उत्तराखंड को बेटियों पर नाज, कुछ ऐसा रहा इन दो भारतीय महिला क्रिकेटरों का सफर
आईसीसी महिला वर्ल्ड कप में भारत के चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय टीम में दो लड़कियां उत्तराखंड की भी थीं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इन्हीं दोनों की वजह से भारत को जीत हासिल हुई। उत्तराखंड की एकता बिष्ट और मानसी जोशी ने 7 विकेट लेकर भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
देहरादून : आईसीसी महिला वर्ल्ड कप में भारत के चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय टीम में दो लड़कियां उत्तराखंड की भी थीं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इन्हीं दोनों की वजह से भारत को जीत हासिल हुई। उत्तराखंड की एकता बिष्ट और मानसी जोशी ने 7 विकेट लेकर भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
वैसे यह भी कमाल की बात है कि उत्तराखंड की दोनों बेटियां कागजों में उत्तराखंड की क्रिकेटर नहीं हैं। एकता बिष्ट यूपी से खेलती हैं तो मानसी जोशी हरियाणा से। दोनों ने ही विशुद्ध प्रतिभा के बल पर अपनी पहचान बनाई है और इस मुकाम तक पहुंची हैं कि पूरा देश और दुनिया उनका नाम जानती है। इन दोनों के बारे में कई ऐसी बातें हैं जो युवाओं खासकर लड़कियों को प्रेरणा दे सकती हैं।
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महेंद्र सिंह धोनी भले ही झारखंड के माने जाते हों, लेकिन वह मूलत: उत्तराखंड के हैं। वे शायद इस संबंध को बहुत तवज्जो न देते हों, लेकिन उत्तराखंड खासकर अल्मोड़ा के लोग उन्हें देखकर प्रेरणा जरूर लेते हैं। धोनी के बाद जिस क्रिकेटर ने उत्तराखंड को हाल ही में सबसे ज्यादा सुर्खियां दिलवाई हैं वह हैं एकता बिष्ट। एकता भी अल्मोड़ा की ही हैं और पाकिस्तान के खिलाफ 5 विकेट लेकर उन्होंने ही भारत की जीत की इबारत लिखी थी।
हुई थी टीम से बाहर
अजब इत्तेफाक है कि 2005 में पाकिस्तान के साथ मैच खेलने से पहले ही एकता चोटिल होकर टीम से बाहर हो गई थीं। तब कुछ साल ऐसे गुजरे कि लगा कि अब इंटरनेशनल क्रिकेट को भूल जाना पड़ेगा। किस्मत का खेल देखिए कि अब पाकिस्तान के साथ मैच ने ही उन्हें स्टार बना दिया है। वैसे जब भी एकता का पाकिस्तान से सामना हुआ है उनका प्रदर्शन शानदार रहा है।
पाक के खिलाफ बेहतर प्रदर्शन
कोच लियाकत खान एकता को उत्तर प्रदेश की टीम में ट्रायल के लिए ले गए और उम्मीद के मुताबिक एकता का चयन हो गया। एकता का चयन 2005 में भारत की अंडर-19 टीम में हो गया, लेकिन पाकिस्तान के साथ खेलने से पहले ही प्रैक्टिस के दौरान एकता चोटिल होकर टीम से बाहर हो गईं। एकता घर लौट आईं और अगले 6 साल उन्होंने अल्मोड़ा में ही बिताए। उन दिनों वे उदास हो गई थीं कि अब आगे क्या होगा। ऐसे में मां तारा बिष्ट ने यह कहकर सांत्वना देती कि जो हमारे बस में नहीं उसके बारे में परेशान होने से क्या होगा। इस कारण एकता का खेलना नहीं छूटा। 2011 में एक बार फिर कोच लियाकत खान की कोशिशों से एकता को मौका मिला और वह टीम इंडिया का हिस्सा बन गई। फिर तो रिकॉर्ड यह बताता है कि पाकिस्तान के खिलाफ एकता का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहता है। शायद वह उन 6 सालों का हिसाब चुकता करना चाहती हैं जब देश के चिर प्रतिद्वंद्वी का सामना करने से पहले ही वह बाहर हो गई थी और उन्हें इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ा था।
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8वीं के बाद जगी क्रिकेट में रुचि
मानसी की प्राथमिक शिक्षा चल रही थी कि मां का ट्रांसफर रुड़की हो गया। मानसी मां के साथ रुड़की आ गईं और वहां उसने हाईस्कूल तक की पढ़ाई की। आठवीं तक मानसी का क्रिकेटर बनने का इरादा नहीं था, वह शॉटपुट खेलती थी और ऐसा खेलती थी कि मुंबई में हुई नेशनल जूनियर स्कूल गेम्स में उसने शॉटपुट में गोल्ड जीता। लेकिन आठवीं के बाद मानसी की रुचि क्रिकेट की तरफ हुई और यहां भी उसकी प्रतिभा ने जल्द ही उसे बाकियों से कतार में आगे खड़ा कर दिया। मानसी की क्रिकेट प्रतिभा को सबसे पहले पहचाना मोन फूड स्कूल के खेल के अध्यापक जीतेंद्र बालियान ने। बालियान लड़कों को क्रिकेट की कोचिंग देते थे, लेकिन उन्होंने मानसी को भी ट्रेनिंग देना शुरू किया। मानसी अकेली लड़की थी जिसे वह लड़कों के साथ ट्रेनिंग देते थे। उन्हें मानसी पर इतना भरोसा था कि 10वीं कक्षा में पढ़ रही मानसी को वह अपने खर्च पर हरियाणा ले गए और वहां राज्य की टीम के लिए ट्रायल दिला दिया। मानसी ट्रायल में निकल गई और फिर तो हरियाणा की महिला टीम से खेलने लगी।
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कड़ी मेहनत से मिला मुकाम
नेशनल टीम तक पहुंचने का सफर अभी बाकी था। नेशनल टीम में मानसी का चयन पिछले साल ही हुआ। पिछले तीन साल से वह देहरादून के सेंट जोसेफ स्कूल में बीएस रौतेला की देखरेख में क्रिकेट की बारीकियां सीख रही हैं। काबिल कोच के निर्देशन में कड़ी मेहनत की वजह से ही मानसी आज इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं। एक बार तो लगा था कि इस सफर में बाधा आ जाएगी क्योंकि मानसी की मां शांति देवी का ट्रांसफर रुडक़ी से उत्तरकाशी हो गया था। लेकिन वे जानती थीं कि उत्तरकाशी जाने का अर्थ है मानसी की मेहनत का बेकार हो जाना।
मानसी की ऐसे पाई सफलता
मां शांति देवी ने अपनी बहन से बात की और मानसी देहरादून में मौसी के घर रहकर क्रिकेट सीखती रही। मां शांति देवी अपनी बेटी की सफलता पर खुश तो हैं,लेकिन उन्हें लगता है कि वह मानसी को वे सुविधाएं नहीं दे पाईं जिसकी उसे जरूरत थी। वे कहती हैं कि आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से वह कई बार मन मारकर रह गईं। अगर मानसी को बेहतर संसाधन उपलब्ध करवा पातीं तो वह पहले ही यहां तक पहुंच जाती। शांति देवी रुड़की में नौकरी कर रही थीं, जबकि उनके पति उत्तरकाशी में व्यवसाय। इस तरह मानसी पूरी तरह उनकी जिम्मेदारी और सरंक्षण में रही। मानसी की सफलता के लिए वह उसकी मेहनत और समर्पण, दोनों कोचों के मार्गनिर्देशन, आशीर्वाद और ऊपर वाले की कृपा मानती हैं।