लिया है।
कांग्रेस और आप ने पूरी मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर ली है। इन दोनों दलों से भाजपा की सियासी दुश्मनी जगजाहिर है। ऐसे में भाजपा के लिए कैप्टन ही विकल्प के रूप में बचे हैं। भाजपा और और कैप्टन मिलकर दूसरे दलों के लिए मजबूत चुनौती बनकर उभर सकते हैं।
कैप्टन के सामने भी यही मजबूरी
भाजपा जैसी मजबूरी ही कैप्टन के खेमे में भी दिख रही है। विधानसभा चुनाव सिर पर होने के कारण कैप्टन के पास भी ज्यादा समय नहीं बचा है । उनके लिए अपने दम पर कांग्रेस को चुनौती देना संभव नहीं दिखता। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही कैप्टन ने जिस तरह हमलावर रुख अपना रखा है, उससे साफ है कि उन्होंने कांग्रेस से अलग होने का पूरी तरह मन बना लिया है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के मंत्रिमंडल के विस्तार में भी कैप्टन के करीबियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। ऐसे में कैप्टन के पास भी कांग्रेस से बगावत के सिवा कोई विकल्प बचता नहीं दिख रहा है।
कैप्टन ने सोच समझकर खोला मोर्चा
कैप्टन के रुख से साफ है कि वे पूरे सियासी हालात का आंकलन कर चुके हैं । इसी कारण उन्होंने सिद्धू के साथ ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व खिलाफ भी हमला बोल दिया है। उन्होंने हाल में राहुल और प्रियंका को अनुभवहीन बताते हुए कहा था कि सलाहकार इन दोनों को गुमराह करने में जुटे हुए हैं । पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को सियासी हालात की जमीनी जानकारी नहीं है।
कैप्टन के बयान से यह भी साफ हो गया है कि उन्हें अब अपने खिलाफ पार्टी हाईकमान की ओर से किसी भी कार्रवाई का कोई डर नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस हाईकमान पर भी कैप्टन के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया है।
उन्होंने हाईकमान को साफ तौर पर चेतावनी दी है कि यदि सिद्धू को सीएम पद का चेहरा बनाया गया तो वे सिद्धू के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारेंगे। कैप्टन का यह बयान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वे यह काम कांग्रेस में रहकर तो नहीं कर सकते। इससे साफ है कि कैप्टन ने अलग राह चुनने का फैसला कर लिया है । आने वाले दिनों में इस बाबत एलान किया जा सकता है।
कैप्टन के प्रति प्रेम अनायास नहीं
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का मौजूदा राष्ट्रवादी रुख और भाजपा में कैप्टन के प्रति उपजा प्रेम अनायास नहीं है। कैप्टन सिद्धू के साथ ही राहुल और प्रियंका के खिलाफ मोर्चा खोलकर वेट एंड वाच की मुद्रा में हैं। वैसे विधानसभा चुनाव सिर पर होने के कारण वेट एंड वाच की यह मुद्रा भी लंबे समय तक नहीं चलने वाली। कैप्टन के पार्टी विरोधी रुख को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व को भी इस बाबत जल्द ही फैसला लेना है।
दूसरी ओर भाजपा अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद पंजाब में एक मजबूत साझीदार की तलाश में है मगर इसके साथ ही पार्टी कैप्टन के चेहरे के साथ सत्ता विरोधी रुझान से भी बचना चाहती है। सिद्धू समेत कांग्रेस के कई नेता भी कैप्टन पर 2017 में किए गए चुनावी वादों को पूरा न करने का आरोप लगाते रहे हैं। गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी के मामले में कड़ा रुख न अपनाने के कारण भी कैप्टन को घेरा जाता रहा है। इसी कारण भाजपा भी कैप्टन की मदद लेने की इच्छा के बावजूद फूंक-फूंक कर इस मामले में कदम आगे बढ़ा रही है।
