चीन ने बनाया मारने का कीर्तिमान, 80 के दशक से दोस्ती में टिपिया रहा भारत को

भारत और चीन भले ही अभी आमने सामने हैं लेकिन दोनों देशों के बीच मजबूत व्यापारिक रिश्ता है। इस रिश्ते में दोनों देश फायदे में हैं।

Update:2020-06-23 13:23 IST

लखनऊ: भारत और चीन भले ही अभी आमने सामने हैं लेकिन दोनों देशों के बीच मजबूत व्यापारिक रिश्ता है। इस रिश्ते में दोनों देश फायदे में हैं। जहां चीन भारी मात्रा में अपना माल भारत को बेच कर मोटी रकम बना रहा है। वहीं भारत को सस्ते माल का लाभ मिल रहा है। इस व्यापारिक रिश्ते में दरार आने से घाटे में दोनों ही देश रहेंगे। चीन के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार है।

चीनी कंपनियों ने भारत में भारी निवेश भी कर रखा है और कर चीनी कंपनियों के कारखाने भारत में लगे हैं। ब्रूकिंग्स इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन का भारत में निवेश 26 बिलियन डालर से ज्यादा का है। इसमे वह रकम भी शामिल है जिसके निवेश की प्लानिंग है। इसके अलावा चीनी निवेशक भारत के स्टार्टअप्स में 2015 के बाद से 4 बिलियन डालर का निवेश कर चुके हैं। ऐसे में व्यापारिक रिश्ते में दरार आने से चीन को तगड़ा झटका लगेगा।

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दोनों देशों के बीच व्यापार की स्थिति ये है कि अप्रैल 2019 से फरवरी 2020 तक की अवधि में भारत के कुल आयात का 11.8 फीसदी चीन से आया। लेकिन भारत का चीन को कुल एक्सपोर्ट मात्र 3 फीसदी था। दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन बहुत गहरा है। फरवरी में ये व्यापार घाटा 3.3 बिलियन डालर का था और पिछले वर्ष की इसी अवधि में ये 13 फीसदी ज्यादा है। भारत-चीन के बीच बीते दो महीनों में द्विपक्षीय व्यापार कोरोना महामारी और सीमाई विवाद के चलते काफी कम हो गया है। अब चीन विरोधी माहौल बनने के बीच अखिल भारतीय व्यापारी महासंघ ने चीन से इम्पोर्ट होने वाले सामानों में से 500 आइटम की लिस्ट बना कर जारी की है और कहा है कि इन आइटम्स की बजाए भारत में बने सामानों को इस्तेमाल किया जा सकता है। महासंघ का कहना है कि भारत का चीन से इम्पोर्ट 2018-19 में 70 बिलियन डालर का था जिसे दिसंबर 2021 तक 13 बिलियन कम किया जा सकता है।

भारत का चीन से इम्पोर्ट 2018-19 में 13.7 फीसदी था जो 2019-20 में 14.1 फीसदी हो गया। भारत मुख्य तौर पर इलेक्ट्रानिक्स और इंजीनियरिंग समान, दवाइयाँ और आटोमोबाइल कम्पोनेंट खरीदता है। 18 बिलियन डालर की वैल्यू के साथ इलेक्ट्रानिक आइटम कुल इम्पोर्ट का 25 फीसदी हिस्सा हैं। दूसरी ओर भारत के चीन को एक्सपोर्ट में आर्गेनिक केमिकल, अयस्क, राख़, मिनरल ऑइल, मिनरल ईंधन, और अन्य औद्योगिक आइटम्स शामिल हैं। 2018-19 में चीन को एक्सपोर्ट 5.1 फीसदी था जो 2019-20 में फरवरी तक 5.3 फीसदी हो गया। 2010 से 2019 के बीच भारत के कुल एक्सपोर्ट की वैल्यू करीब 50 फीसदी बढ़ी है लेकिन चीन को होने वाला एक्सपोर्ट 14 फीसदी घट गया है।

