कुष्ठ रोगियों को समर्पित रहा बाबा आमटे का जीवन, जानिए उनके बारे में सबकुछ

स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले बाबा आमटे एक अनोखी शख्सियत थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।

Update: 2020-12-26 05:32 GMT
कुष्ठ रोगियों को समर्पित जीवन रहा बाबा आमटे, जानिए उनके बारे में सबकुछ

लखनऊ: स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले बाबा आमटे एक अनोखी शख्सियत थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।

ज़मींदार खानदान के थे बाबा

बाबा आमटे का जन्म 26 दिसंबर, 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगनघाट में एक जमींदार परिवार में हुआ था। बाबा आमटे के पिता देवीदास वर्धा जिले के धनी जमींदार थे। बाबा आमटे की माता का नाम लक्ष्मीबाई आमटे था। बाबा आमटे का पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था लेकिन उनके माता पिता उन्हें ‘बाबा’ कहकर बुलाते थे। आगे चलकर ही ये नाम उनकी पहचान बनी।

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आजादी के लड़ाके

बाबा आमटे महात्मा गांधी और विनोबा भावे से प्रभावित थे। बाबा आमटे ने इनके साथ मिलकर पूरे भारत का दौरा किया और देश के गांवों मे अभावों में जीने वालें लोगों की असली समस्याओं को समझने की कोशिश की थी। बाबा आमटे ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी खुलकर भाग लिया था। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान बाबा आमटे ने पूरे भारत में जेल में बंद नेताओं के केस लड़ने के लिए वकीलों को संगठित किया था।

वकालत छोड़ कर समाज सेवा

बाबा आमटे का जीवन उस वक्‍त पूरी तरह बदल गया था जब उन्‍होंने एक कुष्‍ठरोगी को देखा था। 35 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी वकालत को छेड़कर समाजसेवा शुरू कर दी थी। इस घटना ने उन्‍हें जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रेरित किया। उन्‍होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए आनंदवन नामक संस्था की स्थापना की थी। जब उन्होंने एक कुष्ठ रोग के मरीज को देखा तो बाबा ने कहा है कि व्यक्ति के शरीर का अंग से ज्यादा अपना जीवन खोता है, साथ ही अपनी मानसिक ताकत खोने के साथ अपना जीवन भी खो देता है।

आनंद वन में आने वाले रोगियों को उन्होंने एक मंत्र दिया ‘श्रम ही है श्रीराम हमारा।’ जो रोगी कभी समाज से अलग-थलग होकर रहते भीख मांगते थे उन्हें बाबा आमटे ने श्रम के सहारे समाज में सर उठाकर जीना सीखाया।

बाबा ने आनन्द वन के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की जहाँ आज हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है।

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भारत जोड़ो आन्दोलन

बाबा आमटे को भारत जोड़ो आंदोलन के लिए भी याद किया जाता है। बाबा ने राष्‍ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो आंदोलन चलाया। नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध निर्माण और इसके फलस्‍वरूप हजारों आदिवासियों के विस्‍थापन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया।

बाबा को उनके इन महान कामों के लिए बहुत सारे पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। बाबा आमटे को 1971 में पद्मश्री, 1978 में राष्‍ट्रीय भूषण, 1986 में पद्म विभूषण और 1988 में मैग्‍सेसे पुरस्‍कार मिला।

1971 - भारत सरकार से पद्मश्री

1979 - जमनालाल बजाज सम्मान

1980 - नागपुर विश्वविद्यालय से डी-लिट उपाधि

1983 - अमेरिका का डेमियन डट्टन पुरस्कार

1985 - रेमन मैगसेसे (फिलीपीन) पुरस्कार मिला

1985-86 - पूना विश्वविद्यालय से डी-लिट उपाधि

1988 - घनश्यामदास बिड़ला अंतरराष्ट्रीय सम्मान

1988 - संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार ऑनर

1990 - टेम्पलटन पुरस्कार

1991 - ग्लोबल 500 संयुक्त राष्ट्र सम्मान

1992 - स्वीडन का राइट लाइवलीहुड सम्मान

1999 - गाँधी शांति पुरस्कार

2004 - महाराष्ट्र भूषण सम्मान

बाबा आमटे का निधन समाजसेवी बाबा आमटे का 9 फरवरी, 2008 को 94 साल की आयु हो गया था।

नीलमणि लाल

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