हिंदू मतदाताओं पर नजर
यदि पंजाब के सियासी हालात का विश्लेषण किया जाए तो पूर्व के चुनावों से स्पष्ट है कि पंजाब में जब भी भाजपा कमजोर हुई है तो उसका बड़ा फायदा कांग्रेस को मिलता रहा है। जब-जब भी भाजपा के वोट प्रतिशत में गिरावट आई है तब-तब कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा है। भाजपा और अकाली दल का गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस को सियासी फायदा होने की उम्मीद जताई जा रही थी। मगर अब कैप्टन के बागी तेवर से कांग्रेस को झटका भी लग सकता है।
कांग्रेस और भाजपा दोनों का राजनीतिक आधार हिंदू मतदाता ही रहे हैं । अब इस वोट बैंक के लिए कड़ी सियासी जंग होने की उम्मीद जताई जा रही है। हिंदू वोटों का गढ़ माने जाने वाले मालवा इलाके में अकाली दल को भी भाजपा के साथ का फायदा मिलता रहा है। मगर अब कैप्टन और भाजपा मिलकर इस इलाके में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। इस इलाके में करीब 67 विधानसभा सीटें हैं । इन सीटों पर भाजपा और कैप्टन का गठबंधन अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। सिद्धू के पाक कनेक्शन पर कैप्टन का हमला यहां इस गठजोड़ के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
भाजपा को दमदार चेहरे की तलाश
पंजाब विधानसभा के चुनाव में भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी किसी दमदार चेहरे का न होना है। पार्टी पहले भी इसका खामियाजा भुगतती रही है । मगर अभी तक पार्टी में कोई दमदार चेहरा नहीं खड़ा किया जा सका। कैप्टन के साथ हाथ मिलाने से भाजपा की यह कमी भी पूरी हो सकती है। कांग्रेस ने 2017 का विधानसभा चुनाव का कैप्टन के चेहरे पर ही लड़ा था। कैप्टन और भाजपा का गठबंधन इस कमी को भी पूरी कर सकता है। भाजपा की ओर से कैप्टन को चेहरा बनाए जाने की घोषणा तो शायद न की जाए मगर कैप्टन के साथ गठजोड़ से पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को लुभाने में पार्टी को आसानी जरूर होगी।
एक पेंच नए कृषि कानूनों को लेकर जरूर फंसा हुआ है क्योंकि कैप्टन लगातार इस मुद्दे पर मुखर रहे हैं । उन्होंने विधानसभा में सबसे पहले नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित कराया था। अब देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा और कैप्टन की ओर से इस मामले में कौन सी काट खोजी जाती है।
पंजाब में दलित राजनीति
अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी 25 साल पहले दोनों दलों ने लोकसभा के चुनाव में गठबंधन किया था। तब उसके नतीजे भी शानदार रहे थे। गठबंधन ने पंजाब की 13 में से 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसी के मद्देनजर एक बार फिर दोनों दल साथ आए हैं। देश में सबसे ज्यादा 32 फीसदी दलित आबादी पंजाब में रहती है, जो राजनीतिक दशा और दिशा बदलने की ताकत रखती है। पंजाब का यह वर्ग पूरी तरह कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा है। दलित वोट आमतौर पर कांग्रेस और अकाली दल के बीच बंटता रहा है। हालांकि बसपा ने इसमें सेंध लगाने की कोशिश की। लेकिन उसे भी एकतरफा समर्थन नहीं मिला। वहीं, आम आदमी पार्टी के पंजाब में दलित वोटों को साधने के लिए तमाम कोशिश की, लेकिन अधिकतर हिस्सा उसके साथ नहीं गया।
