रिश्ते बिगाड़ रहा होम क्वारंटीन का फरमान

होम क्वारंटीन उन लोगों के लिए सकून का शब्द हो सकता है, जिनके आशियाने में कमरे ही कमरे हों। लेकिन शहर से लेकर गांव तक जैसे-तैसे जिंदगी गुजार रहे लोगों के लिए प्रशासन का होम क्वारंटीन का फरमान 'काला पानी' की सजा से कम नहीं है। सैकड़ों किलीमीटर पैदल चल कर घर पहुंच रहे

Update:2020-05-14 22:52 IST

पूर्णिमा श्रीवास्तव

होम क्वारंटीन उन लोगों के लिए सकून का शब्द हो सकता है, जिनके आशियाने में कमरे ही कमरे हों। लेकिन शहर से लेकर गांव तक जैसे-तैसे जिंदगी गुजार रहे लोगों के लिए प्रशासन का होम क्वारंटीन का फरमान 'काला पानी' की सजा से कम नहीं है। सैकड़ों किलीमीटर पैदल चल कर घर पहुंच रहे परदेसी तपती दोपहरी में पॉलिथीन के जुगाड़ आशियाने में रहने को मजबूर हैं, तो कई गांव के बागिचे में। मुश्किल यह कि छत या बाग में दिन-रात गुजारना आसपास के लोगों को भारी पड़ रहा है। गांव में प्रधान, शहरों में पार्षदों और सभाषदों के लिए होम क्वारंटीन का फरमान उन्हें मुश्किलों में डाल रहा है। परदेसियों के चलते गांव से लेकर मोहल्लों का सामाजिक तानाबाना बिगड़ रहा है।

शासन ने मुंबई, हैदराबाद, गुजरात, बंगलुरू जैसे मेट्रो शहरों से लौट रहे लोगों के लिए होम क्वारंटीन का फरमान जारी कर रखा है। इसके लिए गांव में प्रधान तो शहर-कस्बों में पार्षद और सभाषदों के नेतृत्व में निगरानी कमेटियां बनाई गई हैं। प्रधान, पार्षद की जिम्मेदारी है कि वह बाहर से आ रहे लोगों को होम क्वारंटीन कराना सुनिश्चित कराए। प्रशासन तो खुद झमले से बच गया है, लेकिन पार्षद से लेकर ग्राम प्रधानों की राजनीतिक जमीन पर संकट खड़ा हो गया है।

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गोरखपुर में सिविल लाइंस के पार्षद देवेन्द्र गौड़ पिछले दिनों उस समय दुविधा में फंस गए जब केरल से एक युवक उनके मोहल्ले में पहुंच गया। परिवार के सदस्य पार्षद से लेकर जिलाधिकारी को फोन करते रहे कि परिवार एक ही कमरे में रहता है। आखिर कैसे हों होम क्वारंटीन? लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। परदेसी बेटे को बरामदे में एक कोने में क्वारंटीन करना पड़ा। पैडलेगंज में बबलू निषाद और उनके बड़े भाई जगदीश निषाद का परिवार दो कमरों के मकान में रहते हैं। दोनों भाई का परिवार एक-एक कमरे में रहता है। बबलू ऑटो रिक्शा चलाकर परिवार चलाता है, तो बड़े भाई जगदीश केरल में फर्निचर का काम करते हैं। बबलू बताते हैं कि मेरा और बड़े भाई का परिवार एक-एक कमरे में रहता है। दोनों परिवारों में पांच-पांच सदस्य हैं। प्रशासन से मदद नहीं मिलता देख भाई को बरामदे में एक कोने में चौकी लगाकर क्वारंटीन किया गया है।

