Right To Health Bill: राजस्थान में 'सेहत का अधिकार', प्राइवेट अस्पतालों को मंजूर नहीं

Right To Health Bill: राइट टू हेल्थ कानून जिला स्वास्थ्य प्राधिकरणों और एक राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण के निर्माण की भी कल्पना करता है, जो अस्पतालों और क्लीनिकों का निरीक्षण कर सकता है, और शिकायतें आने पर शिकायत निवारण प्रणाली के रूप में कार्य कर सकता है।

Update: 2023-03-27 22:12 GMT
right to health bill (Photo-Social Media)

Rajasthan News: राजस्थान राइट टू हेल्थ यानी स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। कई मायनों में, यह एक ऐतिहासिक कानून है क्योंकि यह स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को राज्य के प्रत्येक निवासी का कानूनी अधिकार बनाता है। लेकिन निजी अस्पताल और निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को ये रास नहीं आ रहा है और वे इसका विरोध कर रहे हैं।

क्या है कानून

  • राइट टू हेल्थ कानून के तहत, न तो सरकारी और न ही निजी अस्पताल और न ही डॉक्टर किसी व्यक्ति को आपातकालीन उपचार के लिए मना कर सकते हैं।
    ये अधिनियम राजस्थान में किसी भी निवासी को निजी या सार्वजनिक अस्पताल में ओपीडी या इनडोर रोगी परामर्श, आपातकालीन परिवहन, आपातकालीन चिकित्सा देखभाल और आपातकालीन निदान का अधिकार देता है।
  • आपातकालीन इलाज में दुर्घटना, पशु या सांप के काटने, गर्भावस्था की जटिलता या राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा परिभाषित आपात स्थिति में देखभाल शामिल होगी।
  • आपात स्थिति में, एक निजी क्लिनिक या अस्पताल में इलाज कराने वाले रोगी से उपचार या निदान के लिए अग्रिम जमा या पूर्व भुगतान की अपेक्षा नहीं की जाएगी।
  • ऐसी स्थिति में जहां मरीज किसी निजी केंद्र में इलाज के लिए भुगतान नहीं कर सकता है, तो राज्य सरकार रोगी को स्थिर करने और किसी अन्य अस्पताल में ट्रांसफर करने में हुई लागत के लिए अस्पताल की प्रतिपूर्ति करेगी।
  • मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ
  • आपातकालीन देखभाल के अलावा, ये कानून लोगों को सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य संस्थानों, स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों और नामित स्वास्थ्य केंद्रों से मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार भी देता है।
  • मरीज को यह चुनने का भी अधिकार है कि दवाएं कहां से प्राप्त करें या परीक्षण करवाएं। यह निजी अस्पतालों को इन-हाउस फार्मेसियों से दवाएं खरीदने पर जोर देने से रोकेगा।
  • ये कानून सार्वजनिक अस्पतालों को मरीजों के इलाज के लिए बाध्यकारी बनाता है। साथ ही ये निजी क्षेत्र के लिए आपातकालीन उपचार प्रदान करना अनिवार्य बनाता है जहां सरकारी अस्पताल सेवा प्रदान नहीं कर सकते हैं।

राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण की स्थापना

राइट टू हेल्थ कानून जिला स्वास्थ्य प्राधिकरणों और एक राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण के निर्माण की भी कल्पना करता है, जो अस्पतालों और क्लीनिकों का निरीक्षण कर सकता है, और शिकायतें आने पर शिकायत निवारण प्रणाली के रूप में कार्य कर सकता है। ये अथॉरिटीज कानून को लागू करने के लिए गाइडलाइंस भी बनाएंगी और ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल पर सरकार को सलाह देंगी। अधिनियम के तहत किसी भी उल्लंघन के लिए, अस्पताल या डॉक्टर को 10,000 रुपये का जुर्माना देना होगा, जो बाद के उल्लंघनों के लिए 25,000 रुपये तक बढ़ जाता है।

चार साल पहले उठी थी मांग

राजस्थान में इस कानून के लिए मांग लगभग चार साल पहले उठी थी। पूरे भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क जन स्वास्थ्य अभियान के प्रतिनिधियों ने 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में स्वास्थ्य के अधिकार को शामिल करने के लिए कांग्रेस से संपर्क किया था।।पार्टी नेता हरीश चौधरी, जो उस समय कांग्रेस घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष थे, ने ये सुझाव स्वीकार कर लिया। भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमान (2018-19) के अनुसार, नवीनतम डेटा से पता चलता है कि भारत के 5.4 लाख करोड़ रुपये के वर्तमान स्वास्थ्य व्यय में, केंद्रीय, राज्य और स्थानीय निकाय सरकारों का योगदान केवल 32.35 फीसदी है। यानी लोगों द्वारा अपनी जेब से खर्च 53.23 फीसदी है।

विरोध कर रहे डॉक्टर

निजी क्षेत्र के डॉक्टर इस कानून को असंवैधानिक बता कर इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है और निजी सेक्टर पर जबरन इसे थोप रही है। डॉक्टरों का कहना है कि सरकार को अपनी व्यवस्था ठीक करनी चाहिए।

Tags:    

Similar News