लेटर बम का असर: अनिल देशमुख का राजनीतिक करियर, उद्धव सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर
वर्ष 1995 से सफल राजनीति करने वाले महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री अनिल देशमुख का राजनीतिक कॅरियर इस तरह दांव पर लग जाएगा इसका अंदाजा किसी को नहीं था।
राघवेंद्र प्रसाद मिश्र (Raghvendra Prasad Mishra)
नई दिल्ली। वर्ष 1995 से सफल राजनीति करने वाले महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री अनिल देशमुख का राजनीतिक कॅरियर इस तरह दांव पर लग जाएगा इसका अंदाजा किसी को नहीं था। पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के आरोपों के बाद गृह मंत्री अनिल देशमुख की न सिर्फ कुर्सी खतरे में आ गई बल्कि उनके राजनीतिक कॅरियर पर भी संकट के बादल छा गए हैं। हालांकि अनिल देशमुख की वजह से उद्धव सरकार की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई है। चूंकि महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ महागठबंधन कर शिवसेना की सरकार बनी है। इस महागठबंधन की शिवसेना सरकार में एनसीपी की स्थिति काफी मजबूत है। और यही वजह है कि सरकार में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बिना सहमति के कोई फैसला नहीं लिया जाता। वहीं अनिल देशमुख शरद पवार के काफी करीबी माने जाते हैं। तभी तो इतना गंभीर आरोप लगने के बाद भी उद्धाव सरकार चुप्पी साधे हुए है।
उद्धाव सरकार में ऐसे बने गृह मंत्री
अनिल देशमुख के सफल राजनीति कॅरियर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सक्रिय राजनीति में आने के बाद 1995 से बीजेपी की देवेंद्र फडणवीस की सरकार को छोड़ दिया जाए तो वह सभी सरकारों में मंत्री रहे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार से उनकी निकटता ऐसी है कि वह उद्धव सरकार में गृह मंत्री रहते हुए भी कोई भी फैसला बिना पवार के अनुमति के नहीं लिया। इसी का नतीजा है कि गृह मंत्रालय पर शरद पवार का वर्चस्व बना हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो निल देशमुख विदर्भ क्षेत्र से आते हैं। विदर्भ क्षेत्र में खुद को मजबूत करने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने खुद को मजबूत करने के लिए देशमुख को गृह मंत्री बनवाया था।
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अनिल देशमुख का राजनीतिक कॅरियर
पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर के आरोपों के बाद महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख चर्चा में आ गए हैं। पूरे मामले में उद्धव सरकार की चुप्पी के चलते लोग उनकी राजनीतिक हैसियत को आंकने लगे हैं। बता दें कि महाराष्ट्र के नागपुर में पले—बढ़े अनिल देशमुख ने 1970 के दशक में सक्रिय राजनीति में आए। वर्ष 1992 में जिला परिषद के चुनाव से चुनावी राजनीति में कदम रखा। वह पहली जिला परिषद का चुनाव लड़े और जीत भी हासिल किया। यहीं से उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पहचान बनाने शुरू कर दी। अपनी लोकप्रियता के दम पर उन्होंने वर्ष 1995 में कांग्रेस पार्टी से टिकट मांगा था। लेकिन टिकट न मिल पाने की स्थिति में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीते भी। इतना ही नहीं बीजेपी—शिवसेना गठबंधन की सरकार को समर्थन कर वह स्कूली शिक्षा विभाग और सांस्कृतिक विभाग के मंत्री बन गए।
वर्ष 1999 में जब शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी खुद की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया तो कई दिग्गज नेताओं के साथ अनिल देशमुख भी एनसीपी में शामिल हो गए। एनसीपी के टिकट उन्होंने चुनाव लड़ा और दूसरी बार भी वह चुनाव जीते। वर्ष 2004 में काटोला से जीत की हैट्रिक लगाते हुए लगातार तीसरी बार भी जीत हासिल की। महाराष्ट्र की सरकारों में उन्होंने स्कूली शिक्षा, पीडब्ल्यूडी, आबकारी विभाग का जिम्मा संभालते हुए उद्धव सरकार में गृह मंत्रालय संभाल रहे हैं।
उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक से भरी कार खड़ी करने के मामले गृह मंत्रालय की जिस तरह से कलई खुलती जा रही है, उससे अनिल देशमुख का गृह मंत्रालय छिनना तय माना जा रहा है। हालांकि इस पूरे मामले में उद्धव सरकार की चुप्पी उनकी मजबूरी को बयां कर रही है। फिलहाल बीजेपी इस पूरे प्रकरण में महाराष्ट्र सरकार को घेरने में लगी हुई है। हालांकि महाराष्ट्र सरकार अब इस मामले को लंबे समय तक दबा नहीं सकती, क्योंकि परमबीर सिंह ने उद्धव ठाकरे को लिखे अपने पत्र में अनिल देशमुख का पूरा कच्चा—चिट्ठा खोलकर रख दिया है। जिसकी निष्पक्ष जांच कराया जाना समय की मांग है।
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