पंजाब में राम सिंह और चंबल में डाकू माधो सिंह
तीन राज्यों की सरहद से लगा चंबल का पानी और बीहड़ डाकुओं के इतिहास से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि डाकुओं के किस्से कहीं से शुरू हों पर कहीं न कहीं आकर चंबल से जुड़ जाते हैं। इन्हीं चंबल के बीहड़ों में एक ऐसा डाकू होता था जिसकी कहानी पांच दशक बाद भी लोगों के जेहन में आज भी ताजा है।
लखनऊ: तीन राज्यों की सरहद से लगा चंबल का पानी और बीहड़ डाकुओं के इतिहास से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि डाकुओं के किस्से कहीं से शुरू हों पर कहीं न कहीं आकर चंबल से जुड़ जाते हैं। इन्हीं चंबल के बीहड़ों में एक ऐसा डाकू होता था जिसकी कहानी पांच दशक बाद भी लोगों के जेहन में आज भी ताजा है। यह कोई और नहीं बल्कि डाकू माधो सिंह था। जिसके आतंक से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की पुलिस कांपती थी। माधो सिंह के बारे में कहा जाता है कि यह एक ऐसा डाकू था जिसकी उंगलियां एसएलआर या राईफल पर जितनी तेजी से चलती थी उससे भी तेज चलता था उसका दिमाग।
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राम सिंह के नाम से अमृतसर में रहा माधो सिंह
क्षेत्रीय श्रीगांधी आश्रम, क्वींस रोड अमृतसर के सेक्रेटरी राम सूरत यादव एक वाकया बताते हैं कि डाकू माधो सिंह 1973 तक अमृतसर में राम सिंह के नाम रहता था। यहां के लोगों यह पता नहीं था कि लोग जिसे राम सिंह के नाम से जानते हैं दरअसल वह चंबल का दुर्दांत डाकू माधो सिंह है। माधो सिंह जहां रहता था वो कोठी आज भी मौजूद है। इस कोठी में माधो सिंह अपनी पत्नी राम कटोरी देवी के साथ रहता था। जब माधो सिंह ने सरेंडर कर दिया तब अमृतसर के लोगों को राम सिंह की सच्चाई पता चली। रामसूरत कहते हैं कि यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह कोठी डाकू माधो सिंह ने खरीद रही थी। क्यों कि यह कोठी इससे पहले दो हाथों में बिक चुकी थी।
1974 में गांधी आश्रम ने खरीदी कोठी
गांधी आश्रम के सेवानिवृत्त ऑडिटर त्रिभुवन प्रसाद आचार्य कहते हैं कि अमृतसर के वेरका में स्थित माधो सिंह की कोठी को गांधी आश्रम में 1973-74 में खरीदा था। आचार्य बताते हैं कि माधो सिंह के सरेंडर के बाद जय प्रकाश नारायण ने श्री गांधी आश्रम लखनऊ के तत्कालीन जनरल सेक्रेटरी विचित्र नारायण शर्मा को पत्र लिखे थे। इसमें उन्होंने लिखा था कि माधो सिंह ने मध्य प्रदेश पुलिस को आत्मसमपर्ण कर दिया है इसलिए उसकी पत्नी रामकटोरी देवी अपनी कोठी बेचना चाहती हैं। इसके बाद गांधी आश्रम, अमृतसर के तत्कालीन सेक्रेटरी महेश चंद्र तिवारी ने वेरका स्थित इस कोठी को 20 हजार रुपये में खरीदा था। आचार्य बताते हैं कि कोठी बिकने बाद कुछ साल तक माधो सिंह की पत्नी राम कटोरी देवी अपनी बेटी के साथ गांधी आश्रम में ही रहीं। इसके बाद वह कहां चली गईं किसी को कुछ पता नहीं।
राजपूताना राईफल्स में कंपाउंडर था माधो सिंह
गांधी आश्रम के टीपी आचार्य के मुताबिक 11 साल के बीहड़ों के जीवन में सैकड़ों मुकदमे माधो सिंह और उसके गैंग पर दर्ज हुए। पुलिस मुठभेड़ों से बार-बार बच निकलने वाले माधो सिंह ने जब समर्पण किया तो वह अकेले नहीं था। उसके साथ 550 अन्य बागियों ने भी बंदूकें रख दी थीं।