पंजाब में दलितों की जनसंख्या सबसे अधिक 32 प्रतिशत के करीब है। नई जनगणना के आंकड़े आने पर यह प्रतिशत बढ़कर 38 फीसदी तक जा सकता है।पंजाब की अनुसूचित जाति में 26.33 मज़हबी सिख हैं। रामदसिया समाज की आबादी 20.73 फ़ीसदी है।आँधी धर्मियों की संख्या 10.17 फ़ीसदी व 8.66 फ़ीसदी बाल्मिकी हैं। पंजाब में जाट सिखों की आबादी केवल 25 प्रतिशत है । लेकिन उन्होंने राजनीति में एकाधिकार स्थापित किया हुआ है। वर्तमान 117 सदस्यीय सदन में कांग्रेस के पास 20 दलित विधायक हैं। जबकि राज्य में कुल 36 आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र हैं। इनमें से केवल तीन दलित विधायकों को ही मंत्रिमंडल में जगह मिली।शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी में कई दलित नेता हैं,इसीलिए दोनों ने गठबंधन किया है। आम आदमी पार्टी सत्ता में आने पर दलित उपमुख्यमंत्री का वादा करती रही है।
दलित समुदाय दो हिस्सों में बंटा है
पंजाब में दलित वोट अलग-अलग वर्गों में बंटा है। यहां रविदासी और वाल्मीकि दो बड़े वर्ग दलित समुदाय से हैं। देहात में रहने वाले दलित वोटरों में एक बड़ा हिस्सा डेरों से जुड़ा है। ऐसे में चुनाव के वक्त ये डेरे भी अहम भूमिका निभाते हैं। महत्वपूर्ण है कि दोआबा की बेल्ट में जो दलित हैं, वे पंजाब के दूसरे हिस्सों से अलग हैं। इसकी वजह यह है कि इनमें से अधिकांश परिवारों का कम से कम एक सदस्य एनआरआई (विदेश में रहता है) है। इस नाते आर्थिक रूप से ये काफी संपन्न हैं। इनका असर फगवाड़ा , जालंधर और लुधियाना के कुछ हिस्सों में है।
पंजाब का जातीय समीकरण
दरअसल, पंजाब में राज्य तीन हिस्सों में बंटा है। माझा , मालवा और दोआब। इन इलाकों में सभी प्रमुख जिले आते हैं। माझा में अमृतसर, पठानकोट, गुरदासपुर, तरनतारण जिले आते हैं। वहीं मालवा में जालंधर, पटियाला, मोहाली, बठिंडा, बरनाला, कपूरथला आदि जिले हैं। दोआब में फिरोजपुर, फाजिल्का, मानसा, रूपनगर, लुधियाना, पटियाला, मोहाली, बरनाला जिले अहम हैं। राज्य के 22 जिलों में से 18 जिलों में सिख बहुसंख्यक हैं। पंजाब में लगभग दो करोड़ वोटर हैं।
2017 विधानसभा में बसपा का प्रदर्शन
2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक था। 2017 में बसपा कुल 111 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जीतना को दूर, बसपा का कोई भी उम्मीदवार दूसरे या तीसरे नंबर पर भी नहीं था। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को कुल 1.5% वोट मिले थे।
1992 बसपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन
बसपा ने विधानसभा चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन साल 1992 के विधानसभा चुनाव में किया था। तब पार्टी 105 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। उसने 9 सीटें जीती थी। उसके 32 उम्मीदवार दूसरे और 40 उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे थे। उस चुनाव में बसपा ने 16.3 प्रतिशत वोट हासिल किये थे।
2019 लोकसभा चुनाव बसपा का प्रदर्शन
2019 लोकसभा चुनाव में पंजाब में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भले ही एक भी सीट नहीं जीत पाई।लेकिन उसने आम आदमी पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया। तीसरा स्थान हासिल कर कई लोगों को चौंका दिया। बसपा तीन सीटों पर चुनाव लड़ी थी। राज्य में पिछले कई सालों में अपने खिसकते वोट बैंक से जूझ रही बसपा ने 3.5 फीसद वोट हासिल किया। पार्टी को इस आम चुनाव में राज्य में 4.79 लाख वोट मिले। इस चुनाव में बसपा पंजाब लोकतांत्रिक गठबंधन के तहत चुनाव में उतरी थी। इस गठबंधन में कई अन्य राजनीतिक दल थे। सीटों के समझौते के तहत बसपा ने आनंदपुर साहिब, होशियारपुर (सुरक्षित) और जालंधर (सु) पर उम्मीदवार उतारा था।
