जहां हुआ था हाइड्रोजन बम विस्फोट, हालात देख कांप उठेगी आपकी रूह
इस परीक्षण के बाद द्वीप पर आधे मील से अधिक चौड़ा गड्ढा बन गया, जो कि सैकड़ों फुट गहरा था। इसके जरिए हवा में कई लाख टन रेडियो एक्टिव मलबा फैल गया। विस्फोट के कुछेक सेकंडों में करीब 3 मील के व्यास का एक गुबार उठा था।
रामकृष्ण वाजपेयी
हाइड्रोजन बम का नाम तो आपने सुना होगा लेकिन क्या आपको पता है कि इस बम का आविष्कार कब हुआ। किसने इसका सबसे पहले परीक्षण किया और कौन कौन से देश हाइड्रोजन बम से सम्पन्न हैं। और सबसे बड़ी बात कितनी तबाही मचा सकता है हाइड्रोजन बम।
हाइड्रोजन बम परमाणुबम का एक किस्म है। हाइड्रोजन बम या एच-बम (H-Bomb) परमाणु बम से अधिक शक्तिशाली बम होता है। इसमें हाइड्रोजन विस्फोट के लिए ड्यू टीरियम (deuterium) और ट्राइटिरियम की आवश्यकता पड़ती है। परमाणुओं के संलयन से इस बम का विस्फोट होता है।
संलयन किसे कहते हैं
जब दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।
कितनी ऊर्जा की जरूरत पड़ती है
हाइड्रोजन बम विस्फोट कराने के लिए लगभग पांच करोड़ सेंटीग्रेड ताप की आवश्यकता पड़ती है। यह ताप सूर्य के ऊष्णतम भाग के ताप से भी बहुत ऊँचा होता है। इतनी गर्मी परमाणु बम द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन व भारत हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर चुके हैं। माना जा रहा है कि उत्तर कोरिया भी भी ऐसा खतरनाक बम बना चुका है।
जब परमाणु बम आवश्यक ताप उत्पन्न करता है तभी हाइड्रोजन परमाणु संलयित (fuse) होते हैं। इस संलयन (fusion) से ऊष्मा और शक्तिशाली किरणें उत्पन्न होती हैं जो हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देती हैं। 1922 में पहले ही पता लगा था कि हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट से बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है। जितने में पूरी दुनिया नष्ट हो जाए। क्योंकि हाइड्रोजन बम परमाणु बम से एक हजार गुना ज्यादा ताकत रखता है।
1932 में ड्यूटीरियम नामक भारी हाइड्रोजन का पता चला। 1934 में ट्राइटिरियम (ट्रिशियम) नामक भारी हाइड्रोजन का आविष्कार हुआ। 1950 में संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति ट्रु मैन ने हाइड्रोजन बम तैयार करने का आदेश दिया। इसके लिए 1951 में साउथ कैरोलिना में एक बड़े कारखाने की स्थापना हुई। 1953 में राष्ट्रपति आइजेनहाबर ने घोषणा की थी कि TNT के लाखों टन के बराबर हाइड्रोजन बम तैयार हो गया है। हालांकि 1955 ई. में सोवियत संघ ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया। चीन और फ्रांस ने भी हाइड्रोजन बम के विस्फोट किए हैं।
क्या नाम था इस विस्फोट का
इतिहास बताता है कि 1 मार्च, 1954 को अमेरिका ने मार्शल द्वीपों के बिकिनी आईलैंड पर एक ले जाने योग्य हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया। जिसके लिए ठोस लीथियम ड्यूटेराइट का इस्तेमाल किया गया।अमेरिका ने इसे ब्रावो टेस्ट का नाम दिया गया।
क्या हुआ
परीक्षण होने तक तो सब ठीक था लेकिन परीक्षण होते ही इसके विस्फोट को लेकर सारे अनुमान गड़बड़ा गए। अनुमान था कि इस विस्फोट से 5 मेगाटन ऊर्जा उत्पन्न होगी लेकिन वास्तव में 'ब्रावो' से 14.8 मेगाटन ऊर्जा पैदा की। यह अमेरिका का अब तक का सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण रहा।
इस परीक्षण के बाद द्वीप पर आधे मील से अधिक चौड़ा गड्ढा बन गया, जो कि सैकड़ों फुट गहरा था। इसके जरिए हवा में कई लाख टन रेडियो एक्टिव मलबा फैल गया। विस्फोट के कुछेक सेकंडों में करीब 3 मील के व्यास का एक गुबार उठा था।
लोगों पर क्या हुआ हाइड्रोजन विस्फोट का असर
परीक्षण के दौरान द्वीपों पर कोई नहीं था लेकिन इसका असर बिकिनी द्वीप से सौ से तीन सौ मील पूर्व के द्वीपों पर 200 रेम्स (रिस्क इवैल्यूएशन एंड मिटीजेशन स्ट्रेटेजी) के विकिरण का असर हुआ और त्वरित कार्रवाई कर 24 घंटों के अंदर रोंगलैप द्वीप के 236 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। लेकिन तब तक विकिरण का असर हो चुका था।
बहुत सारे लोगों को विकिरण से चेहरे और आंखों में जलन हुई। उल्टी, डायरिया के साथ ही उनकी त्वचा जल गई और बाल गिर गए। विस्फोट के 10 वर्षों के बाद पहला थाइराइड ट्यूमर का मामला सामने आया। रोंगलैप द्वीप के 90 फीसदी लोगों को थॉयराइड ट्यूमर हो गया। 1964 में अमेरिका ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए क्षतिपूर्ति दी और 1990 में इस बम का उत्पादन रोक दिया।