अस्सी के दशक से बना व्यापारिक रिश्ता

भारत चीन में व्यापार के संबंध 1984 में प्रगाढ़ हुए जब एक ट्रेड करार के तहत एक दूसरे को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया। लेकिन दोनों देशों के बीच पूरी तरह व्यापारिक संबंध 1992 में बने। इसके बाद 1994 में भारत चीन के बीच डबल टैक्सेशन एग्रीमेंट किया गया। 2003 में दोनों देशों के बीच बॉर्डर ट्रेड के द्वार खोल दिये गए। दोनों देशों ने विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) में किए वादों के तहत बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में भाग लिया है। आज चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है और चीन के टॉप दस ट्रेडिंग पार्टनरों में भारत शामिल है।

चीन का पलड़ा भारी

भारत चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार बीते 12 साल में चार गुना से भी ज्यादा बढ़ा है। लेकिन ये व्यापार संतुलित नहीं है और चीन का पलड़ा बहुत ही भारी है। 2001 से 2016 के बीच भारत-चीन व्यापार पर नजर डालें तो पाएंगे कि 2001 में भारत ने चीन से 1.83 बिलियन डालर का सामान इम्पोर्ट किया और .092 बिलियन डालर का माल एक्सपोर्ट किया। यानी चीन के पक्ष में व्यापार घाटा 50 फीसदी का था। 2005 में ये स्थिति थोड़ी बेहतर हुई जब भारत के एक्सपोर्ट 7.18 बिलियन डालर के थे और इम्पोर्ट 10.17 बिलियन डालर के। इसके बाद ग्राफ में भारी अंतार आता गया।

2008 में भारत का चीन को एक्सपोर्ट 10.09 बिलियन डालर का था जबकि इम्पोर्ट 31.59 बिलियन डालर का। 2010 में चीन से इम्पोर्ट 41.25 बिलियन डालर पर चला गया जबकि एक्सपोर्ट मात्र 17.44 बिलियन डालर का ही था। ये गैप बढ़ता ही गया है और 2016 में इमोर्ट 60.48 बिलियन डालर के थे और एक्सपोर्ट मात्र 8.92 बिलियन डालर के। 2001 से 2016 के बीच चीन को भारत का सर्वाधिक एक्सपोर्ट 2010 में ही रहा, 17.44 बिलियन डालर का। 2016 में भारत के कुल व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 11 फीसदी थी, कुल एक्सपोर्ट में हिस्सेदारी 3.7 फीसदी की थी और कुल इम्पोर्ट में 16 फीसदी की हिस्सेदारी थी।

आर्थिक स्थिति

भारत और चीन की आर्थिक स्थिति पर अमीर देशों की तुलना से नजर डालें तो पाते हैं कि प्रति व्यक्ति जीडीपी ले लेवल पर दोनों ही देश गरीब हैं। अमेरिका की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2018 में 54659 डालर थी जबकि स्वीडन की इससे भी ज्यादा 57966 डालर थी। इनकी तुलना में चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी 7752 डालर और भारत की 2100 डालर है। यानी भारत काफी बुरी स्थिति में है। जहां चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से 4 गुना ज्यादा है वहीं अमेरिका की 26 गुना और स्वीडन की 27 गुना ज्यादा है। इससे पता चलता है कि औसत भारतीय एक औसत चीनी या अमेरिकन की तुलना में कहां खड़ा है। इसीलिए अर्थशास्त्री बार बार कहते है कि भारत को कई दशकों तक लगातार तेज गति से विकास करना होगा तभी वह किसी विकसित देश के करीब पहुंच पाएगा।