2014 में बसपा सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और फिर भी उसे केवल 2.63 लाख वोट मिले थे। पार्टी उस बार सात सीटों पर चौथे स्थान पर , दो सीटों पर छठे नंबर पर और दो सीटों पर पांचवें नंबर पर थी। बसपा पंजाब में इस बार जिन सीटों पर चुनाव में उतरी थी, वहां आम आदमी पार्टी चौथे नंबर पर रही, जबकि आम आदमी पार्टी राज्य में मुख्य विपक्षी दल है।
नवजोत सिंह
नवजोत सिंह सिद्धू बीजेपी की टिकट पर पहली बार 2004 में अमृतसर की लोकसभा सीट से सांसद चुने गये। उन पर एक व्यक्ति की गैर इरादतन हत्या का आरोप लगा। मुकदमा चला और अदालत ने उन्हें 3 साल की सजा सुनायी। जिसके बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से तत्काल त्यागपत्र देकर उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की। उच्चतम न्यायालय द्वारा निचली अदालत की सजा पर रोक लगाने के पश्चात उन्होंने दोबारा उसी सीट से चुनाव लड़ा। सीधे मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी व पंजाब के वित्त मंत्री सुरिन्दर सिंगला को 77,626 वोटों के बड़े अंतर से हराया। 2009 के आम चुनाव में सिद्धू बीजेपी के टिकट से मैदान में उतरे और कांग्रेस के ओम प्रकाश सोनी को 6,858 वोटों से हराकर अमृतसर की सीट पर तीसरी बार विजय हासिल की। मगर 2014 के लोकसभा चुनावों में सिद्धू को भाजपा ने अमृतसर से चुनाव नहीं लड़ने दिया गया। उनकी जगह पार्टी ने अरुण जेटली को उतारा। हालांकि जेटली यह चुनाव हार गए। नाराज सिद्धू को बीजेपी ने अप्रैल 2016 में राज्यसभा भेजा। लेकिन वे खुश नहीं थे। सिद्धू ने जुलाई 2016 में बीजेपी और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। बीजेपी छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी 'आवाज-ए-पंजाब' बनाई। सिद्धू ने जनवरी 2017 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। इसके बाद 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। इसमें सिद्धू ने 42,809 वोटों के अंतर से जीत हासिल की।
कैप्टन अमरिंदर सिंह
कैप्टन अमरिंदर सिंह राजनीति के अलावा एक लेखक भी रहे हैं। उन्होंने कुछ किताबें लिखी हैं। उन्होंने युद्ध और सिख इतिहास पर कई किताबें लिखी हैं,जिसमें 'ए रिज टू फार', 'लैस्ट वी फॉरगेट', 'द लास्ट सनसेट: राइज एंड फॉल ऑफ लाहौर दरबार" और "द सिख इन ब्रिटेन: 150 साल की तस्वीरें"; शामिल हैं। उनके हालिया कार्यों में 'इंडियाज़ मिलिट्री कॉन्ट्री ब्यूशन टू दि ग्रेट वॉर 1914 टू 1918,' जिसका विमोचन 6 दिसंबर,2014 को चंडीगढ़ में किया गया। 'दि मॉनसून वॉर: यंग ऑफीसर्स रीमिनाइस 1965 इंडिया-पाकिस्ता न वॉर,' जिसमें 1965 भारत-पाक युद्ध से जुड़ी उनकी यादें शामिल हैं। इसके अलावा अमरिंदर सिंह पोलो, राइडिंग, क्रिकेट, स्क्वैश और बैडमिंटन जैसे खेलों में विशेष रुचि रखते हैं।
पंजाब की जनसंख्या और धर्म-जाति प्रतिशत
2011 में पंजाब की कुल आबादी 27,743,338
पुरुषों की जनसंख्या 14,640,284
महिलाओं की जनसंख्या 13,103,054
भारत की कुल जनसंख्या का 2.29% पंजाब में
लिंग अनुपात- 895
पंजाब की कुल साक्षरता- 75.84%
साक्षरता पुरुष- 80.44%
साक्षरता महिलाएं- 70.74%
धर्म जनसंख्या (2011 के अनुसार) प्रतिशत
सिख 16,004,754 57.69%
हिंदू 10,678,138 38.49%
मुस्लिम 535,489 1.93%
ईसाई 348,230 1.26%
ईसाई 348,230 1.26%
जैन 45,040 0.16%
अघोषित 87,564 0.32%
अन्य 10,886 0.04%
कुल 27,743,338 100.00%