माधो सिंह एक किसान परिवार में पैदा हुआ था। कहते हैं कि बचपन से ही माधो सिंह को कोई बड़ा काम करने की धुन थी। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह राजपूताना राईफल्स की मेडिकल कोर में भर्ती हो गया। लेकिन इसी बीच गांव में हुई दुश्मनी ने उसे बागी बना दिया। समय बीतने के साथ ही चंबल में माधो सिंह का सिक्का चलने लगा। डाकू माधो सिंह के आतंक से परेशान तीन राज्यों की पुलिस ने उसे जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए उस जमाने में डेढ़ लाख का ईनाम रखा था।
मुठभेड़ में मारे गए थे 13 साथी
माधो सिंह के बारे में कहा जाता था कि पुलिस को जो हथियार 1971 के बाद मिले वो पहले से ही माधो सिंह के पास थे। 13 मार्च 1971 को पुलिस के साथ डाकुओं की एक बड़ी मुठभेड़ हुई थी। जिसमें पुलिस ने माधो सिंह के गैंग के सबसे भरोसे के आदमी कल्याण उर्फ कल्ला, गर सिंह, चिंतामण, बाबू और विशंभर सिंह जैसे 13 डकैतों को मार गिराया था। यह अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ थी।
विनोबा भावे से मिला था माधो सिंह
गांधी आश्रम अमृतसर के पूर्व कैशियर रामकुंवर चौहान और टीपी आचार्य कहते हैं कि माधो सिंह की पत्नी रामकटोरी देवी ने अपने पति को बताया था कि संत विनोबा भावे चंबल में कई डाकुओं को सरेंडर करा चुके थे। मानसिंह के गैंग के लोकमन दीक्षित सहित कई अन्य डाकुओं ने विनोबा के सामने हथियार डाले थे और अब अपनी सामान्य जिंदगी जी रहे थे। यही देख कर एक दिन संत विनोबा भावे के सामने राम सिंह बन कर माधो सिंह पहुंचा और कहा कि चंबल के खूंखार डाकू बंदूकें रखना चाहते है। विनोबा जी ने कहा कि मैं तो जा नहीं पाऊँगा पर एक खत जेपी (जय प्रकाश नारायण ) को लिख देता हूं वह चाहें तो वहां जा सकते हैं।
राम कुंवर चौहान बताते हैं कि रामसिंह बना माधो सिंह विनोबा जी का खत लेकर जय प्रकाश नारायण के पास पटना जा पहुंचा। यहां जेपी ने जब पूछा कि आप कौन हैं और आपका डाकुओं के साथ क्या रिश्ता है। इस पर माधो सिंह ने बताया कि वही डाकू माधो सिंह है। यह सुनते ही जयप्रकाश नारायण चौंक पड़े थे। जे पी सरेंडर कराने के लिए तैयार हो गए लेकिन शर्त रख दी कि ज्यादा से ज्यादा डाकुओं का समर्पण हो सिर्फ माधो सिंह के गैंग का ही नहीं। इस कठिन काम को भी माधो सिंह ने अपने हाथ में ले लिया था।
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डाकू मोहर सिंह के साथ मुरैना में किया सरेंडर
गांधी आश्रम के ही सेवा निवृत्त आडिटर विशंभर राम कहते हैं कि डाकू माधो सिंह ने मध्य प्रदेश मुरैना में पगारा डैम पर समर्पण किया था। माधो सिंह के साथ डाकू मोहर सिंह सहित 550 डाकुओं ने हथियार डाले थे। डाकुओं के लिए शर्तों मनवाने के बाद माधो सिंह ने डाकुओं के शिकार लोगों के परिवारों लिए भी मुआवजे और मदद की मांग की थी। इससे उसके खिलाफ ज्यादातर लोगों की नफरत खत्म हो गई। माधो सिंह को जेल हुई और उसने मुंगावली खुली जेल में अपनी सजा काटी। सजा पूरी होने के बाद वह लोगों को जादूगरी के खेल दिखाने लगा था। 1991 में माधो सिंह की मौत हो गई।