Yogesh Mishra Y Factor: रंग दे मोहे रंगरेज...
होली फाग है। राग है। ठिठोली है। कला है। संगीत है। नृत्य है। चित्र है। खेलकूद है। हमारे दो नायक हैं- राम-कृष्ण। दोनों के रिश्ते होली के गीतों से जुड़ते हैं।
लखनऊ: होली फाग है। राग है। ठिठोली है। कला है। संगीत है। नृत्य है। चित्र है। खेलकूद है। हमारे दो नायक हैं- राम-कृष्ण। दोनों के रिश्ते होली के गीतों से जुड़ते हैं। होली के दिनों में हमारा समाज जिन गानों को गाता है। उनमें होली खेलै रघुवीरा अवध में... भी होते हैं तो होली खेलत नंदलाल बिरज में... भी गया जाता है। कृष्ण का भी फाग से करीबी रिश्ता है। तभी तो दुनिया के पैमाने पर ब्रज की होली का कोई सानी नहीं है।
राम और कृष्ण से होली का रिश्ता
ब्रज कृष्ण का लीला क्षेत्र है। ब्रज के रज में फाग है। वहां फूल भी बरसते हैं और लट्ठ भी। राम अष्टकलाधारी थे। कृष्ण को षोड्श कलाधारी कहते हैं। जीवन में कुल इतनी ही कलाएं होती भी हैं। राम और कृष्ण से होली का रिश्ता यह बताता है कि होली जीवन के समूचे वर्ण पट को प्रकट करती है।
आदि देव शंकर से होली का रिश्ता
आदि देव शंकर से भी होली का रिश्ता जुड़ता है। होली महादेव की चेतना में भी रंग भरती है। तभी तो फाग में गाया जाता है – खेलैं मसाने में होली दिगम्बर...। यह सामूहिकता का पर्व है। होली छोटी-छोटी सीमाओं को तोड़ कर सामूहिकता को आत्मीयता के घेरे में बांधती है। यह आत्मीयता का स्वगोत्र भी रचती है। सहजीवी समाज बनाती है।
रंगों के बिना कोई भी सौंदर्य अधूरा है
दुनिया विभिन्न रंगों से भरी पड़ी है। रंगों के बिना कोई भी सौंदर्य अधूरा है। जीवन रंगों से भरा होना चाहिए। प्रत्येक रंग अलग-अलग आनंद उठाने के लिए बनाए गए हैं। रंग लगाने का शास्त्र यह है कि जो सबसे ज्यादा फीका हो, रंग उसी को सबसे पहले लगाया जाना चाहिए। क्योंकि रंग ऊपर से ओढ़ी गई गंभीरता को उतार देता है। आपको असली रूप में लाकर खड़ा कर देता है।
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होली तोड़ती है वर्जनाएं
होली वर्जनाएं तोड़ती है। तभी तो कहा गया है- भर फाल्गुन बाबा देवर लागें। हमारे यहां कोई ऐसा ऋतु चक्र नहीं है, जिसका कोई पर्व नहीं होता हो। होली वसंत ऋतु का पर्व है। यह पर्व वसंत का संदेशवाहक है। इस कालखंड में प्रकृति भी रंग-बिरंगे स्वरूप के यौवन में रहती है। गीता के दसवें अध्याय में कृष्ण ने कहा है- ऋतुओं में मैं वसंत ऋतु हूं। हमारे शहीदों ने भी अपना चोला वसंती रंग में ही रंगने की बात की है। उन्हें और कोई रंग फबा ही नहीं। भाया ही नहीं।
वसंत जीवन का श्रृंगार है
वसंत फाग ही नहीं, एक राग भी है। होली में ठुमरी अंग की बंदिशें गाई जाती हैं या फिर धमार गाया जाता है। राग वसंत पूरे माघ फागुन गाया जाता है। कहते हैं बैजू या तानसेन जब राग वसंत या बहार गाते थे तो फूल खिल उठते थे। वसंत में सभी पंच तत्व मोहक रूप ले लेते हैं। गुलमोहर, रात की रानी और मोगरे की मोहक, मदमस्त और उन्मादी सुगंध बहने लगती है। मधुमक्खियों की टोली को वसंत में पराग से शहद इकट्ठा करते देखा जा सकता है। वसंत जीवन का श्रृंगार है। जीवन के पुलक, छलक, ललक तीनों एक साथ वसंत में दिखते हैं।
होलाका का अर्थ...
फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली का पर्व मनाया जाता है। पहले यह होलाका कही जाती थी। होलाका का अर्थ खेत में पड़ा वह अन्न है, जो आधा कच्चा और आधा पका है। होली के दिन इसी अन्न से यज्ञ किया जाता था। वैदिक काल में इसे नवात्रेष्टी यज्ञ कहा जाता था। यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार के सुख-समृद्धि के लिए मनाए जाने वाले पर्व के रूप में भी रहा है।
इस दिन ब्रह्मा ने की थी सरस्वती की रचना
इस दिन महिलाएं पूर्ण चंद्र की पूजा करती थीं। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सरस्वती की रचना की थी। कहा जाता है कि इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था। तभी इसे मन्वादि तिथि भी कहते हैं। इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद फिर जीवित किया था। इसी दिन विष्णु, कामदेव और रति की पूजा होती है। होलिका, हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा तो आम है।
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होली के हर रंग में अस्मिता की एक नई आभा सृजित होती है
होली दृष्टि के प्रकार, मन के फैलाव और एक-दूसरे से जुड़ाव का धरातल रचती है। होली के हर रंग में अस्मिता की एक नई आभा सृजित होती है। होलिका दहन के पीछे की कथा यह बताती है कि अग्नि इकलौता ऐसा तत्व है, जो गुरुत्वाकर्षण के बावजूद ऊपर की ओर उठता है। अग्नि हर चीज को शुद्ध और पवित्र करती है। ऋग्वेद का पहला शब्द अग्नि ही है। होलिका की अग्नि हमें खुद को शुद्ध करने का मौका देती है।
ऐसे व्यक्ति को है होलिका में अग्नि देने का धार्मिक अधिकार
यह वातावरण को भी शुद्ध करती है। गांव के सबसे बड़े बुजुर्ग जो सतमासा पैदा हुए हों ऐसे व्यक्ति को ही होलिका में अग्नि देने का धार्मिक अधिकार है। इनके न मिलने पर यह अवसर किसी और को मिल सकता है। होली संबंधों को परिष्कार का अवसर देती है। उसे खूबसूरत उष्मा से भर देती है। विविधता जो भारत की एकता की प्रतीक है, उस एकता का संदेशवाहक सिर्फ होली पर्व ही है। तभी तो मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक में बड़े रुचि और चाव से होली खेलने का चलन रहा है। आज जब सभ्यताओं के संघर्ष का दौर है।
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रंगों के अपने मूल्य शास्त्र नहीं होते
आज जब खुद को दूसरे से अलग करने का दौर है। आज जब अपनी ढपली और अपने राग का दौर है। तब होली की प्रासंगिकता और हो उठती है। क्योंकि होली इन सारी दीवारों को तोड़ने का दमखम रखती है। यह छोटे-बड़े में नहीं बंटती। रंगों के अपने मूल्य शास्त्र नहीं होते। उनका सिर्फ सौंदर्य शास्त्र होता है। और वह भी ऐसा कि जिसके भी तन, मन और गाल पर लगे एक ही तरह की आभा बिखेरे। यह महापर्व है, क्योंकि इसके रंग मरहम भी हैं, फेवीकोल भी हैं। हर दिन के रंग होते हैं, हर मूड के रंग होते हैं।
रंग में भी होते हैं भंग के रंग
रंग में भंग के भी रंग होते हैं। इसीलिए होली एक मूड भी है, सामाजिक भाव भी है। जैसे रंगरेज ब्याह के जोड़े रंगता है। वैसे ही होली हमको आपको सबको रंग देती है। कौन सा रंग आप पर कितना फबेगा, बस यह सामने वाले को देखना पड़ेगा। इसी में उसका मैत्री भाव दृष्टिबोध, दायित्वबोध सब दिख जाएगा। अगर यह रंगरेज की तरह हुआ तो आप प्रमुदित होंगे, उल्लसित होंगे, प्रफुल्लित होंगे, पुलकित होंगे, याद रखेंगे।
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