Kukurdev Mandir History: रहस्यों से भरा कुकुरदेव मंदिर, लोग कुत्तों से होने वाली बीमारी से डरते नहीं

Kukurdev Mandir History: कुकुरदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के खपरी गांव में स्थित है।यह शिव का ही मंदिर है । पर इस मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है।

Report :  AKshita Pidiha
Update:2023-09-19 17:34 IST

Chhattisgarh Famous Kukurdev Mandir (Photo- Social Media)

Kukurdev Mandir History: आज एक ऐसे मंदिर के बारे में बात करेंगे जहां देवी देवताओं की नहीं बल्कि कुत्ते की पूजा की जाती है। यह जानकार आपको आश्चर्य होगा पर यह वर्तमान में भारत के छतीसगढ़ राज्य में स्थित है। इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर कैसे स्थापित हुआ है ,इसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं ।

कुत्ते की प्रतिमा की भी पूजा की जाती है

कुकुरदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के खपरी गांव में स्थित है।यह शिव का ही मंदिर है । पर इस मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है। यहाँ पर लोगों के द्वारा कुत्ते की प्रतिमा की भी पूजा की जाती है । यह मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है। यहां के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है। इस मंदिर की वजह से यहाँ के लोग कुत्ते से होने वाली किसी बीमारी और कुत्ते के काटने से डरते नही है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे की कहानी को जानते हैं ।

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क्या है पूरी कहानी

इस मंदिर में स्थापित कुत्ते का स्मारक एक वफ़ादार कुत्ते की याद दिलाता है । यहां के रहने वाले बताते हैं कि सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार के साथ इस गांव में आया था। उसके साथ एक कुत्ता भी था। गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो बंजारे ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया। लेकिन वो कर्ज वो वापस नहीं कर पाया। ऐसे में उसने अपना वफादार कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया।

कहते हैं कि एक बार साहूकार के यहां चोरी हो गई। चोरों ने जहां पर सब समान छिपाया था, उस कुत्ते ने साहूकार को उस स्थान पर पहुँचाया और उसे अपना पूरा समान मिल गया। साहूकार खुश हो गया और कुत्ते की इस वफ़ादारी से खुश होकर उसे आज़ाद करने का फ़ैसला किया और उसे वापस बंजारे के घर भेज दिया। साथ ही उसके गले में एक चिट्ठी टांग दी, जिसमें सारी घटना लिखी हुई थी ।

कुत्ते के घर में पहुँचने पर बंजारा परिवार परेशान हो गया । उसे लगा कुत्ता साहूकार के पास से भाग कर आया है । इसलिए उसने गुस्से में आकर कुत्ते को पीट-पीटकर मार डाला। पर बाद में उसने उसके गले में टंगी चिट्ठी पढ़ी, पर तब तक देर हो चुकी थी । उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। उसके बाद उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और उस पर स्मारक बनवा दिया। स्मारक को बाद में लोगों ने मंदिर का रूप दे दिया, जिसे आज लोग कुकुर मंदिर के नाम से जानते हैं।

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी आ चुके हैं यहां

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी यहां आ चुके हैं। इस ऐतिहासिक और पुरातत्वीय मंदिर का निर्माण फणी नागवंशीय शासकों द्वारा 14वीं-15वीं शताब्दी के बीच कराया गया था।मंदिर में गुंबद के चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं। मंदिर के चारों तरफ उसी समय के शिलालेख भी रखे हैं लेकिन स्पष्ट नहीं हैं। इन पर बंजारों की बस्ती, चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है।

खपरी गांव के कुकुरदेव मंदिर के सामने की सड़क को पार करते ही माली धोरी गांव शुरू होता है। इस गांव का नाम माली धोरी बंजारा के नाम पर पड़ा।इस वफादार कुत्ते का वास्तिक नाम माली था ।साहूकार का कर्ज न चुका पाने के कारण बंजारा परिवार इस गांव में रहने लगा था।

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