ये है भूतिया किला, जो यहां आया-हो गया गायब, आज भी है वीरान

इस किले के बारे में मदापुर गाँव के रहने वाले पारस नाथ त्रिपाठी भी चिराग जलने व हथौड़ी खोने वाली कहानी की पुष्टि करते हैं। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि उसी रात वहां से सारे मजदूर गायब हो गए जिस कारण इस किले पर कोई भी सैलानी, आसपास के लोग सूरज ढलने के बाद जाने से डरते हैं।

Update:2020-05-03 18:39 IST

बृजेन्द्र दुबे

मीरजापुर। विंध्य की पहाड़ियों में सैकड़ों साल पुराना ऐतिहासिक किला है। यह किला मिर्जापुर मुख्यालय से करीब 58 किलोमीटर की दूरी पर पथरीले टेढ़े मेढ़े रास्तों से होकर अहरौरा की पहाड़ियों पर स्थित है। विराना जंगल के बीचों बीच स्थित इस किले में कोई आता जाता नहीं है। दिन में भी यहां सन्नाटा छाया रहता है। सिर्फ पहाड़ों से टकराकर लौटती हवा पूरे माहौल को डरावना बना देती है। कई बार यहां कुछ आकृतियां बनती बिगड़ती सी होने का अहसास होता है। रात के समय यहां का मंजर और भी खौफनाक हो जाता है। दिन में ही लोग इस तरफ आने से कतराते हैं और दिन ढलने के साथ कोई भी इधर आना नहीं चाहता। लोगों का कहना है यहां से अजीब सी आवाजें आती हैं। जिस कारण यहां पर रात्रि के समय स्थानीय और सैलानियों के आने पर प्रतिबंध है।

मगन दीवाना और खंडहर

विंध्य की पहाड़ियों के इस हिस्से को मगनदीवाना पहाड़ के नाम से जाना जाता है। इसी पर है अर्धनिर्मित किला, जिसका आज के समय में कुछ भाग ही दिखाई देता है। मगनदीवाना पहाड़ के बारे में लोगों ने सिर्फ किस्से सुने हैं। इस किले को देखने के लिए सैलानी बाहर से जरूर आते हैं लेकिन लोगों को जंगल के बीचों बीच पहाड़ पर इस वीरान खंडहर और सुनसान इलाके में रात गुजारने में डर लगता है।

कहते हैं कि अर्धनिर्मित किले में भूतों का भी बसेरा है। इस अर्धनिर्मित किले के बारे में कोई कागजी प्रमाण नहीं मिलता है। इस जगह को शापित मानकर इस किले का संबंध चुनार किले में छिपे ऐतिहासिक खजाने से भी जोड़ा जाता है। जिसको लेकर इस पहाड़ पर खनन इत्यादि पर पाबन्दी है।

पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर है अनोखा झरना

मगनदीवाना पहाड़ पर एक अनोखा झरना भी है। लोग कहते हैं कि कोई दैवी शक्ति है जिस कारण इस झरने का पानी कभी समाप्त नहीं होता है। पूरे जिले में पानी के लिए परेशानी खड़ी हो जाती है लेकिन इस झरने का पानी कभी समाप्त नहीं होता, जिस कारण प्रकृति की अलौकिक छटा अपनी खूबसूरती से पर्यटकों को आमंत्रित करती है। इस विंध्यपर्वत पर और भी बड़े-बड़े झरने हैं जिनका कागजों में कोई प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन इन मनमोहक झरनों को देखकर पता लगता है कि प्रकृति की सुंदरता वास्तव में यही है।

मगनदीवाना की कहानी

लोगो के अनुसार कालान्तर युग में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य चुनार किले पर आये थे। इस दौरान उन्होंने विन्ध्यपर्वत पर आखेट करने की इच्छा जतायी । वह अहरौरा की मनमोहक वादियों में पहाड़ी क्षेत्र में आखेट पर निकले राजा विक्रमादित्य चलते चलते एक पहाड़ पर जाकर उन्होंने जब देखा तो पूरा चुनार किला दिखायी दिया जो बेहद खूबसूरत लग रहा था और उनका मन मोह लिया। जिस कारण इस पहाड़ का नाम मगनदीवाना हो गया।

