Punjab: सिद्धू के नए सियासी खेल पर टिकीं निगाहें, सीएम भगवंत मान से आज करेंगे मुलाकात
Punjab News Today: सिद्धू नई सियासी चाल चलते हुए नजर आ रहे हैं। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से आज मुलाकात करने का ऐलान किया है।
Punjab News Today: पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की सियासी चालों को समझना कांग्रेस नेताओं के लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता रहा है। वैसे कांग्रेस में फिलहाल उनके दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। सिद्धू के पार्टी विरोधी बयानों की शिकायत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच चुकी है। पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी की ओर से इस बाबत शिकायत दर्ज कराने के बाद मामला अनुशासन समिति के पास भेजा जा चुका है। अब कांग्रेस में सिद्धू के खिलाफ कार्रवाई तय मानी जा रही है।
ऐसे में सिद्धू (Navjot Singh Sidhu new political game) नई सियासी चाल चलते हुए नजर आ रहे हैं। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान(CM Bhagwant Mann) से आज मुलाकात करने का ऐलान किया है। सिद्धू पहले भी भगवंत मान को अपना छोटा भाई और ईमानदार व्यक्ति बताकर उनकी तारीफ कर चुके हैं। दोनों नेताओं की मुलाकात आज शाम को प्रस्तावित है और सभी की निगाहें इस मुलाकात पर लगी हुई हैं। सियासी हलकों में सिद्धू के नए सियासी खेल को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं।
आज शाम को होगी दोनों नेताओं की मुलाकात
सिद्धू ने रविवार को किए गए अपने ट्वीट में मान से मुलाकात करने की बात कही है। उनका कहना है कि वे पंजाब की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मान से चर्चा करेंगे। उन्होंने आज शाम सवा पांच बजे मान से मुलाकात की जानकारी दी है। सिद्धू ने कहा कि पंजाब के विकास के लिए ईमानदार और मिलाजुला प्रयास किया जाना जरूरी है। मान से सिद्धू के इस मुलाकात से पहले मान के प्रति सिद्धू का नजरिया जान लेना भी जरूरी है।
सिद्धू ने पिछले महीने मान की तारीफ करते हुए उन्हें बेहद ईमानदार इंसान बताया था। सिद्धू का कहना था कि इसीलिए उन्होंने मान पर कभी उंगली नहीं उठाई। उन्होंने यहां तक कहा था कि वो पार्टी लाइन से हटकर मान का साथ देंगे क्योंकि यह पंजाब के विकास की लड़ाई है। हालांकि पंजाब के कानून व्यवस्था को लेकर वे नई सरकार पर निशाना भी साध चुके हैं। वे मान को रबड़ का गुड्डा बताने के साथ पंजाब में पुलिस का दुरुपयोग किए जाने का आरोप भी लगा चुके हैं।
मुलाकात को लेकर सियासी अटकलें
पंजाब की सियासत(Punjab politics) में सिद्धू की मान से आज प्रस्तावित मुलाकात को लेकर खूब सियासी अटकलें लगाई जा रही हैं। पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सिद्धू की पार्टी में अहमियत लगातार कम होती जा रही है। विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के हाथों कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। आप 92 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी जबकि कांग्रेस 18 सीटों पर सिमट गई थी।
इस करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। अब कांग्रेस की ओर से अमरिंदर सिंह बराड़ राजा वडिंग के रूप में नए अध्यक्ष की ताजपोशी हो चुकी है। राजा वडिंग से भी सिद्धू के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं। पंजाब कांग्रेस के नए अध्यक्ष भी सिद्धू के पार्टी विरोधी बयानों के कारण उनसे काफी खफा हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान सिद्धू के उल्टे सीधे बयानों के कारण पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
सिद्धू ने की पीके की तारीफ
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर से कांग्रेस नेतृत्व की बातचीत टूटने के बाद भी सिद्धू ने पीके की तारीफ की थी। पीके की कांग्रेस में एंट्री की संभावनाओं पर विराम लगने के बाद उन्होंने पीके को अपना पुराना दोस्त बताया था। उनका कहना था कि पुराना दोस्त और पुराना सोना हमेशा बेहतर होता है।
पीके की ओर से बिहार में नई राजनीतिक पार्टी बनाने की शुरुआत के संकेत के बाद भी सिद्धू खामोश नहीं रहे और लिखा कि पहला कदम ही आधी लड़ाई जीतने का संकेत होता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि शुरुआत अच्छी हो तो परिणाम भी अच्छा जरूर होता है। उन्होंने पिछले दिनों दिल्ली में पीके के साथ मुलाकात भी की थी। सिद्धू को 2017 में कांग्रेस में शामिल कराने में भी पीके की बड़ी भूमिका बताई जाती है।
कांग्रेस के लिए मुसीबत बना पंजाब
दरअसल कांग्रेस की पंजाब इकाई का मामला काफी दिनों से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए मुसीबत बना हुआ है। विधानसभा चुनाव के दौरान भी सिद्धू उल्टा-सीधा बयान देने में जुटे हुए थे। तब पार्टी की एकजुटता जताने और सियासी नुकसान की आशंका से कांग्रेस नेतृत्व ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज किया था।
सिद्धू को पिछले साल जुलाई में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई थी। पार्टी की करारी हार के बाद हालांकि शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर उन्होंने अध्यक्ष पद जरूर छोड़ दिया है मगर वे अभी भी पार्टी की नीतियों को लेकर सवाल खड़े करने में जुटे हुए हैं।