General A.A.K. Niazi: कौन था जनरल नियाजी, जिसने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के आगे किया था सरेंडर
दिन 16 दिसंबर 1971 की दोपहर। जगह, ढाका सेना का मुख्यालय। जहां लंच चल रहा था। जी, आत्मसमर्पण से पहले की वो आखिरी दावत। जिसके बाद पाकिस्तानी सेना के मुंह का स्वाद ऐसा बिगड़ा, जो आज इतिहास में दर्ज है।
दिन 16 दिसंबर 1971 की दोपहर। जगह, ढाका सेना का मुख्यालय। जहां लंच चल रहा था। जी, आत्मसमर्पण से पहले की वो आखिरी दावत। जिसके बाद पाकिस्तानी सेना के मुंह का स्वाद ऐसा बिगड़ा, जो आज इतिहास में दर्ज है। दुनिया का सबसे बड़ा सैनिक आत्मसर्पण। जब पाकिस्तानी सेना ने भारतीय जांबाजों के सामने घुटने टेके। अंदर चल रहे लंच में रोस्टेड चिकन का मजा ले रहे थे पाकिस्तानी सेना के शीर्ष अफसर। वहीं, बाहर खड़े ऑब्जर्वर अखबार के संवाददाता गाविन यंग ने अंदर जाने की अनुमति मांगी। साथ में थे, जनरल जे.एफ.आर जैकब। जब ये दोनों अंदर गए तो दंग रह गए। अंदर करीने से सजे मेज पर एक से एक व्यंजन रखे थे। उसे चटकारे लेकर पाकिस्तानी सेना के अफसर खा रहे थे। बाद में गाविन यंग ने अपने अखबार आर्टिकल लिखा, जिसका शीर्षक दिया 'सरेंडर लंच'।
अगले दिन सुबह जनरल जैकब को एक फोन आया, वो था भारतीय सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ का। अपनी इस दिन की बात बताते हुए एक समाचार संस्था को जैकब कहते हैं, 'जेक जाओ और सरेंडर लो।' उन्होंने बताया मैंने पहले ही आत्मसमर्पण का मसौदा आपको भेजा है। जनरल जैकब जब ढाका पहुंचे तो उन्हें लेने आया था एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर। मुक्ति वाहिनी के लड़कों से बचते हुए जैसे-तैसे जैकब जब दफ्तर पहुंचे तो वहां एक शख्स उनका इंतजार कर रहा था। वो था पाकिस्तानी सेना का लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी।
'किसने कहा मैं आत्मसमर्पण कर रहा हूं'
जब जनरल जैकब ने नियाजी को आत्मसर्पण का दस्तावेज पढ़कर सुनाया तो नियाजी ने कहा, 'किसने कहा मैं आत्मसमर्पण कर रहा हूं।' तब जनरल जैकब उस वाकये को बताते हैं, कि मैंने नियाजी को कोने में चलने को कहा। फिर मैंने बताय कि हमने (भारतीय सेना ने) आपको बहुत आसान शर्तें दी हैं। अगर, आप हथियार डालते हैं तो हम आपका और आपके परिवार का ख्याल रखेंगे। नियाजी ने कुछ नहीं कहा। चुप रहे। फिर, भारतीय जनरल ने कहा, 'मैं आपको सोचने के लिए 30 मिनट का समय देता हूं।'
आपकी ख़ामोशी का मतलब....