रहस्यमयी किले से एक रात में गायब हो गए मजदूर

कहते हैं अर्धनिर्मित वीरान खंडहर के रूप में मौजूद इस किले का निर्माण बड़े बड़े पत्थरों की चट्टानों के बीच राजा विक्रमादित्य ने शुरू कराया था। इस किले को बनाने के लिए शर्त लगायी गयी थी कि चुनार और मगनदीवाना किला एक साथ निर्मित होंगे। कहते हैं एक दिन चुनार किले के राजगीर की हथौड़ी खो गयी जिस कारण राजगीर ने चिराग जलाकर हथौड़ी ढूंढ ली, लेकिन मगन दीवाना किला बना रहे राजगीर मजदूर चिराग देख यह जान गए कि चुनार किला तो बनकर तैयार हो गया है।

यह देखकर राजा के गुस्से के डर से सारे मजदूर भाग गए। जब सुबह हुई तो मगन दीवाना किले का निर्माण कर रहे मजदूर राजगीर सब गायब थे किसी को आते जाते भी नहीं देखा गया। इससे लोग भयभीत हो गए। हालांकि इन सब किस्से कहानियों का कोई कागजी प्रमाण नहीं है। लेकिन हिम्मत जुटाकर यहां तक आने वाले पर्यटक यहां से जल्द से जल्द भाग जाना चाहते हैं। कोई भी सैलानी रात में यहां नहीं रहता। अंधेरा होते ही सब सुरक्षित स्थान पर चले जाते हैं।

राजा ने चुनार और मगनदीवाना किला बनाने के लिए रखा था शर्त

इस किले के बारे में मदापुर गाँव के रहने वाले पारस नाथ त्रिपाठी भी चिराग जलने व हथौड़ी खोने वाली कहानी की पुष्टि करते हैं। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि उसी रात वहां से सारे मजदूर गायब हो गए जिस कारण इस किले पर कोई भी सैलानी, आसपास के लोग सूरज ढलने के बाद जाने से डरते हैं।

मगन दीवाना पहाड़ है पुरातत्व विभाग के संरक्षण में

मगन दीवाना पहाड़ के नीचे वर्तमान समय में भी सुरंगें मौजूद हैं जहां पर जहरीले सांप रहते हैं। यह पहाड़ और किला पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। जिस कारण खुदाई कार्य पर प्रतिबंधित है। जिले के सबसे ऊंचे पहाड़ पर स्थित अर्धनिर्मित किले पर बहुत से ऐतिहासिक चिन्ह आज भी मौजूद हैं जिनकी लिखावट अद्भुत है।

स्थानीय लोगों का कहना है इस पहाड़ के नीचे काफी धन छुपा है। जिसका सम्बन्ध चुनार के किले से है। हालांकि यह सिर्फ बाते ही है। इसका कोई आधिकारिक प्रमाण नही मिला है। अहरौरा के मगनदीवाना पहाड़ के शिखर पर माँ दुर्गा का एक मंदिर भी है, पहाड़ के पूर्व व उत्तर दिशा में झरना है। जिसमें मई जून की दोपहरी में भी पानी भरा रहता है। पहाड़ पर स्थित मंदिर पर लोग पूजा अर्चना करते हैं। यहां बाहर से सैलानी आते है।

कई राजाओं ने किया राज्य लेकिन अधूरा रहा किला

जिले का सबसे ऊंचा मगनदीवाना पहाड़ पर किला बनाने की योजना राजा विक्रमादित्य ने बनायी लेकिन इस किले का निर्माण पूर्ण नहीं हो सका। राजा विक्रमादित्य के बाद सन 1141 ई० से 1191 ई० तक पृथ्वीराज चौहान ने इस मगनदीवाना पहाड़ पर राज्य किया। सन 1333 ई० से राजा स्वामी राजा ने भी राज्य किया। सन 1445 ई० में जौनपुर के मोहम्मद सर्की का राज्य रहा। उसके बाद 1512 ई० में सिकन्दर साह लोदी का शासन तथा सन 1529 में बाबर ने राज्य किया। लेकिन इन सभी राजाओं ने इस किले के निर्माण में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

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