Y Factor Mao Zedong: क्रांतिकारी नेता जिसने कभी ब्रश नहीं किया, नहाने से भी थी नफरत

माओ के डाक्टर रह चुके जी शी ली ने माओ के निजी जीवन के बारे में बहुचर्चित किताब 'द प्राइवेट लाइफ ऑफ चेयरमेन माओ' लिखी है। इसमें उन्‍होंने लिखा है कि माओ ने अपने जीवन में कभी दांतों पर ब्रश नहीं किया। माओ रोज सुबह दातों को साफ करने के लिए चाय का कुल्ला किया करते थे।

Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Praveen Singh
Update:2020-12-26 10:31 IST

लखनऊ: बीसवीं सदी के सौ सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक माओ-त्से-तुंग या माओ ज़ेदोंग की आज जयंती है। माओ का का जन्म 26 दिसम्बर 1893 को हुआ था। वो एक महान चीनी क्रान्तिकारी, राजनीतिक विचारक और कम्युनिस्ट के नेता थे जिन्होंने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (जनवादी गणतन्त्र चीन की 1949 में स्थापना से लेकर 1976 में अपनी मृत्यु तक चीन का नेतृत्व किया।

माओवाद सिद्धान्त को जन्म दिया

उन्होंने मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा को सैनिक रणनीति में जोड़कर जिस सिद्धान्त को जन्म दिया उसे माओवाद नाम से जाना जाता है। ये सिद्धांत है हिंसक क्रांति का। माओ का सूत्र था-क्रांति बन्दूक की नली से पैदा होती है. उन्होंने कहा था - राजनीतिक शक्ति बन्दूक की नली से उत्पन्न होती है, इसलिए उसे सैनिक शक्ति से पृथक नहीं किया जा सकता।

चीन में माओ ने अपनी नीति और कार्यक्रमों के माध्यम से आर्थिक, तकनीकी एवं सांस्कृतिक विकास के साथ विश्व में प्रमुख शक्ति के रूप में ला खड़ा करने में मुख्य भूमिका निभाई. वे कवि, दार्शनिक, दूरदर्शी महान प्रशासक के रूप में गिने जाते हैं।

File Photo

माओ का सिद्धान्त

माओ-त्से-तुंग जीवन के अन्तिम क्षणों तक शक्ति के ही पुजारी रहे। माओ का मानना था कि मनुष्यों को शक्ति के प्रयोग से ही बदला जा सकता है और सामाजिक परिवर्तन का आधार शक्ति ही है। इसलिए उसने साम्यवादियों को अधिक से अधिक शक्ति अर्जित करने की सलाह दी ताकि चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना हो सके। माओ का मानना था कि विचारों से समाज का निर्माण होता है, न कि आर्थिक परिस्थितियों से। विचारों के बाद सैनिक शक्ति का महत्व है।

युद्ध के समर्थक

माओ युद्ध के समर्थक थे। उनका कहना है कि वर्गयुक्त समाज के जन्म से ही विकास की एक निश्चित दशा में वर्गों, राष्ट्रों, राज्यों अथवा राजनीतिक समूहों में विरोधों के समाधान के लिए युद्ध संघर्ष का सबसे उच्चतम रूप रहा है। माओ ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी साम्यवाद के प्रसार के लिए युद्ध अनिवार्य है।

नहाना न ब्रश करना

माओ के डाक्टर रह चुके जी शी ली ने माओ के निजी जीवन के बारे में बहुचर्चित किताब 'द प्राइवेट लाइफ ऑफ चेयरमेन माओ' लिखी है। इसमें उन्‍होंने लिखा है कि माओ ने अपने जीवन में कभी दांतों पर ब्रश नहीं किया। माओ रोज सुबह दातों को साफ करने के लिए चाय का कुल्ला किया करते थे। इससे उनके दांत ऐसे बदरंग हो गए थे मानों किसी ने उनपर रंग कर दिया हो। इस किताब में उन्‍होंने लिखा है कि माओ को नहाने से भी बहुत नफरत थी। लेकिन स्‍वीमिंग उनकी पसंदीदा थी। अपने आप को तरोताजा रखने के लिए माओ गर्म तौलिए से स्पंज बाथ लिया करते थे।

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माओ से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें

- माओ को चमड़े के जूतों की जगह कपड़े के जूते ज्‍यादा पसंद थे। लेकिन जब कभी उन्‍हें चमड़े के जूते पहनने होते तो उन्‍हें वे पहले अपने सुरक्षा गार्ड को पहनने के लिए दिया करते थे जिससे वह कुछ ढीले हो जाएं।

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- माओ की याददाश्त बेहद गजब की थी। वे पढ़ने लिखने के बहुत शौकीन थे। माओ के बेडरूम में उनके पलंग के आस-पास चीनी साहित्यिक किताबें पड़ी रहती थीं। उनके भाषणों और लेखन में अक्सर उन किताबों से लिए गए उद्धरणों का इस्तेमाल होता था। वो अक्सर मुड़े-तुड़े कपड़े पहनते थे और उनके मोजों में छेद हुआ करते थे।

