26 फरवरी की वो दर्दनाक घटनाः आज भी सुनकर कांप उठती है रूह

यह घटना आज से 163 साल पहले बंगाल के बहरामपुर में हुई थी। जिसके बाद पूरा देश हिल गया था। और बाद में यह तारीख विदेशी हुकूमत के खिलाफ पहली जनक्रांति की शुरुआत की गवाह बनी।

Update:2020-02-26 19:06 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

हम आपको बताने जा रहे हैं 26 फरवरी का वह दर्दनाक किस्सा जो इतिहास के पन्नों से दर्ज है। इस एक घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था और हर व्यक्ति के तन बदन में ऐसी आग लग गई थी। जिसे जान कर आपकी रूह कांप जाएगी।

यह घटना आज से 163 साल पहले बंगाल के बहरामपुर में हुई थी। जिसके बाद पूरा देश हिल गया था। और बाद में यह तारीख विदेशी हुकूमत के खिलाफ पहली जनक्रांति की शुरुआत की गवाह बनी।

यह तो आप सभी जानते हैं कि व्यापार के नाम पर भारत आए अंग्रेजों ने धीरे-धीरे जिस बर्बर और घृणित तरीके से छल कपट का सहारा लेकर अपनी साम्राज्यवादी चालों को चला उसको जनता तो समझ रही थी लेकिन तत्कालीन शासक वर्ग ने उसे गंभीरता से न लिया और नाच रंग में डूबा रहा। हालांकि समाज का प्रत्येक वर्ग अपने-अपने तरीके से इसका विरोध करता रहा। और अंतत: यह असंतोष 1857 के जन विद्रोह के रूप में सामने आया, जिसने विदेशी हुकूमत को जड़ों से हिला डाला।

आज के दिन भड़की पहली चिंगारी

26 फरवरी 1857 को विद्रोह की यह पहली चिंगारी बंगाल से भड़की थी, इसलिए आज की तारीख महत्वपूर्ण है।

ये कैसे और क्यों हुआ आइए करते हैं इसकी पड़ताल हुआ ये कि ब्रिटिश सरकार ने दिसंबर, 1856 में पुरानी बंदूकों के स्थान पर नई रायफलों का इस्तेमाल शुरू किया, जिसके कारतूस पर लगे कार्क को दांतों से काटना पड़ता था।

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शुरू में तो सबने ये काम शुरू कर दिया लेकिन एक दिन बंगाल की बरहामपुर की भारतीय सेना की टुकड़ी को पता चला कि इस कारतूस के कार्क में गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। ये जानकारी मिलते ही सबके होश उड़ गए। सब को लगा उनका धर्म भ्रष्ट हो गया है। गुस्से और आक्रोश से भरे इन जवानों के बीच जब यह बात फैल गई तो चर्बी वाले कारतूसों के प्रयोग के खिलाफ बहरामपुर के सैनिकों ने 26 फरवरी, 1857 को विद्रोह कर दिया। यह देश का पहला सशस्त्र विद्रोह था।

विद्रोह की यह आंच देखते-देखते एक जन विद्रोह में बदल गई। जिसने विदेशी हुकूमत की चूलें हिला दीं। हजारों लोगों को फांसी दे दी गई तमाम को गोली से उड़ा दिया गया। बावजूद इसके इसे रोकने में विदेशी हुकूमत को भारी नुकसान उठाना पड़ा। उसके मन में यह बात घर कर गई कि अब इस देश में रहना मुश्किल है। इसीलिए इसे देश में अंग्रेजों के खिलाफ पहली जनक्रांति भी कहा जाता है।

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