Tibetan Village In Odisha: जिरांग, ओडिशा का तिब्बती गांव, आइये जाने इसका इतिहास
The Tibetan Village In Odisha: 1960 के दशक से तिब्बतियों ने यहां अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू किया। अब यह पर्यटकों के बीच एक मशहूर जगहों में से एक है।
The Tibetan Village In Odisha: ओडिशा के गजपति जिले का चंद्रगिरि गांव (Chandragiri) जिसे जिरांग (Jiranga) के नाम से भी जाना जाता है, अच्छी खासी तिब्बती आबादी के कारण पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र रहता है। इस इलाके में लोग ग्रामीण जीवन का आनंद लेने से लेकर हरे भरे घाटियों और बौद्ध मठ देखने का भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
जिरांग को कई नामों से जाना जाता है जैसे, ओडिशा की तिब्बती बस्ती, चंद्रगिरी की बौद्ध बस्ती। इसे कई लोग जिरांगो या जीरंगा नाम से भी पुकारते हैं। 1960 के दशक से तिब्बतियों ने यहां अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू किया और अब धीरे धीरे देश के कई कोने से लोग यहां की शांति अनुभव करने आने लगे हैं।
पूर्वी घाट के कई पहाड़ियों से घिरा यह एक खूबसूरत घाटी है जहां एक छोटा झरना भी है जिसे खासदा (Khasada) के नाम से जाना जाता है, पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
तप्तपानी और जिरांग से गुजरने वाली एनएच 326 हाईवे से इस पहाड़ी ड्राइव का अलग मजा है। इस हाईवे के एक और पहाड़ तो दूसरी ओर जंगल है।
चंद्रगिरि इलाके में 5 मुख्य गाँव हैं- लबारासिंघ, महेंद्रगढ़, टैंकिलिपदर, चंद्रगिरि और जिरांग। ये सभी गांव एक-दूसरे से 10-20 किमी की दूरी पर स्थित हैं। इस पूरे क्षेत्र को तिब्बती फुंटसोक्लिंग (Phuntsokling Tibetan) कहते हैं, जिसका मतलब होता है- "खुशी और प्रचुरता की भूमि"।
यहां के गांव में सड़क के दोनों किनारे भारी मात्रा में मक्के की खेती होती है इसलिए इसे 'ओडिशा का मक्का का कटोरा' भी कहा जाता है। यहां तिब्बतियों के आय का मुख्य स्त्रोत भी मक्का है।
ये भी हैं घूमने लायक जगहें
यहां से 70 किमी की दूरी पर ओडिशा की दूसरी सबसे ऊंची चोटी, महेंद्रगिरि है। यहां के पहाड़ियों से हरे-भरे मैदानों का नजारा पर्यटकों को एक अलग आनंद देता है। यहां के बौद्ध मठ में एक बड़ी झील है जिसके बीच में कमल के ऊपर बैठे पद्मसंभव की एक मूर्ति है।
यहां स्थित मठ के दीवारों पर महात्मा बुद्ध के जीवन संबंधित कई चरणों के सुंदर चित्र हैं। पांच मंजिले सफेद इस इमारत में नीले, लाल रंग के कई खंभे हैं जिनपर नक्काशी भी देखने को मिलेंगे। इस मठ के अंदर तिब्बती बौद्ध धर्म कला का नमूना देखने को मिलेगा। मठ के अंदर विशाल ध्यान कक्ष के मध्य में करीब 23फुट ऊंची कांस्य की भगवान बुद्ध की प्रतिमा है। इसी कक्ष में भगवान बुद्ध के बगल में भगवान अवलोकितेश्वर और भगवान पद्मसंभव की 17 फुट ऊंची प्रतिमाएं हैं।
गर्भ गृह में प्रार्थना झंडे भी देखने को मिलेंगे। इन झंडों का उपयोग पारंपरिक प्रथा के अनुसार शांति, ज्ञान, करुणा और शक्ति को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।
तिब्बती मठों की वास्तुकला मुख्यतः दो भागों में विभाजित रहती है- एक मुख्य मंदिर ( गोम्पास) और दूसरा स्तूप (चोर्टेंस) के नाम से जाना जाता है।
कैसे पहुंचे?
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से जिरांग या चंद्रगिरि लगभग 290 किमी दूर है और दक्षिणी ओडिशा के ब्रह्मपुर जिले से 100 किमी की दूरी पर है। हवाई मार्ग से भुवनेश्वर आकर सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। ब्रह्मपुर, आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम शहर से भी सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। विशाखापत्तनम हवाई अड्डे से भी यहां सीधे सड़क मार्ग से जा सकते हैं।
रेलवे मार्ग से भी भुवनेश्वर या ब्रह्मपुर आकार जा सकते हैं। टैक्सी और सार्वजनिक बस सेवाएं भी ली जा सकती हैं।
मठ घूमने का समय सुबह 5.30 बजे से शाम 4 बजे तक का होता है। यहां ठहरने के लिए मठ परिसर के गेस्ट हाउस ऑनलाइन पता कर सकते हैं। ज्यादातर लोग ब्रह्मपुर में ठहरना पसंद करते हैं। वहां रहने के लिए अपने बजट का होटल या लॉज आप ढूंढ सकते हैं।
यहां आकर निकटतम पर्यटक स्थल चिल्का और भुवनेश्वर का भी आनंद लिया जा सकता है।
घूमने के लिए कौन सा मौसम है बेहतर
यहां आने का सबसे अच्छा मौसम नवंबर से फरवरी तक का होता है। वैसे बारिश के मौसम में भी नजारा कुछ अलग होता है।