- उनका अधिकतर समय बिस्‍तर पर ही बितता था। यही वजह थी कि 1957 में जब वह मास्‍को गए तो उनके साथ उनका बिस्‍तर पर भी गया था। घर पर वो सिर्फ एक नहाने वाला गाउन पहनते थे और नंगे पैर रहते थे।

- माओ का दिन रात से में शुरु होता था और वो अपनी विचाधारा के चलते आए दिन कई विदेशी नेताओं से मिलते थे. लेकिन ये मुलाकातें दिन में नहीं बल्कि रात में होती थीं. 1956 में भारत के लोकसभा अध्यक्ष आयंगर भारत के कुछ नेताओ के साथ चीन पंहुचे तो माओ ने उनसे दिन में न मुलाकात कर रात में करीब 12 बजे मुलाकात की।

-माओ की क्रांति के चलते चीन में करीब 7 करोड़ लोग मारे गए। किसी एक व्यक्ति के चलते मानव इतिहास में ये सबसे बड़ी तादाद है।

-माओ जब 68 साल के थे तब उनके एक 14 साल की लड़की शेन ल्यूवेन के साथ सेक्सुअल रिश्ते थे।

ये सम्बन्ध 1962 से 71 तक जारी रहे।

-माओ की चार बीवियां थीं और 10 बच्चे थे। माओ के 12 पोते पोतियां थे। हालांकि माओ के निजी डॉक्टर का कहना था कि माओ बच्चे पैदा करने में सक्षम नहीं थे। ये भी कहा जाता है कि माओ को संक्रामक यौन रोग था।

-माओ का पसंदीदा भोजन चाशनी वाला पोर्क मीट और चावल की वाइन था। पोर्क मीट भी चुनिंदा नस्ल के सुवरों से बनाया जाता था।

-माओ ने अपने शासनकाल में कामगार वर्ग के लोगों को आम भेंट में दिए जाने की परंपरा शुरू की थे। जब आम नहीं मिलते तो मोम के बने आम दिए जाते थे।

-मृत्यु से तीन साल पहले माओ ने अमेरिका को एक करोड़ महिलाएं भेजने का ऑफर दिया था। माओ का मानना था कि चीन जरूरत से ज्यादा औरतों को पालने की हैसियत में नहीं है।

-माओ को जबरदस्त अनिंद्रा रोग था। इसलिए उनको नींद की गोलियां नॉर्मल डोज़ से दस गुना ज्यादा लेना पड़ता था। इसके अलावा माओ पूरी जिंदगी जबरदस्त कब्ज के शिकार रहे।

-माओ बेहतरीन कविता लिखते थे। उन्होंने किशोरावस्था से आखिरी दिनों तक कविता लिखीं।

-एक बार जब माओ रूस गए तो स्टालिन ने उनको कोई तवज्जो नहीं दी और एक सामान्य गेस्ट की तरह व्यवहार किया। इसका बदला माओ ने बाद में चीन आये ख्रुश्चेव से लिया। गर्मियों में बीजिंग आये ख्रुश्चेव को बिना एसी वाले कमरे में ठहराया गया।

-माओ चेन स्मोकर थे। और वो कहते थे कि स्मोकिंग एक डीप ब्रीथिंग एक्सरसाइज है।

-माओ के शासन में चीन में अफीम पर बैन लगा दिया गया। अफीम के लती एक करोड़ लोगों का जबरन इलाज किया गया, अफीम के कारोबारियों को मरवा दिया गया और अफीम के खेतों को उजाड़ दिया गया।

गरीब किसान का बेटा

माओ के पिता एक गरीब किसान थे जो आगे चलकर एक धनी कृषक और गेहूं के व्यापारी बन गए. 8 साल की उम्र में माओ ने अपने गांव की प्रारम्भिक पाठशाला में पढ़ना शुरू किया लेकिन 13 की आयु में अपने परिवार के खेत पर काम करने के लिए पढ़ना छोड़ दिया. बाद में खेती छोड़कर वे हूनान प्रान्त की राजधानी चांगशा में माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने गए. जिन्हाई क्रांति के समय माओ ने हूनान के स्थानीय रेजीमेंट में भर्ती होकर क्रान्तिकारियों की तरफ से लड़ाई में भाग लिया और राजशाही को समाप्त करने में अपनी भूमिका निभाई. बाद में, माओ-त्से-तुंग ने च्यांग काई शेक की फौज को हराकर 1949 में चीन की मुख्य भूमि में साम्यवादी शासन की स्थापना की.

माओ इतने ताकतवर थे कि कोई उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं करता था और जिसने भी उनका विरोध करने की हिम्मत की उसे माओ ने आजीवन कारावास में डाल दिया. माओ ने ही मीडिया पर ऐसा शिकंजा कसा जो आज तक देखने को मिलता है. मीडिया पर यह शिकंजा समय के साथ इस कदर बढ़ा कि माओ की 1976 में मृत्‍यु के बाद जब देंग शियाओ पिंग ने सत्‍ता संभाली तो किसी को कानोकान पता भी नहीं चल सका. वह चीन के दमदार नेता बनकर सामने आए और उन्होंने आर्थिक मामलों में चीन का कायापलट कर दिया। 

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