Kargil : आखिरी सांस तक लड़ते रहे भारतीय जवान, ऐसी है शहादत की कहानी

कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिवस कारगिल जंग में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों के सम्मान दिवस के रुप में मनाया जाता है।

Update:2020-07-26 10:45 IST

गोंडा: कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिवस कारगिल जंग में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों के सम्मान दिवस के रुप में मनाया जाता है। 60 दिनों तक चला कारगिल युद्ध 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ था। इसमें पाकिस्तान के खिलाफ भारत की विजय हुई थी। युद्ध की शुरुआत पाक ने की थी।

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कारगिल विजय दिवस देश के लोगों में देश भक्ति का नया जोश भर देता है। कारगिल के ही एक हीरो विजय सिंह हैं, जिनके साहस और हौसले की कहानी लोगों को हैरान कर देती है। दो गोलियां व बम के टुकड़े लगने से शरीर छलनी था। आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। गोली लगने के बावजूद अपने प्राणों की परवाह नहीं की। उन्होंने हार नहीं मानी और कारगिल में देश की रक्षा में अपने को न्योछावर कर दिया। इस युद्ध में उनका एक पैर जख्मी हो गया, तीन साल तक उनका इलाज चला, जिससे उनकी जान तो बच गई लेकिन वे सदा के लिए विकलांग हो गए।

कारगिल के नाम से मिली पहचान

जनपद मुख्यालय के सिविल लाइन मोहल्ले में रह रहे कारगिल योद्धा विजय कुमार सिंह शौर्य व बहादुरी के चलते उपनाम कारगिल भी जुड़ गया। अब वे विजय सिंह कारगिल के नाम से मशहूर है। जिले के तरबगंज तहसील क्षेत्र के बेलसर ब्लाक अंर्तगत ऐली परसौली गांव में 1970 में जन्मे विजय सिंह की बचपन में ही सेना में जाने की इच्छा थी। वर्ष 1988 में जब लखनऊ में सेना भर्ती मेला लगा तो वे सेना में भर्ती हो गए। जब कारगिल में भारत पाक के बीच युद्ध शुरू हुआ तो वह बारामूला में 16 ग्रेनेडियर रेजीमेंट में बतौर नायक तैनात रहे।

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एमएमजी, एजीएल व एके 47 का प्रशिक्षण प्राप्त विजय सिंह को यूनिट के साथ द्रास सेक्टर भेजा गया। कारगिल हिल के पास टाइगर हिल के सामने व नीचे की ओर द्रास सेक्टर है। विजय सिंह कहते हैं कि नौ जून 1999 में कश्मीर में कारगिल में भीषण युद्ध शुरू हुआ। इस दौरान पता चला कि पाकिस्तानी फौज ने कारगिल सहित कश्मीर की 15 पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया है। पाक के इस नापाक इरादों की जानकारी होते ही फौज की सभी यूनिटों को एलर्ट करके जगह-जगह पहाड़ियों पर जवानों को भेज दिया गया।

सात बार किया दुश्मनों पर फायर

विजय सिंह बताते हैं कि कश्मीर में कारगिल सबसे ऊंची पहाड़ियों में है। जब लड़ाई शुरू हुई तो कमांडिंग आफीसर व दल नायक मेजर अजीत सिंह के नेतृत्व में उनकी यूनिट ने चढ़ाई शुरू कर दी। विजय सिंह कहते हैं कि एक माह की लड़ाई में उनके यूनिट के 12 जवान शहीद हो गए और 22 जवान जख्मी हुए। 5100 नंबर की पहाड़ी पर निर्णायक युद्ध चल रहा था। पहाड़ी के नीचे उनके यूनिट के जवान फायरिंग कर रहे थे और पहाड़ी पर चढ़ रहे थे। उनके बगल कवर फायरिंग के लिए इलाहाबाद का जवान अमर बहादुर भी था।

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...आंख के सामने अंधेरा छाने लगा

