सात समंदर पार यूपी के इस शहर की पहचान, कृष्ण की बांसुरी की है यहां डिमांड

बीते साल उन्होंने यूपी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में दो लाख रुपये बांसुरी बेच कर हासिल किये थे। इस बार भी उनको अच्छे कारोबार की उम्मीद है।

Update:2021-01-27 19:04 IST
सात समंदर पार यूपी के इस शहर की पहचान, कृष्ण की बांसुरी की है यहां डिमांड

लखनऊ: बांसुरी की धुन हर किसी का मन मोह लेती है। जब बात कान्हा के बासूरी को हो तो क्या कहने।श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा है, लेकिन उनकी पहचान रही बांसुरी पीलीभीत में बनती है। यह बांसुरी यूएस समेत दुनिया के कई देशों में सप्लाई की जाती है।

कान्हा की बांसुरी की धुन सिर्फ राधा, गोकुल के ग्वाल-बालों और गायों को ही नहीं, पूरे देश और दुनिया को पसंद है। बांसुरी सिर्फ कृष्ण के समय ही नहीं बनती थी। बल्कि आज भी बांसुरी की डिमांड है। फिलहाल खास तरह की ये बांसुरी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बनती है। यहां की बांसुरी के मुरीद देश में ही नहीं सात समुंदर पार फ्रांस, इटली और अमेरिका सहित कई देश हैं।

योगी सरकार ने बांसुरी को पीलीभीत का 'एक जिला, एक उत्पाद' घोषित कर रखा है। अवध शिल्प ग्राम के हुनर हाट में ओडीओपी की दीर्घा में एक दुकान बांसुरी की भी है। यह दुकान पीलीभीत के बशीर खां मोहल्ले में रहने वाले, बांसुरी बनाने वाले इकरार नवी की है। नवी अपने नायाब किस्म की बांसुरियों के लिए कई पुरस्कार भी पा चुके हैं।

देश विदेश में बिजनेस

बांसुरी बनाना और बेचना उनका पुस्तैनी काम है। बांसुरी तो कन्हैया जी (भगवान कृष्ण) की देन है जो लोगों की रोजी रोटी चला रही है। बांसुरी कारोबार पर आए संकट को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओडीओपी के जरिये दूर किया है। पीलीभीत में आजादी के पहले से बांसुरी बनाने का बिजनेस चलता आ रहा है। पीलीभीत की बनी बांसुरी दुनिया के कोने-कोने जाती है। उनके स्टॉल में दस रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक की बांसुरी मौजूद है।

 

बांसुरी 24 तरह

पीलीभीत की हर गली-मोहल्ले में पहले बांसुरी बनती थी, लेकिन अब बहुत लोगों ने यह काम छोड़ दिया है। इकरार कई साइज की बांसुरी बना लेते हैं। इसमें छोटी साइज से लेकर बड़ी साइज की बांसुरी शामिल है। बांसुरी 24 तरह की होती है। उनमें छह इंच से लेकर 36 इंच तक की बांसुरी आती है। इकरार बताते हैं कि वह एक दिन में करीब ढ़ाई सौ बांसुरी बना लेते हैं।

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हर घर में बनती थी बांसुरी

इससे जुड़े व्यापारी बांसुरी कारोबार के संकट का भी जिक्र करते हैं। वह बताते हैं कि बांसुरी जिस बांस से बनती है, उसे निब्बा बांस कहते हैं। वर्ष 1950 से पहले नेपाल से यह बांस यहां आता था, लेकिन बाद के दिनों में नेपाल से आयात बंद हो गया। इसके बाद असम के सिलचर से निब्बा बांस पीलीभीत आने लगा। पीलीभीत से छोटी रेल लाइन पर गुहाटी एक्सप्रेस चला करती थी, इससे सिलचर से सीधे कच्चा माल (निब्बा बांस) पीलीभीत आ जाता था। इससे बहुत सुविधा थी, लेकिन 1998 में यह लाइन बंद हो गई। यहीं से दिक्कत की शुरूआत हो गई। और हजारों लोगों ने बांसुरी बनाने से तौबा कर ली।

 

ये कन्‍हैया जी की देन है जो हम लोगों की रोजी-रोटी चल रही है।'' यह बात बांसुरी बनाने वाले हाफ‍िज नवाब कहते हैं। हाफिज पीलीभीत के उन चंद कारिगरों में से एक हैं जो अपने पुश्तैनी बांसुरी बनाने के काम में लगे हैं। पीलीभीत में बांसुरी बनाने वाले कई मुसलमान परिवार हैं, जो अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहे हैं।

 

कारोबार को नया जीवन मिला

बांसुरी को ओडीओपी से जोड़े जाने से इस कारोबार को नया जीवन मिला है। बांसुरी हर कोई बजा सकता है, खरीद सकता है। बच्चों को बांसुरी बहुत पसंद है। हर मां बाप अपने बच्चे को बांसुरी खरीद कर देते है। इकरार को लगता है कि हर व्यक्ति ने एक बार तो बांसुरी बजाई ही होगी। इकरार बताते हैं बीते साल उन्होंने यूपी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में दो लाख रुपये बांसुरी बेच कर हासिल किये थे। इस बार भी उनको अच्छे कारोबार की उम्मीद है। इकरार ने बताया कि ओडीओपी योजना के जरिये उन्हें बांसुरी बेचने का नया मंच भी मिला है।

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प्रदेश सरकार की ओडीओपी मार्जिन मनी स्कीम, मार्केटिंग डेवलेप असिस्टेंट स्कीम और ई-कॉमर्स अनुदान योजनाओं से भी बांसुरी कारोबार को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिली। जिसके चलते बांसुरी कारोबार में रौनक आ गई है और सात समुंदर पार पीलीभीत की बांसुरी की स्वरलहरी गूंजती रही है।

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