अखाड़ों में कोई गलती नहीं की जाती है माफ, संतों को मिलती है ऐसी सजा

आपने कुंभ मेले में संन्यासियों को देखा ही होगा। कुंभनगरी में कल्पवास जो भी संन्यासी आते हैं उनका जीवनशैली देख सभी को हैरान कर देता है। संन्यासी अपना जीवनकाल अखाड़ों के अनुशासन के आधार व्यतित करते हैं.. 

Update: 2021-03-19 09:50 GMT
संन्यासियों

हरिद्वारः आपने कुंभ मेले में संन्यासियों को देखा ही होगा। कुंभनगरी में कल्पवास जो भी संन्यासी आते हैं उनका जीवनशैली देख सभी को हैरान कर देता है। संन्यासी अपना जीवनकाल अखाड़ों के अनुशासन के आधार व्यतित करते हैं। अखाड़ों का कानून इतना सख्त है। जिसे सुन कर आप की रूह कांप उठेगी।

एक छोटी सी गलती पर सजाः

यह सत्य है कि संन्यासियों की जिंदगी इतनी असान नहीं होती। एक छोटी सी गलती पर भी संन्यासी को गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकियां लगाने का दंड सुनाया जाता है। और यदि संन्यासी पर कोई बड़ा आरोप सिद्ध होता है तो अखाड़े की अदालत उस संन्यासी को निष्कासित कर देती है।

क्या है इन अखाड़ों का इतिहासः

आप को बता दें कि महाकुंभ के साथ अखाड़ों का इतिहास भी बहुत पुराना है। माना जाता है कि शुरुआत में केवल चार अखाड़े थे। बाद में विचारों में भिन्नता के चलते अखाड़ों का बंटवारा हो गया।

आखिर कितने है यह अखाड़ेः

परंपरा के अनुसार कुल 13 अखाड़े है जिसमें से शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता है। यह भी कहा गया है कि दीक्षा लेने के बाद संन्यासी को अखाड़े के नियम और कानून का अनिवार्य रूप से पालन करना पड़ता है।

क्या कहा महामंत्री श्रीमंहत हरिगिरि नेः

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमंहत हरिगिरि ने बताया कि अखाड़ों में छोटे दोष पर दंड का प्रावधान है। गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने की सजा सुनाई जाती है।

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दोषी संन्यासी को भेजा जाता है कोतवालः

जब संन्यासी का दंड को पूरा हो जाता है तो उसे कोतवाल भी भेज दिया जाता है। गंगा में डुबकी लगाने के बाद संन्यासी भीगे कपड़ों में ही देवस्थान पर वापस आकर क्षमा याचना करता है। इसके बाद पुजारी संन्यासी का प्रसाद देकर दोषमुक्त करता है।

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श्रीमहंत हरिगिरि ने बताया गंभीर मामलों में अखाड़े की अदालत सीधा निष्कासन का निर्णय लेती है। दोषी संन्यासी के अखाड़े से निष्कासन के बाद इनपर भारतीय दंड संहिता की धाराएं लागू होती है।

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