विजय ने बताया कि पहली गोली उन्हें घुटने के नीचे लगी तो कुछ नहीं पता चला, बस एक ही संकल्प था कि साथी को तो खो दिया लेकिन पहाड़ी ले के रहेंगे। वह आगे बढ़े ही थे कि दूसरी गोली भी उनके घुटने के नीचे लगी तो पैर में कुछ चिपचिपाहट महसूस हुई, जब तक वह कुछ समझ पाते तब तक एक बम फटा और फिर आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। इसके बावजूद लड़ाई जारी रही और सात बार दुश्मनों पर फायर किया, लेकिन पैर में गोली लगने से हुए रक्तस्राव से उनकी आंख के सामने अंधेरा छाने लगा। इसके बावजूद विजय अन्य जवानों के साथ युद्ध में जुट रहे।

विजय कहते हैं कि युद्ध के दौरान दुश्मनों की ओर से निकली गोली उनके कमर में जा लगी। गोली लगते ही वह बेहोश हो गए और उनके साथी जवान धैर्य बंधाते रहे। बेहोशी अवस्था में वह 12 से 14 घंटे उसी पहाड़ी पर पड़े रहे। इसके बाद होश आया तो श्रीनगर अस्पताल में थे जबकि उनके दो साथी अमर बहादुर सिंह व एक जाट रेजीमेंट का सैनिक शहीद हो गए। विजय सिंह ने बताया कि बेहोशी हालत में भी उनका इरादा था यदि दुश्मन सामने आ गए तो वे ग्रेनेड दगा देंगे और दुश्मनों के साथ शहीद हो जाएंगे।

आतंकियों ने छलनी कर दिया सीना

एक सैनिक के लिए एक छोटी सी चूक किस तरह मौत का कारण बन जाती है, यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में विजय सिंह के सामने ही दुश्मनों ने उनके साथी बृजेश सिंह का सीना छलनी कर दिया। विजय सिंह ने बताया कि यह घटना कारगिल के पहले 1997 अक्टूबर की है जब बारामूला में एक घर को आतंकवादियों ने कब्जे में ले लिया था। हमें घर को छुड़ाने के लिए आदेश मिला जहां उन लोगों ने परिवार को भी बंधक बन रखा था।

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उनके दोस्त सैनिक बृजेश सिंह बहुत बहादुर थे, टीम के अधिकारी यह तय कर रहे थे कि अंदर कौन जाएगा। तब तक बृजेश ने उनसे कहा कि हम दोनों को चलना चाहिए। यह बात अधिकारी ने सुन ली और घर की चारदीवारी फांदकर अंदर जाने का आदेश दे दिया। विजय कहते हैं कि जैसे ही बृजेश दीवार फांद कर अंदर घुसना चाहे तो उन्होंने चेतावनी दी कि पहले मैं अपनी एमएमजी (मीडियम मशीन गन) निकालकर निशाना साध लूं लेकिन वह तब तक कूद गए। उनके कूदते ही घर में छिपे आतंकवादियों ने फायर झोंक दिया और बृजेश का सीना छलनी हो गया। इसके बाद भी हमने हार नहीं मानी और आतंकियों का सफाया हुआ।

कश्मीर विवाद पर दबाव के लिए हुआ युद्ध

बताते हैं कि पाक की योजना कारगिल के रास्ते रास्ते कश्मीर में पहाड़ की कुछ चोटियों पर कब्जा करके श्रीनगर-लेह राज मार्ग बंद करने की थी। क्योंकि यही एकमात्र रास्ता था, जिससे भारत कश्मीर में तैनात सैनिकों को सैन्य सहायता और रसद भेजता था। कहा जाता है कि पाक जनरलों का मानना था कि इससे भारत कश्मीर विवाद मसले पर बातचीत के लिए मजबूर हो जाएगा। शुरुआत में उसने भारत को करारी चोट दी, लेकिन देश के रणबांकुरों ने पाक की नापाक सोच को नाकाम कर दिया और उसे कारगिल में जबरदस्त शिकस्त दी।

रिपोर्ट: तेज प्रताप सिंह

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