यहीं हाल चौरीचौरा क्षेत्र के रविन्द्र कुमार का है। वह बीते 11 मई को मुंबई से सीधे अस्पताल पहुंचे। छोटा मकान और परिवार की सुरक्षा को लेकर होम क्वारंटीन को तैयार नहीं थे। अस्पताल में तैनात चिकित्सक डॉ.सिद्धार्थशंकर श्रीवास्तव बताते हैं की बहार से आ रहे मजदूर इस बात को लेकर परेशान हैं कि एक-दो कमरे के मकान में बच्चों के संपर्क से कैसे बचें? वहीं रसूलपुर मोहल्ले में समर मुंबई से तो भानू दिल्ली से बीते दिनों परिवार में पहुंचे। दोनों के मकान में दो कमरे हैं। पार्षद प्रतिनिधि जुबेर का कहना है कि दोनों परिवार बेटों को होम क्वारंटीन करने को लेकर परेशान हैं। एक कमरे में परिवार के पांच सदस्य रह रहे हैं। तो दूसरे में बाहर से आए बेटे को क्वारंटीन कराया गया है। दुश्वारियों का आलम यह है कई मजदूर तपती दोपहरी में होम के बजाए छत पर क्वारंटीन होने को मजबूर हैं।

गोरखपुर शहर के हुमांयूपुर मोहल्ले में प्रशासन के होम क्वारंटीन के फरमान ने दिल्ली से 1000 किमी की दूरी तय कर परिवार में पहुंचे दो युवकों को घर में ‘रूफ क्वारंटीन’ को मजबूर कर दिया है। इनकी रात तो जैसे-तैसे गुजर जा रही है, लेकिन धूप में हर पल काटना भारी पड़ रहा है। ठेला चलाने वाले हुमांयूपुर निवासी श्रीराम प्रसाद ठेला को दो साल पहले पीएम आवास के लिए मदद मिली थी। आधा-अधूरा मकान बना हुआ है। एक कमरे के मकान और खुले बरामदे में सात लोगों का परिवार जैसे-तैसे रहता है। 12 मई को उसके दो बेटे कन्हई और अच्छे लाल गोरखपुर पहुंचे तो प्रशासन ने होम क्वारंटीन करने की बात कहते हुए घर भेज दिया। श्रीराम ने इसकी सूचना पार्षद ऋषि मोहन वर्मा को दी। परिवार के सात सदस्य पहले से ही एक कमरे में जैसे-तैसे रह रहे थे। ऐसे में दोनों भाइयों ने बांस, चादर और पॉलीथिन से अस्थाई आशियाना बनाया है, और 14 दिन की तपस्या शुरू कर दी। परिवार वालों ने छत पर पंखा तो लगा दिया है, लेकिन वह राहत की जगह गर्म हवा फेंक रहा है। श्रीराम प्रसाद की पत्नी गुजर चुकी हैं। तीन बेटों में दो की शादी हो गई है। वह बताते हैं कि एक कमरे में सात लोग रहते हैं। पीएम आवास योजना में जितना पैसा मिला था, वह खर्च हो गया। मकान अधूरा है। दिल्ली से आये बेटों को धूप में रहना पड़ रहा है। बेटों से बोला हूं, ‘14 दिनों की तपस्या है। इसके बाद सभी 9 सदस्य एक कमरे में रह लेंगे।’

 

हुमांयूपुर निवासी कन्हई और अच्छे लाल दिल्ली में बर्तन की एक फैक्ट्री में काम करते थे। कन्हई बताते हैं कि बचत के रुपये भी खत्म होने लगे तो बीते 9 मई को पैदल ही निकलने का निर्णय लेना पड़ा। दिल्ली से हापुड़ करीब 200 किमी पैदल ही चलना पड़ा। पुलिस वालों ने पांव में छाले देखे तो एक ट्रक को रोक कर बिठवा दिया। ट्रक वाले ने मुरादाबाद में उतार दिया। कन्हई बताते हैं कि ‘मुरादाबाद में सवारी मिल नहीं रही थी। गाड़ियां हाथ देने पर नहीं रूकतीं। 11 मई को एक ट्रक वाला हाथ देने पर रुका। वह गोरखपुर आ रहा था। बोला, एक व्यक्ति का 1300 रुपये किराया लगेगा। मजबूरी में हामी भर दी। सहजनवां में ट्रक वाले ने उतार दिया। 12 मई की रात घर पहुंचे तो लगा नई जिंदगी मिल गई।’ कमिश्नर जयंत नार्लिकर का कहना है कि शासन के निर्देश पर जिन लोगों में कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं मिल रहे हैं, उन्हें होम क्वारंटीन कराया जा रहा है। जिनका परिवार बड़ा है और मकान छोटा उन्हें होम क्वारंटीन होने में दिक्कत हो सकती है। हालांकि अभी कोई ऐसी शिकायत नहीं है, जहाँ लोगों को प्रशानिक देखरेख में क्वारंटीन करना पड़े।