चीन से टक्कर

चीन के उत्पादों का बहिष्कार करने की बातें तो रहीं हैं लेकिन इससे चीन से ज्यादा भारत को ही नुकसान हो सकता है। ये समझने वाली बात है कि भारत का ग्लोबल ट्रेड में हिस्सेदारी बहुत ही कम है, खासतौर पर निर्मित सामानों के बारे में। भारत की प्रतिस्पर्धी स्थिति की ये एक कड़वी सच्चाई है जिसे स्वीकार करने की बजाय दोष ग्लोबल डिमांड के सुस्ती पर मढ़ दिया जाता है। 2016 में एचएसबीसी के एक विश्लेषण में निकाल कर आया था कि भारत के निर्यात में कमी के लिए सुस्त ग्लोबल डिमांड सिर्फ 33 फीसदी जिम्मेदार है। सबसे बड़ी कमी घरेलू व्यवधानों की वजह से है जो निर्यात में कमी के लिए 50 फीसदी जिम्मेदार हैं।

आसान नहीं है चीन पर निर्भरता खतम करना

भारत और चीन के बीच व्यापार में भारी असंतुलन है। भारत चीन से भारी मात्रा में तरह तरह के सामान इम्पोर्ट करता है लेकिन भारत का चीन को एक्सपोर्ट बहुत कम है। मोटे तौर पर देखें तो भारत के कुल एक्सपोर्ट का 9 फीसदी चीन को है जबकि हमारे कुल इम्पोर्ट का 19 फीसदी चीन से होता है।

भारत की चीन पर निर्भरता

भारत की चीन पर निर्भरता सबसे ज्यादा कच्चे माल को लेकर है। इसमें एपीआई यानी एक्टिव फार्मा इंग्रेडिएंट्स की बड़ी हिस्सेदारी है। एपीआई औषधि निर्माण में किसी भी औषधि के बेसिक साल्ट या सामग्री को कहा जाता है। इसके अलावा बेसिक केमिकल और कृषि के काम आने वाले रसायन शामिल हैं। कच्चे माल के बाद ते आइटम हैं जो किसी फ़िनिश्ड उत्पाद को बनाने में महत्वपूर्ण होते हैं। मिसाल के तौर पर एलईडी टीवी के पैनल या मोबाइल फोन के सर्किट या बैटरी। ये क्रिटिकल कॉम्पोनेंट आटोमोबाइल, कंज़्यूमर आइटम और कैपिटल गुड्स यानी विनिर्मान की मशीनरी में काम आते हैं।

भारत अन्य देशों में जो आइटम एक्सपोर्ट करता है उनमें भी चीन से आए पुर्जों या सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए चीन से इम्पोर्ट बंद होने पर भारत का अन्य देशों को एक्सपोर्ट भी प्रभावित होगा, कम से कम तब तक के लिए जबतक कि भारत खुद प्रॉडक्शन न करने लगे। और इसमें लंबा समय लगेगा। अच्छी बात ये है कि भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार अच्छी ख़ासी मात्रा मैं है सो चीन से इम्पोर्ट को घटा कर कुछ समय के लिए देश को कोई विपरीत प्रभाव नहीं झेलना होगा।

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चीन से आयात

  1. - भारत में आटोमोबाइल पुर्जों की 20 फीसदी पूर्ति चीन से होती है।
  2. - इलेक्ट्रानिक पुर्जों में से 70 फीसदी की पूर्ति चीन से होती है।
  3. - उपभोक्ता सामग्री यानी कंज़्यूमर ड्यूरेबल्स में 45 फीसदी की आपूर्ति चीन से है।
  4. - औषधि निर्माण में एक्टिव फार्मा इंग्रेडियंट्स (एपीआई) की 70 फीसदी आपूर्ति चीन से है।
  5. - चमड़े के समान में 40 फीसदी चीन से आता है।
  6. - भारत में मिल रहे एयरकंडीशनर में से 28 फीसदी आयातित हैं और इसके अलावा कंप्रेसर जैसे एसी के पुर्जे भी चीन से आते हैं।

भारत-चीन ट्रेड

मार्च 2019 में समाप्त हुये वित्त वर्ष में भारत - चीन के बीच व्यापार 88 बिलियन डालर का था जिसमें चीन के पक्ष में व्यापार घाटा 53.5 बिलियन डालर का था।

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