राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा के अफसर थे पासवान

विभिन्न सरकारों में पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली तो इस दौरान वह भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के साथ कई गठबंधनों में रहे।

Update:2020-10-08 21:38 IST
बिहार की राजनीति में पांच दषकों तक अपना प्रभुत्व रखने वाले रामविलास पासवान का आज निधन हो गया। वह 74 वर्ष केे थें। वह पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे थें।

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ। बीते पांच दशक से भारत की राजनीति में लगातार अपनी दमदार उपस्थति रखने वाले व 08 बार लोकसभा सदस्य रह चुके रामविलास पासवान राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा के अफसर थे। उन्होंने राजनीति में अपना पहला कदम वर्ष 1969 में रखा।

केंद्र की सभी दलों की सरकारों में रहे थे मंत्री

इस वर्ष उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे। इसके बाद वह इमरजेंसी के दौरान भी बहुत सक्रिय रहे और काफी समय जेल में रहे। वर्ष 1977 में लोकसभा चुनाव में बिहार की हाजीपुर सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और चार लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद वर्ष 2014 तक उन्होंने आठ बार लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की।

सियासी गलियारों में कहलाते थे मौसम वैज्ञानिक

वर्ष 1980 और 1989 के लोकसभा चुनावों में भी उन्होंने जीत हासिल की और केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में वह पहली बार कैबिनेट मंत्री बने। इसके बाद तो केंद्र में शायद ही कोई ऐसी सरकार रही जिसमे पासवान को मंत्री पद न मिला हो।

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विभिन्न सरकारों में पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली तो इस दौरान वह भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के साथ कई गठबंधनों में रहे। मौजूदा मोदी सरकार वन और टू दोनों में ही उनके पास मंत्री पद रहा। मौजूदा समय में वह राज्यसभा सांसद थे।

कांग्रेस के साथ भी खडे़ रहे पासवान

कांग्रेस के विरोध के साथ शुरू हुई उनकी राजनीति में कई पड़ाव ऐसे भी आये कि वह कांग्रेस के साथ भी खडे़ हुए। राजनीति के माहिर पासवान को यह पूर्वानुमान हो जाता था कि केेंद्र में किसकी सरकार बनने जा रही है और वह उसी दल के साथ रहते थे। वह एनडीए के साथ भी रहे तो यूपीए के साथ भी।

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यही कारण है कि केंद्र में सरकार चाहे जिसकी हो पासवन का मंत्री पद तय होता था। देश के राजनीतिक मौसम की सटीक जानकारी रखने के कारण सियासी गलियारों में उन्हे मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता था।

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