नूर इनायत खान का ब्रिटेन ने किया सम्मान, अब बनेगी फिल्म
नूर इनायत खान ने 1943 में फ्रांस में घुसपैठ की थी। उन्होंने मेडेलिन के कोड नाम के साथ काम किया था। जासूसी के दौरान नूर को पकड़ लिया गया था। फ्रांस के एक कैंप में बंदी बनाकर रखा गया। वर्ष 1944 में डचाऊ कंसन्ट्रेशन कैंप में उनकी हत्या हो गयी।
योगेश मिश्र
भारतीय मूल की महिला नूर इनायत खान उन चुनिंदा ऐतिहासिक हस्तियों में शामिल हो गई हैं। जिनके नाम पर ब्रिटेन की राजधानी लंदन के घर में ब्लू प्लाक या नीली तख्ती लगाई गई है।
नूर इनायत खान ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की मदद की थी। जर्मनी के कब्जे में रहे फ्रांस में जाकर नाजियों की जासूसी की थी। ब्रिटेन में परम्परा है कि देश के लिए योगदान करने वालों के सम्मान में उन हस्तियों के रहने या उनके काम करने की जगह पर ‘ब्लू प्लाक’ लगाई जाती है।
यह ब्लू प्लाक उस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है। एक ऑनलाइन इवेंट में लंदन के ब्लूम्सबरी में टेविटन स्ट्रीट में मौजूद एक घर के बाहर इस ब्लू प्लाक का अनावरण किया गया। इस मौके पर नूर इनायत खान की जीवनी लिखने वाली शरबनी बासु और नूर के भतीजे जिया इनायत खान भी मौजूद थे।
इस घर में नूर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एक सीक्रेट एजेंट के तौर पर रहा करती थीं। इस सम्मान को पाने वाली वह पहली भारतीय महिला जासूस हैं। नूर इनायत खान उन 6 महिलाओं में से एक हैं, जिन्हें ब्लू प्लेक से सम्मानित किया गया है।
टीपू सुल्तान की वंशज
नूर इनायत खान टीपू सुल्तान की वंशज थीं। नूर के पिता हजरत इनायत खान मैसूर के राजा टीपू सुल्तान के प्रपौत्र थे। उनकी मां ओरा रे बेकर एक अमेरिकी महिला थीं।
नूर का जन्म 1914 में सोवियत संघ की राजधानी मास्को में हुआ था। 1940 में तत्कालीन ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल ने एक खुफिया टीम की शुरुआत की थी, जिसका हिस्सा नूर भी बनी थीं।
फ्रांस में की घुसपैठ
इसी दौरान वह नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में घुसी। जासूसी की। वह पहली महिला रेडियो ऑपरेटर थी, जिन्होंने 1943 में फ्रांस में घुसपैठ की थी। उन्होंने मेडेलिन के कोड नाम के साथ काम किया था। जासूसी के दौरान नूर को पकड़ लिया गया था। फ्रांस के एक कैंप में बंदी बनाकर रखा गया।
वर्ष 1944 में डचाऊ कंसन्ट्रेशन कैंप में उनकी हत्या हो गयी। हालांकि जिन लोगों ने उन्हें बंदी बनाया था। उन्हें भी उनका असली नाम पता नहीं चल पाया। ब्रिटेन में वह 1946 तक लापता घोषित रहीं।
लेकिन 1946 में पूर्व गेस्टपो ऑफिसर क्रिस्चियन ऑट से पूछताछ के बाद उनकी कहानी दुनिया के सामने आई। 3 साल बाद 1949 में ब्रिटिश हुकूमत ने उनके योगदान को याद करते हुए नूर को मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया।
फ्रेंच पर पकड़ से मिला स्पेशल ऑपरेशन
नूर को सूफी संगीत से बेहद प्रेम था। वह बहुत खूबसूरत महिला थीं। नूर इनायत खान को फ्रेंच भाषा का काफी अच्छा ज्ञान था। उनकी फ्रेंच बोलने की अच्छी क्षमता के कारण उन्हें स्पेशल ऑपरेशन के लिए चुना गया था। जिस वक्त दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, नूर सिर्फ 25 साल की थीं। साल 1940 में फ्रांस के पतन के बाद वह ब्रिटेन आ गईं।
यहां नोरा बेकर के नाम से विमिन्स ऑग्जिलरी एयरफोर्स ज्वाइन कर लिया। यहां उन्होंने वायरलेस ऑपरेटर के तौर पर ट्रेनिंग ली। उनकी भाषा और टेक्निकल स्किल का फायदा तब हुआ जब उन्हें 1943 में स्पेशल ऑपरेशन्स एग्जिक्युटिव के फ्रांस सेक्शन में लगाया गया।
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जीन मैरी रेनियर के नाम से वह बच्चों की नर्स के तौर पर तैनात की गईं> उनका कोडनेम था मैडलीन। वह पकड़े गए वायुसेना कर्मियों को ब्रिटेन भागने में मदद करती थीं। लंदन तक जानकारियां पहुंचाती थीं। मैसेज रिसीव भी करती थीं। पेरिस के एजेंट्स और लंदन के बीच वह अकेली कड़ी थीं।
ब्रिटेन की डाक सेवा, रॉयल मेल द्वारा नूर की स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया है। ‘उल्लेखनीय लोगों’ की श्रृंखला में नूर पर नौ अन्य लोगों के साथ डाक टिकट जारी किया गया था।
पहली एशियाई महिला
लंदन में 2012 में उनकी तांबे की प्रतिमा लगाई गई। यह पहला मौका था जब ब्रिटेन में किसी एशियाई महिला की प्रतिमा लगी। गॉर्डन स्क्वेयर गार्डन्स में उस मक़ान के नज़दीक प्रतिमा स्थापित की गई है जहां वह बचपन में रहा करती थीं।
फ्रांस के द्वारा उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान - "क्रोक्स डी गेयर" से नवाज़ा गया।
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नूर को ब्रिटेन का ‘मेंसंड इन डिस्पैचिज’ गैलेन्ट्री अवार्ड भी दिया गया है।
भारतीय फिल्मकार तबरेज़ नूरानी व ज़फर हई, नूर की कहानी को बड़े पर्दे पर पेश करने जा रहे हैं। हई व नूरानी ने लंदन में रहने वाली लेखिका बनी श्राबणी बासु की किताब ‘स्पाई प्रिंसेस - नूर इनायत ख़ान’ पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीद लिए हैं। नूरानी लॉस ऐन्जेलिस में और हई मुम्बई में रहते हैं।