मोहल्लों में खराब हो रहे रिश्ते

मेट्रो शहरों से आ रहे परदेसियों के चलते परिवार ही नहीं मोहल्लों में आपसदारी भी खराब हो रही है। मोहल्लों में क्वारंटीन लोगों की निगरानी के लिए पार्षदों की अध्यक्षता में कमेटी बनी है। पार्षदों को लगातार शिकायतों से दो-चार होना पड़ रहा है। जनप्रिय विहार के पार्षद ऋषि मोहन वर्मा बीते दिनों क्वारंटीन परिवार के सदस्यों के पार्क में बैंडमिंटन खेलने की शिकायत पर पुलिस बुलानी पड़ी। जिससे विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई। उपसभापति अजय राय कहते हैं कि होम क्वारंटीन की व्यवस्था ने पार्षदों को धर्मसंकट में डाल दिया है। बाहर से आने वालों की सूचना हमें प्रशासन को देनी हैं। सूचना देने पर परिवार नाराज हो रहे हैं, न देने पर पड़ोसी। हालांकि सभी की सुरक्षा को देखते हुए लोगों को कड़ाई से होम क्वारंटीन कराया जा रहा है। इतना ही नहीं, शहरों में जिनके घरों में किरायेदार हैं, उनके यहां भी खूब विवाद रहा है। गोरखपुर के बिछिया मोहल्ले में विष्णु किराये के मकान में रहते हैं। पत्नी लॉकडाउन के पहले ही बस्ती अपने गांव चली गई थी। मकान मालिक ने हिदायत दी है कि कोरोना संकट से पहले पत्नी को घर बुलाया तो मकान खाली करना पड़ेगा। ऐसे ही तमाम ऐसे परिवारों को किराये का मकान खाली करने की धमकी मिल रही है। शहर के आजादनगर मोहल्ले में बीते दिनों प्राइवेट नौकरी करने वाले संतोष उपाध्याय का बेटा मुंबई से लौटा। उन्हें मकान मालिक ने चेतावनी दी कि बेटे को अपने मकान में नहीं रहने देंगे। ऐसे में बेटे को गांव भेजना पड़ा।

 

गांव में बिगड़ रहा सामाजिक तानाबाना

होम क्वारंटीन की दिक्कतों को देखते हुए लोग आपसी समझदारी से प्रवासी मजदूरों को स्कूल में क्वारंटीन करा रहे हैं। लेकिन कई जगहों पर इससे विवाद की स्थिति भी पैदा हो रही है। परिवार के सदस्य कहीं भिड़ रहे हैं तो कहीं प्रधान को नाराजगी मोल लेनी पड़ रही है। सरदारनगर ब्लाक के पंसरही गांव में मुखलाल का बेटा दिलीप पांच दिन पहले हैदराबाद से घर पहुंचा था। यहां परिवार के सदस्यों ने ही उसे होम क्वारंटीन कराने से मना कर दिया। जिसके बाद प्रधान ने युवक की व्यवस्था प्राथमिक स्कूल में की। इसी तरह महराजगंज जिले के नौतनवां ब्लाक में मुंबई से पहुंचे तीन मजदूरों का घर छोटा होने के चलते इन्हें क्वारंटीन नहीं कराया जा सका। परिवार और प्रधान की सहमति के बाद तीनों को गांव के ही प्राथमिक स्कूल में क्वारंटीन कराया गया है।