यकीन मानिए, जनरल जैकब की जांबाजी और दिलेरी की। जब वो ये बातें नियाजी से कर रहे थे, उस वक्त ढाका में पाकिस्तानी सेना के 26,000 सैनिक थे। जबकि, भारतीय सेना के मात्र 3,000। वो भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर। कुछ भी हो सकता था। पासा पलट सकता था। हालांकि, सशंकित जनरल जैकब भी थे। लेकिन, जब आधे घंटे बाद वो नियाजी के कमरे में गए तो वहां सन्नाटा था। और मेज पर आत्मसमर्पण के दस्तावेज के साथ कलम रखी थी। समझने के लिए काफी था। जैकब ने पूछा- क्या आत्मसमर्पण की शर्तों को स्वीकार करते हैं, उनके तरफ से ख़ामोशी थी। तीन बार पूछने पर भी जब जवाब नहीं आया तो जनरल जैकब ने दस्तावेज उठाते हुए कहा, आपकी ख़ामोशी का मतलब शर्तों को स्वीकार करना है।
कुछ यूं हुआ आत्मसमर्पण
नियाजी के सामने एक और शर्त रखी गई। आत्मसमर्पण समारोह ढाका के रेस कोर्स मैदान में पूर्वी बंगाल की जनता के सामने हो। लेकिन पाकिस्तानी सेना के प्रमुख नियाजी तैयार नहीं हुए। फिर, जैकब ने नियाजी से 'तलवार' के समर्पण करने की शर्त रखी। उन्होंने कहा, मेरे पास तलवार नहीं हैं। फिर कहा, आप अपनी पिस्तौल सरेंडर करें। तब उन्होंने अपनी पिस्तौल निकाली और भरी आंखों के साथ भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को सौंप दी। उसके बाद उस दस्तखत का दौर शुरू हुआ जिसने एक इतिहास लिख दिया। आपकी आंखों के सामने वो तस्वीर जरूर घूम गई होगी जिसे हम और आप बचपन से देखते आये हैं। जनरल अरोड़ा के सामने मेज पर आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल नियाजी।
हथियार सौंपा..बेल्ट उतारे...और फफक पड़ा
जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण की दस्तावेजों पर दस्तखत किए। अपने हथियार नीचे रखे। अपने बेल्ट उतार दिए। और फफककर रोने लगे। याद करें, ये वही शख्स था जिसके बारे में कराची से एक अमेरिकी महिला पत्रकार ने लिखा था, 'जब टाइगर नियाजी के टैंक गरजेंगे तो भारतीय अपनी जान बचाने के लिए भागते फिरेंगे।' उसके बाद नियाजी की सेना के जवानों ने बांग्लादेश की जनता के साथ क्या सलूक किया, वह भुलाए नहीं भुलाया जा सकता। महिलाओं के साथ रेप, बच्चे तक को न छोड़ा। गर्भवती औरतों के पेट फाड़ दिए। वो रूह कंपाने वाली बर्बरता। और ये सब जिसकी सेना कर रही थी, वह भारतीय सेना के सामने निरीह, फफक-फफककर रो रहा था।
याहया खान का 'फक्र' आया घुटने पर
सच कहूं, तो मेरे लिए जनरल नियाजी का चित्रण यही था। क्या आप उस शख्स के लिए शब्दों को घुमा सकते हैं, आसान या सजह कर सकते हैं जिसने पूर्वी बंगाल के लोगों पर 03 दिसंबर (जब पाक सेना ने युद्ध की घोषणा की थी) से 16 दिसंबर (जब आत्मसपर्मण पर दस्तखत किया था) के बीच कुदरत का कोई कहर बनकर टूटे थे। कहते हैं, जिस नियाजी पर पाक राष्ट्रपति याहया खान को फख्र था, उसने जैसे ही दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए और बंगलादेशी लोगों की नजरें उसे पहचान गई, वो भूखे कुत्ते की तरह गलियां बकते हुए नियाजी की और दौडे।तब भारतीय सेना ने ही नियाजी और उनके साथियों की जान बचाई।
16 दिसंबर मतलब 'विजय दिवस'
इसीलिए 16 दिसंबर को हर साल 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन साल 1971 के युद्ध में पाकिस्तान ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया था। घुटने टेके थे। उस जंग की करारी शिकस्त आज भी पाकिस्तान को नासूर की तरह चुभती है। तब, नियाजी के एक दस्तखत से पाकिस्तान के करीब 93 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाले थे। इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों का आत्मसमर्पण न कभी नहीं हुआ था और न भविष्य में कहीं होता दिखेगा।