जन्मदिन पर विशेषः ग्रेटर नोएडा के रचनाकार, स्पष्ट वक्ता योगेंद्र नारायण

राज्यसभा के पूर्व महासचिव का स्पष्ट मत है कि भारतीय संविधान में विचारों की स्वतंत्रता के मद्देनजर यह कानून लोकतंत्र की मूल भावना के विरूद्ध है। उनका यह भी मत रहा है कि राजनीतिक दलों की कोई विचारधारा होती भी है या नहीं, यह एक विचारणीय प्रश्न है।

Update:2020-06-26 13:16 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रहे योगेन्द्र नारायण का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपनी मिलनसारिता, सदाशयता से हर दिल अजीज योगेन्द्र नारायण 1965 बैच के एक ऐसे आई॰ए॰एस॰ अधिकारी रहे जो अपनी ईमानदार छवि और वक़्त की पाबन्दी के लिए अपने समय में मशहूर थे। वह उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्य सचिव, केन्द्र सरकार में रक्षा सचिव और राज्य सभा में महासचिव भी रहे। उन्होंने अंग्रेजी में कई पुस्तकें भी लिखीं।

एक परिचय

26 जून 1942 को इलाहाबाद में जन्मे योगेन्द्र नारायण ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स कैमिस्टी मैथमैटिक्स में बी॰एससी॰ व पॉलिटिकल साइंस में फर्स्ट क्लास फर्स्ट एम॰ए॰ किया। इनके पिता कृपा नारायण इलाहाबाद नगर निगम के अधिशाषी अधिकारी थे।

इनकी माता जी शांति नारायण एक समाजसेविका रहीं। योगेंद्र नारायण ने एमए करने के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा को अपना कैरियर बनाया। उनकी पहली पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के डीएम के तौर पर हुई। इसके बाद वह संयुक्त सचिव सूचना बनाए गए।

उन्होंने पूरी ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के साथ उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे प्रमुख राज्य में विभिन्न पदों पर काम किया। उनकी सेवाओं को देखते हुए ही उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रेटर नोएडा जैसे महत्वपूर्ण शहर को बसाने का दायित्व उन्हें सौंपा। इसके बाद वे प्रदेश के मुख्य सचिव बनाये गये।

हाईवे अथारिटी के संस्थापक अध्यक्ष रहे

भारत सरकार के भूतल परिवहन मन्त्रालय में सचिव के रूप में अपनी उल्लेखनीय सेवायें देने के उपरान्त उन्हें नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इण्डिया के संस्थापक अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। यू॰पी॰ कैडर से 1965 बैच के आईएएस योगेन्द्र नारायण को अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में पहले रक्षा सचिव और उसके बाद राज्यसभा का महासचिव बनाया।

सरकारी सेवा में रहते हुए भी योगेन्द्र नारायण ने अध्ययन का क्रम जारी रखा और डेवलपमेण्ट इकोनॉमिक्स में डिप्लोमा के साथ-साथ एम॰फिल॰ और पीएच॰डी॰ की उपाधियाँ भी अर्जित कीं।

देश की सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा निर्माण प्रतिष्ठान रिलाइंस पॉवर इण्डस्ट्रीज़ ने 31 मार्च 2010 को उन्हें अपनी कम्पनी की ऑडिट कमेटी का सदस्य नियुक्त किया। यह दायित्व भी उन्होंने इस शर्त पर स्वीकार किया कि वे कम्पनी का एक भी शेयर नहीं खरीदेंगे।

बेबाक टिप्पणी के लिए मशहूर

चाहे वह दल-बदल निषेध कानून का मुद्दा हो या प्रशिक्षु आई॰ए॰एस॰ दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन का मामला अथवा लोकसभा कर्मचारियों के वेतन का मसला योगेन्द्र नारायण ने अपनी बेवाक राय व्यक्त करने में कभी कोई संकोच नहीं किया।

युवा आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में जब ये सवाल उठने लगे कि क्या राजनीति के बीच ब्यूरोक्रेसी कमजोर होती जा रही है? दुर्गा शक्ति नागपाल का मामला युवा आईएएस और आईएएस बनने वालों के मॉरल को प्रभावित कर रहा है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव योगेन्द्र नारायण ने बेझिझक कहा कि इतने जूनियर आईएएस के साथ ऐसी कार्रवाई समझ के परे है। उन्होंने कहा कि पहले ही टैलेंटेड लोग आईएएस छोड़ने लगे हैं और ऐसी घटनाओं के बाद यह और बढ़ सकता है।

दल बदल कानून पर दो टूक

इसी तरह दल बदल विरोधी कानून पर योगेंद्र नारायण ने बेलौस कहा कि दल-बदल निषेध कानून की कोई आवश्यकता ही नहीं है। उनके मत में भारत में लोकतंत्र इतना परिपक्व हो चुका है कि इस कानून की कोई जरूरत नहीं है। दल-बदल निषेध कानून राजनेताओं को मौका परस्ती में दल-बदल करने से रोकने के लिए बनाया गया था।

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राज्यसभा के पूर्व महासचिव का स्पष्ट मत है कि भारतीय संविधान में विचारों की स्वतंत्रता के मद्देनजर यह कानून लोकतंत्र की मूल भावना के विरूद्ध है। उनका यह भी मत रहा है कि राजनीतिक दलों की कोई विचारधारा होती भी है या नहीं, यह एक विचारणीय प्रश्न है।

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