कोरोना से भय का साइड इफेक्ट देवरिया जिले के गौरीबाजार के पोखरभिंडा में देखने को मिला। मुंबई से पहुंचे पूरे परिवार को गांव के प्रधान प्रतिनिधि ने ग्रामीणों के साथ होम क्वारंटीन होने से रोक दिया। विरोध के चलते मौके पर पुलिस को पहुंचना पड़ा। गांव का एक परिवार मुंबई में रहता था। बीते दिनों सभी सदस्य किराये के वाहन से गांव पहुंचे थे। परिवार में बच्चे, महिलाओं समेत छह सदस्य थे। गांव पहुंचने पर परिवार के सभी सदस्य होम क्वारंटीन हो गये थे। बीते 12 मई को इसकी भनक गांव के प्रधानपति को लगी। पुलिस के अनुसार ग्रामीणों के साथ पहुंचे प्रधान प्रतिनिधि ने मुंबई से गांव पहुंचे परिवार के होम क्वारंटीन होने का विरोध करने लगे। परिवार के लोगों का कहना था कि महिलाओं व बच्चों को छोड़ परिवार के पुरुष स्कूल में क्वारंटीन के लिए तैयार है। पुलिस के समझाने पर भी ग्रामीण व प्रधानप्रतिनिधि नहीं माने। आखिरकार पूरे परिवार को दूसरी जगह जाने को मजबूर होना पड़ा। हालांकि इस बार प्रशासन के तरफ से लोगों के होम क्वारंटीन होने की भी छूट है।

 

संतकबीर नगर में बाहर से गांव पहुंचे परदेसी के शराब पीकर हंगामा का मामला भी सुर्खियों में है। बयारा गांव में भी लगभग 15 की संख्या में गांव के लोग बाहर से आए हैं। इनमें से कुछ तो होम क्वारंटीन का पालन कर रहे हैं तो कुछ गांव में बेखौफ हो कर घूम रहे हैं। गांव के युवक मनीष का कहना है कि ये लोग गांव स्थित शराब की दुकान से शराब लाकर पीते है और पूरे गांव में उत्पात मचाते हैं। इसका विरोध करने पर वे मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। बीते दिनों एक प्रवासी मजदूर ने गांव की महिला, बुजुर्ग के साथ ही बच्चों से जमकर मारपीट की।

 

कुशीनगर के नेबुआ नौरंगिया थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत मोतीपुर में मुंबई से गांव लौटे तीन युवकों ने ग्राम प्रधान प्रतिनिधि से मांग की थी कि उन्हें दारू और मीट के अलावा अन्य सुविधाएं दी जाएं। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रामनाथ प्रसाद ने मामला पुलिस तक पहुंचाया। प्रधान प्रतिनिधि का कहना है कि गांव के तीन युवक मुंबई से लौटे हैं। कोरोना वायरस के कारण युवकों को गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में क्वारंटीन के लिए रखा गया है। वे दारू, मीट, मच्छरदानी और लाइट की व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। समझाने मारपीट कर रहे हैं। चौरीचौरा एक गांव में हैदराबाद से आए पांच युवकों को परिवार वालों ने ही रखने से मना कर दिया तो प्रधान ने सभी को स्कूल में टिका दिया। अब वे सुबह-शाम शौच को भी खेत को निकल रहे हैं तो विवाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

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मनोचिकित्सक डॉ.रामशरण कहते हैं कि महामारी अपने साथ कई तरीके का भय और भ्रम लेकर आती है। लोगों के अंदर का भर विरोध और आक्रोश को लेकर दिख रहा है। इसे परिवार और प्रशासन के लोग ही दूर कर सकते हैं। वहीं समाजशास्त्री डॉ.मनीष पांडेय का कहना है कि आभाव में समाज का विकृत चेहरा दिखता है। ऐसे में सभी कम्युनिटी को एकजुट रहना होगा। महामारी स्थाई नहीं है, लेकिन समाज को हमेशा एक साथ ही रहना है।

 

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