जानें क्या है वर्चुअल रैली: शुरू हुआ दौर, कितनी असरदार, क्या है सीमाएं

कोरोना संकट के कारण लोगों की भीड़ जुटाना खतरे से खाली नहीं। ऐसे में अब शुरू हुआ है वर्चुअल रैली का दौर। क्या है वर्चुअल रैली, ये कितनी असरदार होगी?

Update: 2020-06-08 13:40 GMT

लखनऊ: कोरोना संकट के बीच वर्चुअल रैली की शुरुआत हुई है। केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला साल खत्म होने के बाद 'वर्चुअल रैली' शब्द चर्चा में आ गया। गृह मंत्री अंत शाह ने बड़े स्तर पर वर्चुअल रैली की। ये रैली बिहार के आगामी चुनावों को मद्देनजर की गयी। सवाल ये हैं कि वर्चुअल रैली है क्या ? ये आम रैलियों या जनसभाओं की तुलना में कितनी असरदार हैं? क्या आगामी चुनावों में ये वर्चुअल रैली भी उतना ही कमाल देखा पाएंगी, जितना एक आम जनसभा?

ये होती है वर्चुअल रैली:

एक बड़े जनसमूह को प्रभावित करने के लिए रैली की जाती है, ये एक तरह की सभा होती है, जिसमें लोगों की भीड़ को नेता सम्बोधित करता है लेकिन कोरोना संकट के कारण लोगों की भीड़ जुटाना खतरे से खाली नहीं। ऐसे में अब शुरू हुआ है वर्चुअल रैली का दौर। इसमें राजनैतिक पार्टियां, या कोई नेता डिजिटल माध्यम के जरिये जनसमूह को प्रभावित करने का प्रयास करता है। इसके लिए सोशल मीडिया माध्यम जैसे फेसबुक लाइव, यूट्यूब और ज़ूम ऐप आदि के जरिये जनता को सम्बोधित किया जाता है और इसे ही 'वर्चुअल रैली' रैली कहते हैं।

कैसे होती हैं वर्चुअल रैली:

वर्चुअल रैली रियल टाइम इवेंट पर आधारित होती है। इसे वीडियो, ग्राफिक्स और पोल के जरिये ज्यादा आकर्षित बनाया जाता है। राजनैतिक दल अलग थीम या विषय पर फोकस करते हैं। जैसे हाल ही में अमित शाह की वर्चुअल रैली बिहार के आगामी चुनाव पर केंद्रित थी। इसके पहले जीपी नड्डा की वर्चुअल रैली मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पर आधारित थी।

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वैसे तो अभी ये सोशल मीडिया पर ही मुख्य तौर पर प्रसारित होती हैं, लेकिन आम रैलियों की तरह इन्हे टीवी पर भी प्रसारित किया जा सकता है। क्योंकि अब वर्चुअल रैली का ही दौर आ गया है इसलिए इस योजना पर काम शुरू हो सकता है।

क्या है इनकी सीमाएं :

वर्चुअल रैली अभी तक एकतरफा संवाद के तौर पर ही आयोजित हो रही हैं। ऐसे में जनता, जिनको एक नेता सम्बोधित करता है और उनकी प्रतिक्रिया या उपस्थिति को देख उनके जोश का आंकलन कर सकता है, ऐसा वर्चुअल रैली में नहीं हो पाता।

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ये बहुत खर्चीली व्यवस्था है, क्योंकि एक मैदान में हजारों की भीड़ को एकत्र कर सम्बोधित करना आसान है लेकिन अलग अलग जगह बिखरे लोगों को वर्चुअल रैली का जिससे बनाने में काफी खर्च करने की जरूरत होती है। जैसे हाल में अमित शाह की वर्चुअल रैली को लेकर आरजेडी ने आरोप लगाया कि इसके लिए सरकार ने 144 करोड़ रूपये खर्च किये। ये पैसा बिहार में स्थित 72 हजार बूथों पर भाजपा कार्यकर्ताओं को शाह के सम्बोधन से जोड़ने के लिए हजारों एलईडी और स्मार्ट टीवी लगवाने में खर्च हुआ।

कितनी असरदार वर्चुअल रैली:

ये तकनीकि का दौर है। स्मार्ट फोन-सोशल मीडिया का इस्तेमाल काफी बढ़ चुका है। ऐसे में इनके जरिये चुनावी अभियानों की शुरुआत लोगों के मस्तिष्क पर असर तो डालेगा ही। एक सामान्य जनसभा एक क्षेत्र विशेष के लोगों पर सीमित समय तक असर रखती है लेकिन सोशल मीडिया के जरिये रैली को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित और वीडियो को लम्बे समय तक सोशल मीडिया पर वायरल करने का असर पड़ना संभावित है।

हालाँकि ऐसा पहली बार होने वाला है, इसलिए इसके सही असर और प्रभाव के स्तर की माप तो संभव नहीं हैं लेकिन कोरोना संकट में वर्चुअल रैली ही भविष्य तय करेगी।

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