टिकैत परिवार ने हिलाई कई सरकारेंः जब-जब उठाई आवाज, आया जनसैलाब

इस तरह का किसानों का अंदोलन कोई नया नहीं है। इससे पहले भी भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत और उनके छोटे भाई राकेश टिकैत के पिता महेन्द्र सिंह टिकैत कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व कर सरकारों को चुनौती देने का काम करते रहे हैं।

Update:2021-02-04 11:50 IST
कई बार किसान आंदोलन से कई सरकारों हिला चूका है टिकैत परिवार

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: पिछले दो महीने से दिल्ली से सटे बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन का आंदोलन चल रहा है। हालांकि इस तरह का किसानों का अंदोलन कोई नया नहीं है। इससे पहले भी भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत और उनके छोटे भाई राकेश टिकैत के पिता महेन्द्र सिंह टिकैत कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व कर सरकारों को चुनौती देने का काम करते रहे हैं।

मायावती पर जातिसूचक टिप्पणी

प्रदेश मे जब मायावती के नेतृत्व वाली 2007 में बसपा की सरकार थी तो बिजनौर में किसानों की एक रैली में किसान यूनियन के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह टिकेत ने मायावती पर कथित तौर पर जातिसूचक टिप्पणी कर दी। इसकी गूंज पूरे प्रदेश में सुनाई दी। जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायाावती ने प्रमुख सचिव गृह जेएन चैम्बर को महेन्द्र सिंह टिकैत की गिरफ्तारी के आदेश दिए। आनन फानन में कोतवाली में टिकैत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद पुलिस गिरफ्तार करने के लिए उनके गांव सिसौली पहुंच गयी।

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किसानों ने पूरे गांव को कर दिया था ब्लाक

पर जैसे ही किसानों को इस बात की भनक लगी तो उन्होंने पूरे गांव को घेर लिया और कह दिया ‘‘बाबा को गिरफ्तार नही होने देगें।’’ पुलिस के खिलाफ किसानों ने ट्रैक्टरों बुग्गी ट्राली से पूरे गांव को ब्लाक कर दिया। हाल यह रहा कि पुलिस गांव में तीन दिन तक घुस ही नहीं पाई। इसके बाद अधिकारियों ने हेलीकाप्टर से उनके घर पहुंचना पड़ा था।

करमूखेड़ी में किसानों ने चार दिन का दिया धरना

इससे पहले जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह थे तब भी भारतीय किसान यूनियन ने एक बड़ा आंदोलन किया था। शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर उनके नेतृत्व में किसानों ने अपनी मांगों को लेकर चार दिन का धरना दिया था। चौधरी टिकैत की हुंकार पर एक मार्च, 1987 को करमूखेड़ी में ही प्रदर्शन के लिए गए किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें एक किसान की मौत हो गयी। इसके बाद भाकियू के विरोध के चलते तत्कालीन यूपी के सीएम वीर बहादुर सिंह को करमूखेड़ी की घटना पर अफसोस दर्ज कराने के लिए 11 अगस्त को सिसौली आना पड़ा था।

14 राज्यों के किसान नेताओं ने टिकैत पर विश्वास जताया

बात यहीं तक सीमित नहीं है मेरठ कमिश्नरी पर वर्ष 1988 में उनके घेराव और धरने ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियां दी। रजबपुर तत्कालीन अमरोहा (जेपी नगर) सत्याग्रह के बाद नई दिल्ली के वोट क्लब पर हुई किसान पंचायत में किसानों के राष्ट्रीय मुद्दे उठाए गए और 14 राज्यों के किसान नेताओं ने चैधरी टिकैत की नेतृत्व क्षमता में विश्वास जताया। अलीगढ़ के खैर में पुलिस अत्याचार के खिलाफ आंदोलन और भोपा मुजफ्फरनगर में नईमा अपहरण कांड को लेकर चले ऐतिहासिक धरने से भाकियू एक शक्तिशाली अराजनैतिक संगठन बन कर उभरा।

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अपनी सादगी और ठेठ देहाती अंदाज को महेन्द्र सिंह टिकैत ने कभी खुद से जुदा नहीं किया। उन्हें किसानों ने महात्मा टिकैत और बाबा टिकैत नाम दिया। चैधरी टिकैत ने देश के किसान आंदोलनों को मजबूत बनाने में जो भूमिका निभाई उसी राह पर उनके दोनो बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत चल रहे हैं। किसानों के बीच उनकी साख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी एक आवाज पर लाखों किसानों की भीड़ इकठ्ठा हो जाती थी। जहां बैठकर हुक्का गुडगुडा देते वहां किसान और कमेरे वर्ग के हुजूम जुड़ जाते जहां आते जाते खड़े हो जाते हैं। वहां पंचायत शुरू हो जाती थी उनकी रैली और धरनों में भोजन की व्यवस्था हमेशा साथ रहती ग्रामीण क्षेत्रों से भी अन्य जल भोजन की व्यवस्था सुचारू रहती थी।

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