महाराजा कर्म सिंह ने बनवाया था काली माता का मंदिर, कलकत्ता से लाई गयी थी की मूर्ति
अपनी जिंदादिली के लिए मशहूर पटियाला की एक अलग संस्कृति है जो यहां के लोगों की विशेषता को दर्शाती है। यहां के वास्तुशिल्प में जाट और मुगल शैली का मिश्रण दिखाई देता है। लेकिन यह शैली भी स्थानीय परंपराओं में ढ़लकर एक नया रूप ले चुकी है।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर: पंजाब की प्रमुख रियासतों में एक पटियाला राजघराने का इतिहास 1763 से शुरू होता है। इस रियासत के पहले महाराज आला सिंह थे, जिनका कार्यकाल (1763-1765) तक रहा। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस राजघराने के 10वें वारिस हैं।
अपनी जिंदादिली के लिए मशहूर पटियाला की एक अलग संस्कृति है जो यहां के लोगों की विशेषता को दर्शाती है। यहां के वास्तुशिल्प में जाट और मुगल शैली का मिश्रण दिखाई देता है। लेकिन यह शैली भी स्थानीय परंपराओं में ढ़लकर एक नया रूप ले चुकी है। पटियाला का किला मुबारक परिसर तो सुंदरता की खान है। इसके अलावा पटियाला की एक पहचान और है वह है यहां कि काली माता और उनका मंदिर। पटियाला की काली माता मंदिर की ख्याति पटियाला सहित न केवल पूरे पंजाब में बल्कि राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पश्चिमि उत्तर प्रदेश में फैली हुई है।
मंदिर का इतिहास
अपनी अस्थापत्य कला के लिए विख्यात काली माता मंदिर के निर्माण की आधारशिला पटियाला राजघराने के 8वें महाराज महाराजा भुपिंदर सिंह (1900-1939) ने रखी थी। लेकिन, इसका पूर्ण रूप से निर्माण महाराजा कर्म सिंह ने करवाया था। कहा जाता है कि जब महाराजा भुपिंदर सिंह ने मंदिर बनाने का निश्चय किया तो उन्होंने मां काली की करीब 6 फुट ऊंची प्रतिमा बंगाल से पटियाला मंगवाई। यह विशाल परिसर हिंदू और सिख श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस परिसर के बीच में काली मंदिर से भी पुराना राज राजेश्वरी मंदिर भी स्थित है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है। मौजूदा समय में मंदिर प्रबंधन का कार्य पंजाब सरकार के अधीन है।
शहर के बाहरी तरफ रखा गया है मूर्ति का मुख
कहा जाता है कि जिस समय मंदिर का निर्माण करवाया गया उस समय देवी मां की मूर्ति का मुख शहर के बाहर की तरफ यानी बारादरी गार्डन की तरफ रखा गया था। उस समय उधर शहर नहीं होता था। कालांतर में आबादी बढ़ी और शहर का विस्तार होने लगा और लोग बारादरी गार्डन की तरफ जाकर रहने लगे। कहा जाता है कि देवी मां की नजरों के तेज का प्रभाव उन पर न पड़े इसलिए मंदिर में दीवार बना दी गई।
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नवरात्र के दिनों में लगता है मेला
शहर के माल रोड पर बने कालीमाता मंदिर में नवरात्र दिनों में दूर-दूर से लाखों की सख्या में भक्तों का आना जाना होता है। रोजाना सुबह देवी मां को स्नान कराया जाता है और शृंगार किया जाता है। नौ देवियों की पूजा भी विधिविधान के साथ संपन्न होती है। मंदिर के आसपास मेला लगता है और माल रोड से नौ दिन के लिए वाहनों का गुजरना रोक दिया जाता है।
पटियाला के अन्य दर्शनीय स्थल
शहर के बीचों बीच स्थित 10 एकड़ क्षेत्र में फैला किला मुबारक यहां के दर्शनीय स्थलों में से एक है। किला अंद्रूं या मुख्य महल, गेस्टहाउस और दरबार हॉल इस परिसर के प्रमुख भाग हैं। इस परिसर के बाहर दर्शनी गेट, शिव मंदिर और दुकानें हैं। किला अंद्रूं सैलानियों को विशेष रूप से आकर्षित करता है। इसके अलावावा रंगमहल, शीश महल, दरबारे हाल, रनबास, लस्सीखाना, मोती महल,, पंजबली गुरुद्वार, किला बलीखान, गुरुद्वारा दुःखनिवारण साहिब, इजलास-ए-खास, बारादरी गार्डन, राजेंद्र कोठी आदि देखने योग्य है।
कैसे पहुंचे
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पंजाब के चार प्रमुख बड़े शहरों में पटिया एक है। यहां रेल एव सड़क मार्ग से सुगमता से पहुंचा जा सकता है। यहां का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा चंडीगढ़ और अमृतसर है। दिल्ली से इसकी दूरी करीब 250 किमी है। अंबाला- बठिंडा रेल खंड पर स्थित पटियाला रेलवे स्टेशन से कालीमाता मंदिर करीब 1.50 किमी की दूरी पर है। यहां तक पैदल भी पहुंच सकते हैं।